श्वेता पुरोहित-
मनुष्य जन्म अत्यन्त दुर्लभ है। चौरासी लाख योनियों में भटकता हुआ प्राणी पापों के क्षीण होने पर भगवान् की कृपावश दुर्लभ मनुष्य-योनि में जन्म लेता है। मनुष्य-योनि को दुर्लभ इसलिये कहा जाता है; क्योंकि अन्य योनियाँ जहाँ केवल भोगयोनियाँ ही हैं; वहीं मनुष्य योनि एकमात्र कर्मयोनि भी है। ऐसा दुर्लभ अवसर पाकर भी यदि मनुष्य उसे व्यर्थ गँवा दे अथवा पुनः अधोगति को प्राप्त हो जाय तो यह विडम्बना ही होगी। इसीलिये हमारे शास्त्रों में ऐसे विधि-विधानों का वर्णन है, जिससे मनुष्य अपने परमकल्याणका मार्ग प्रशस्त करते हुए मुक्तिकी ओर अग्रसर हो सके।
पुराणों में विभिन्न तिथियों, पर्यो, मासों आदि में करणीय अनेकानेक कृत्योंका सविधि प्रेरक वर्णन प्राप्त होता है, जिनका श्रद्धापूर्वक पालन करके मनुष्य भोग तथा मोक्ष दोनोंको प्राप्त कर सकता है।
निष्काम भाव से तो व्यक्ति कभी भी भगवान् की पूजा, जप, तप, ध्यान आदि कर सकता है, परंतु सकाम अथवा निष्काम किसी भी भावसे कालविशेष में जप, तप, दान, अनुष्ठान आदि करनेसे विशेष फलकी प्राप्ति होती है- यह निश्चित है। पुराणोंमें प्रायः सभी मासोंका माहात्म्य मिलता है, परंतु वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष, माघ तथा पुरुषोत्तममासका विशेष माहात्य
दृष्टिगोचर होता है, इन मासोंकी विशेष चर्चा तथा दान, जप, तप, अनुष्ठानका विस्तृत वर्णन ही नहीं प्राप्त होता; अपितु उसका
यथाशक्ति पालन करनेवाले बहुत से लोग आज भी समाजमें विद्यमान हैं। मासोंमें श्रावणमास विशेष है। भगवान्ने स्वयं कहा है-
द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभः।
श्रवणाईं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मतः ॥
श्रवणक्ष पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावणः स्मृतः।
यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिदः श्रावणोऽप्यतः ॥
(स्कन्दमहापु० श्र०माहा० १।१७-१८)
अर्थात् बारहों मासोंमें श्रावण मुझे अत्यन्त प्रिय है। इसका माहात्म्य सुननेयोग्य है। अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मासमें श्रवण-नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होती है, इस कारण भी इसे श्रवण कहा जाता है। इसके माहात्यके श्रवणमात्रसे यह सिद्धि प्रदान करनेवाला है, इसलिये भी यह श्रावण संज्ञावाला है।
श्रावणमास चातुर्मासके अन्तर्गत होनेके कारण उस समय वातावरण विशेष धर्ममय रहता है। जगह-जगह प्रवासी संन्यासी- गणों तथा विद्वान् कथावाचकोंद्वारा भगवान्की चरितकथाओंका गुणानुवाद एवं पुराणादि ग्रन्थोंका वाचन होता रहता है। श्रावणमासभर शिवमन्दिरोंमें श्रद्धालुजनोंकी विशेष भीड़ होती है, प्रत्येक सोमवार को अनेक लोग व्रत रखते हैं तथा प्रतिदिन जलाभिषेक भी करते हैं। जगह-जगह कथासत्रोंका आयोजन; काशीविश्वनाथ, वैद्यनाथ, महाकालेश्वर आदि द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उपलिंगों की ओर जाते काँवरियों के समूह; धार्मिक मेलों के आयोजन; भजन-कीर्तन आदिके दृश्यों के कारण वातावरण परम धार्मिक हो उठता है। महाभारत के अनुशासनपर्व (१०६।२७) में महर्षि अंगिरा का वचन है-
श्रावणं नियतो मासमेकभक्तेन यः क्षिपेत्।
यत्र तत्राभिषेकेण युज्यते ज्ञातिवर्धनः ॥
अर्थात् –
‘जो मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर एक समय भोजन करते हुए श्रवणमास को बिताता है, वह विभिन्न तीर्थों में स्नान करने के पुण्यफल से युक्त होता है और अपने कुटुम्बीजनोंकी वृद्धि करता है।’
स्कन्दमहापुराण में तो भगवान्ने यहाँ तक कहा है कि श्रवणमासमें जो विधान किया गया है, उसमेंसे किसी एक व्रतका भी करनेवाला मुझे परम प्रिय है-
किं बहूक्तेन विप्रर्षे श्रावणे विहितं तु यत्।
तस्य चैकस्य कर्तापि मम प्रियतरो भवेत् ॥
आद्यन्तमंगलमजातसमानभावम्
आर्यं तमीशमजरामरमात्मदेवम्।
पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोदशीलं
सम्भावये मनसि शंकरमम्बिकेशम्।।
- मंगलाचरण, श्रीशिवमहापुराण(१.१.१) 🪷 जो आदि, अंत (तथा मध्यमें भी) सदा मंगलमय है, जिनके समान ही कोई नहीं है(तो फिर बढ़कर कौन हो सकता है!), जो परमश्रेष्ठ नियन्ता, सदा नव-नवायमान, अमर परमात्मदेव हैं, पञ्चमुखी तथा सृष्टि, स्थिति, संहार, अनुग्रह और तिरोभाव रूपी प्रबलकर्म खेल ही खेलमें कर देते हैं, उन जगदम्बिका पति भगवान शंकर की हम मन से सम्यक् भावना करते हैं।
🪷 ॐ नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव!
आप सबको श्रावण माह के प्रथम सोमवार की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
महादेव आपका कल्याण करें 🙏🔱🚩