Sonali Misra. क्या ग्रांड ट्रंक रोड वाकई शेरशाह सूरी ने बनाई थी? यह प्रश्न आपके मन में बार बार इसलिए कौधना चाहिए क्योंकि यही वाक्य हमें इतिहास में सिखाया जाता है। पर भारत का व्यापार तो सदियों से पश्चिम से होता आ रहा था। जब भारत का व्यापार सदियों से पश्चिम से होता आ रहा था तो ऐसा कैसे हो सकता है कि लोग आते रहे, सेनाएं आती रहीं, व्यापारी आते रहे और मार्ग न हो? क्या बिना सड़कों के यह यात्राएं होती थीं? क्या ऐसा संभव है कि बिना मार्ग के यात्राएं हों? मुझे नहीं लगता! क्या आपके मन में कभी यह प्रश्न आया?
आज जब हम भारत के चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की जयन्ती मना रहे हैं तो उस वैभव की बात कर रहे हैं, जो भारत में सदियों से था। भारत कोई चौदह सौ साल पहले का बना भारत नहीं है। भारत तो सनातन है। यही सनातन पूरे विषय में थल मार्ग से यात्रा करता था। यदि मार्ग नहीं था तो गांधार आदि से महाभारत काल में सेनाएं कैसे आईं? भारत में प्राचीन काल से ही मेसोपोटामिया, और यूनान से व्यापार होता रहा था। तो क्या मार्ग नहीं थे?
दरअसल यह झूठ एक बार फिर से गुलाम बनाने के लिए प्रचारित किया गया। प्राचीन काल में भारत में व्यापार करने के दो मार्ग हुआ करते थे उत्तरपथ और दक्षिणपथ। तो वहीं मौर्य काल में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में आए हुए यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने उस पूरे मार्ग का विस्तार से वर्णन किया है, जिसे इतिहास में ग्रांड ट्रंक रोड कहा जाता है और जिसे यह कहकर प्रचारित किया जाता है कि शेरशाह सूरी ने बनवाया।
इंटरकोर्स बिटवीन इंडिया एंड द वेस्टर्न वर्ल्ड, एच जी रौलिंसन , कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस 1916 (INTERCOURSE BETWEEN INDIA AND THE WESTERN WORLD, H। G। RAWLINSON, Cambridge University Press 1916) में इंडिका के माध्यम से मेगस्थनीज द्वारा उसी मार्ग का वर्णन है, जिसे किसी और के नाम पर प्रचारित किया गया है। इसमें लिखा है “मेगस्थनीज ने जैसे ही भारत में प्रवेश किया, वैसे ही जिसने उसे सबसे पहले प्रभावित किया, वह था शाही मार्ग, जो फ्रंटियर से पाटलिपुत्र तक जा रहा था।
उसके बाद वह इस पूरे मार्ग का वर्णन करते हैं। इसमें लिखा है “यह आठ चरणों में बना हुआ था और वह पुष्कलावती अर्थात आधुनिक अफगानिस्तान से तक्षशिला तक था: तक्षशिला से सिन्धु नदी से लेकर झेलम तक था; उसके बाद व्यास नदी तक था, वहीं तक जहां तक सिकन्दर आया था, और फिर वहां से वह सतलुज तक गया है, और सतलुज से यमुना तक। और फिर यमुना से हस्तिनापुर होते हुए गंगा तक। इसके बाद गंगा से वह दभाई (Rhodopha) नामक कसबे तक गया है और उसके बाद वहां से वह कन्नौज तक गया है।
कन्नौज से फिर वह गंगा एवं यमुना के संगम अर्थात प्रयागराज तक जाता है और फिर वह प्रयागराज से पाटलिपुत्र तक जाता है। राजधानी से वह गंगा की ओर चलता रहता है।” संभवतया उसके आगे मेगस्थनीज नहीं गए इसलिए इंडिका में यहीं तक का वर्णन है।
अब इस मार्ग के साथ ग्रांड ट्रंक रोड के मानचित्र को देखिये। यह वही मार्ग है।
इस मार्ग का उल्लेख पाणिनि ने उत्तरपथ के रूप में किया है।
फिर वह लिखते हैं कि इस मार्ग के रखरखाव का उत्तरदायित्व एक आयोग करता था।
इतना ही नहीं, वह पूरी शासन प्रणाली का उल्लेख करते हैं और उस समय के हिन्दू समाज की प्रशंसा से भरे हुए हैं। ANCIENT INDIA AS DESCRIBED BY MEGASTHENES AND ARRIAN
में मेगस्थनीज इस बात की प्रशंसा करते हैं कि भारतीय स्वतंत्र हैं और उनमें से कोई भी दास नहीं है। वह यूनानियों (Lakedaemonians) और भारतीयों को एक समान मानते हैं, मगर फिर भी Lakedaemonians तब भी Helotsas को गुलाम बनाते हैं, पर भारतीय कभी ऐसा नहीं करते। वह विदेशियों को भी अपना मित्र और अपने ही देश का मानते हैं।
मौर्य काल में, जब पूरा देश सनातन था, उस समय का हिन्दू कैसा था उसके विषय में वह लिखते हैं कि भारतीयों में चोरी की घटनाएं बहुत दुर्लभ थीं। और वह लोग शायद ही न्यायालय जाते हों। अर्थात वह गलत करते ही नहीं थे।
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में नागरिक सुरक्षा इतनी इतनी मजबूत थी कि लोग अपने घरों में ताला डालते ही नहीं थे। जबकि उनके पास काफी सोना हुआ करता था, मगर वह सहज ही अपना पैसा और सोना चांदी किसी के पास रखकर चले जाते थे।
यह सब कुछ बहुत अधिक पहले नहीं बल्कि मात्र ढाई हज़ार साल पहले ही हुआ करता था। मेगस्थनीज ने भारतीयों अर्थात हिन्दुओं की व्यायाम करने की पद्धतियों के विषय में बताया है, स्त्रियों की स्वतंत्रता के विषय में बताया है एवं उस समय के पूरे भारत का खांचा खींचा है। परन्तु यह हमारा दुर्भाग्य है कि जहाँ हमारे इतिहास से मौर्य वंश गायब है, बल्कि मौर्य वंश मात्र अशोक के साथ आरम्भ होता है, वह भी इसलिए क्योंकि उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया, और अशोक के बहाने कथित इतिहासकार अपने हिन्दू द्वेष को लागू करते हैं, परन्तु वह यह भूल जाते हैं कि इन्हीं अशोक ने ग्रांड ट्रंक रोड के पूरे मार्ग के किनारे वृक्ष लगाए थे, अर्थात सौन्दर्यीकरण किया था, जो आगे जाकर शेरशाह सूरी ने किया। अर्थात सजाया संवारा! बनाया नहीं!
जिस शेरशाह सूरी का कुल शासनकाल छ वर्ष का रहा हो और वह भी लड़ाई झगड़े में बीता हो, वह इतने विशाल मार्ग का निर्माण करा सकता है, यह तो कोई बेवक़ूफ़ या कथित लिबरल इतिहासकार ही सोच सकते हैं।
मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन और उस काल में भारतीयों का जीवन हर भारतीय के लिए आदर्श होना चाहिए न कि कांग्रेस पोषित वामपंथी इतिहासकारों द्वारा बलात गढ़े गए नायकों का!