भारतीय सेना की घातक बटालियन के वीर सैनिक गुरतेज सिन्ह ने देश की रक्षा के लिये जो अपने प्राणों का बलिदान दिया है, वह व्यर्थ नहीं जायेगा. ऊन्होने वीरगति प्राप्त करने से पहले अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए 12 चीनी सैनिकों को अकेले ही धराशायी कर डाला.
गुरतेज सिंह गल्वान घाटी में हाल ही में भारत और चीन के बीच हुई मुठभेड़ में शहीद हो गये. मात्र 23 साल के इस युवा सैनिक का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा. उनके इस बलिदान ने करोड़ो देशवासियों के मन में देशसेवा की, देशप्रेम की ललक जगाई है. और जो लोग सेना का हिस्सा हैं या फिर सेना में जाना चाहते हैं, उनके सामने एक ऐसे साहसी सैनिक का उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसकी वीरता की गाथायें आने वाली शताब्दियों में भी गायी जायेंगी.
किसी भी विवाद को सुलझाने के लिये युद्ध एक बिल्कुल आखिरी रास्ता होना चाहिये. इसीलिये सदा यह कोशिश भी की जाती है कि वार्ताओं के ज़रिये, कूटनीतिक संवाद के ज़रिये युद्ध को टाला जा सके और रोका जा सके.
चीन के साथ भी भारत का यही रवैया रहा है. और जितने दोनों देशों की सेना के बीच जो भी मुठभेड़् हुई हैं, वो सब चीन की ही उकसाई हुई हैं. लेकिन युद्ध को रोकने के प्रयास का यह अर्थ नहीं है कि सीमा पर तैनात सैनिक देश की रक्षा न करें. या फिर हमारे देश की सरकार क्षत्रुओं को बड़ी ही आसानी से चढ़ाई करने दे.
गुरतेज सिंह भारतीय सेना की घातक बटालियन का हिस्सा थे. घातक बटालियन के लिये सेना के सबसे अधिक फिट और ताकतवर नौजवानों का चयन होता है. घातक कमांडोज़ को कर्नाटक के बेलगांव में 43 दिन की विशिष्ट ट्रेनिंग मिलती है. इस ट्रेनिंग के दौरान कमांडोज़ को हथियारों और सप्लाई को लादे दसों किलोमीटर की दौड़ लगानी पड़्ती है और बिना हथियार के युद्द लड़ने का प्रशिक्ष्ण लेना होता है. बल्कि घातक बटैलियन की यही विशिष्टता होती है. यह बिना हथियार युद्ध लड़ सकती है.
चीनी सेना के मार्शल आर्ट एक्स्पर्ट्स से लड़्ने के लिये भारत की घातक बटालियन के कमांडोज़ ही उपयुक्त हैं. गलवान घाटी में हुई मुठ्भेड़ में जहां चीन ने तिब्बत के स्थानीय क्लबों से मार्शल आर्ट एक्स्पर्ट्स को रिक्रूट किया था, वहीं भारत ने उसके जवाब में घातक बटालियन के कमांडो उतारे. वीरगति को प्राप्त हुए गुरतेज सिंह उन्ही में से एक थे.
गुरतेज सिंह पर बिना हथियारों के हैंड टू हैंड युद्ध तकनीक के माध्यम से प्रहार किया गया. और उन्होने बडी ही बहादुरी से मात्र एक कृपाण के सहारे 12 चीनी सैनिकों को मार गिराया. यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और देश के उन नौजवानों के लिये प्रेरणादायक भी जो कि सेना का हिस्सा बनना चाहते हैं.
लेफ्ट लिबरल मीडिया ने पिछले कुछ वर्षों में एक ट्रेंड की शुरुआत की है. और वह है सेना और सेना के जवानों की लोगों के सामने गलत छवि प्रस्तुत करना. जिस प्रकार लेफ्ट लिबरल पुलिस को क्रूर, अत्याचारी और बर्बर दिखाने की कोशिश करता है, ठीक उसी प्रकार का शद्जाल वह सेना के खिलाफ भी बिछाता है. इस पट्कथा को चुनौती देने का सिर्फ एक्मात्र तरीका है, गुरतेज सिंह जैसे वीर सैनिकों के बलिदान को याद रखना और उससे प्रेरणा लेना.