अनुज अग्रवाल। देश में पंजीकृत 15 लाख कम्पनियों में से 7 लाख फर्जी हैं। अंततः केंद्र सरकार इन कंपनियों को बंद करने पर गंभीरता से विचार कर् रही है। देश के आधे वकील फर्जी हें और 80% पीएचडी डिग्री भी। 80 प्रतिशत इंजीनियर और एम बी ए की डिग्री रद्दी कागज है क्योंकि न वो कुछ पढ़े और न उन्हें पढ़ाया गया।
देश की कुल जनसंख्या का एक तिहाई अंगूठा टेक है और अगले एक तिहाई सिर्फ नाम लिखना और टुटा फूटा पढ़ना जानते हें। शेष एक तिहाई में से आधे 5 वीं पास हें और माध्यमिक शिक्षा लेने वालों का दस प्रतिशत ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाते हें। पहली बार देश की शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की केंद्र सरकार द्वारा गंभीर कोशिशें शुरू हुई हें। इन उच्च शिक्षा प्राप्त लोगो में से 20% ही काम के लायक होते हें और विभिन्न सरकारी और निजी सेवाओं तथा राजनीति में आगे बढ़ते हें या फिर अपना उद्योग व्यापार शुरू कर उसे बढ़ा पाते हैं। देश की 90% धन संपदा इन्ही लोगो के पास है और टैक्स बचाने तथा हराम की कमाई छुपाने के लिए ही ये लोग फर्जी (शैल) कम्पनियां या फर्म बनाते हैं।
विमुद्रिकरण के बाद बेंको से मिले आंकडो के अनुसार इन कंपनियों में जो कुछ भी काम नहीं करती, लाखों करोड़ रूपये जमा कराए गए जो वास्तव में कालाधन है। आप बताओ गलत कौन है? देश की शिक्षा प्रणाली, लोगो की नीयत या बेलगाम बाज़ारवादी नीतियां? छद्म विकास के उलझाने वाली बातों से देश को निकाल जमीनी विकास करना अब मजबूरी बनता जाय तब सरकार की पहल की सार्थकता होगी।
साभार: अनुज अग्रवाल, संपादक डायलॉग इंडिया