विपुल रेगे। भारत सरकार की ओर से आधिकारिक रुप से ऑस्कर अवार्ड्स 2023 में भेजी गई गुजराती फिल्म ‘छेल्लो शो’ रेस से बाहर हो गई है। जब इस फिल्म को ऑस्कर में भेजा गया था, तब फिल्म प्रेमियों ने इस निर्णय का विरोध किया था। ‘आरआरआर’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी उत्कृष्ट फिल्मों को परे रख ‘छेल्लो शो’ का चयन किया गया, जो ग़लत सिद्ध हो गया है। जब फ़िल्में सरकार की ओर से ऑस्कर में भेजी जाती हैं, तो वहां राजनीति का दखल बहुत अधिक होता है। ये दखल सिनेमा के मापदंडों को परे रखकर किया जाता है।
फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया सन 1957 से ऑस्कर अवार्ड्स में भारत की ओर से आधिकारिक प्रविष्टि भेजता रहा है। फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की चुनी हुई समिति चयन करती है कि हर वर्ष भारत में बनने वाली सैकड़ों फिल्मों में से कौनसी फिल्म ऑस्कर के लिए भेजी जाएगी। सन 1957 में भारत की ओर से निर्देशक मेहबूब ख़ान की ‘मदर इंडिया’ ऑस्कर में भेजी गई। फिल्म नॉमिनेट भी हुई लेकिन अवार्ड नहीं जीत सकी।
इसके अगले वर्ष इंडियन सिनेमा की क्लासिक ‘मधुमती’ ऑस्कर के लिए भेजी गई लेकिन नॉमिनेट नहीं हो सकी। ये वह दौर था, जब भारतीय सिनेमा की कथाओं का बैकग्राउंड नितांत देसी था। ऑस्कर अवार्ड्स के मापदंड पश्चिमी सिनेमा के अनुसार होते थे और आज भी होते हैं। फिर ये समझ आया कि यदि हम भारत की निर्धनता और यहाँ के सिस्टम की बुराइयां दिखाएंगे तो ऑस्कर में हमारी फिल्मों के आगे जाने के चांस बनते हैं।
1957 के बाद सन 1988 में दूसरी भारतीय फिल्म ऑस्कर में नामांकित हुई। मीरा नायर की ‘सलाम बॉम्बे’ मुंबई के स्लम्स की ज़िंदगी दिखाती थी। इसके बाद 2001 में निर्देशक आशुतोष गोवारीकर की ‘लगान’ नामांकित हुई लेकिन अवार्ड इसकी झोली में भी नहीं आया। सन 2008 में आमिर खान की उत्कृष्ट फिल्म ‘तारे ज़मीं पर’ भारत की ओर से आधिकारिक एंट्री के रुप में ऑस्कर में भेजी गई लेकिन ये रेस से बाहर हो गई।
इसी वर्ष एक ब्रिटिश फिल्म ‘स्लमडॉग मिलिनियर’ ने ऑस्कर में एंट्री मारी और अवार्ड भी जीते। इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि ऑस्कर के निर्णायक ‘तारे ज़मीं पर’ जैसी अच्छी फिल्म को नकार देते हैं और मुंबई की झुग्गियां दिखाने वाली ब्रिटिश फिल्म अवार्ड ले जाती है। ‘छेल्लो शो’ आधिकारिक एंट्री के रुप में शॉर्टलिस्ट होने वाली चौथी फिल्म बनी और बाहर हो गई। अब तक भारत ने ऑस्कर में 44 फ़िल्में भेजी है।
इनमे से 34 हिन्दी व बाकी अन्य भाषाओं में थी। यहाँ फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा गठित की जा रही समितियों का स्तर देखना आवश्यक होगा। विगत कुछ वर्षों में सरकारों का दखल फिल्मों के चयन पर इतना हावी रहा कि रमेश सिप्पी की ‘सागर’ और सुभाष घई की ‘सौदागर’ भारत की ओर से ऑस्कर में भेजी गई। सामान्य दर्शक भी बता सकता है कि ये फ़िल्में ऑस्कर में भेजे जाने योग्य नहीं थी।
सन 2019 में ‘गली बॉय’ नामक एक स्तरहीन फिल्म ऑस्कर के लिए भेजी गई थी। ‘आरआरआर’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ को छोड़कर ‘छेल्लो शो’ ऑस्कर में भेजना दर्शाता है कि हमारी सरकारें फिल्मों के चयन तक में दखल देती है। यदि दखल नहीं होता तो राजामौली या विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ऑस्कर में भेजी जाती। ‘आरआरआर’ ने विदेशी धरती पर दो पुरस्कार जीतकर ऑस्कर के लिए दावा ठोंक दिया है।
‘आरआरआर’ शॉर्टलिस्ट हो चुकी है। इसका शॉर्टलिस्ट होना फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की चयनित समिति को एक करारा तमाचा है। राजामौली ने अपनी फिल्म फ्री एंट्री के तहत ऑस्कर में भेजी थी। अब यदि राजामौली ऑस्कर की ट्राफी उठा लाते हैं तो सूचना व प्रसारण मंत्री तथा इस दल के बड़बोले नेताओं को न तो श्रेय लेना चाहिए और न राजामौली के साथ फोटो खिंचानी चाहिए।