एक हिंदू लड़की अखिला अशोकन मुस्लिम शफीन से शादी के बाद धर्मांतरण कर हादिया बनी।
हादिया दोबारा हिंदू न बन जाए इसके लिए इस्लामी संगठन PFI सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ी और कपिल सिब्बल जैसे वकीलों पर एक करोड़ के आसपास खर्च कर दिया।
दूसरी तरफ शिया वक्फ बोर्ड के वसीम रिजवी घर वापसी कर जितेन्द्र त्यागी बने। उत्तराखंड की कथित हिंदूवादी सरकार ने ही उन्हें गिरफ्तार भी किया, और फिर हिंदू समाज ने ही उन्हें मरने के लिए अकेला छोड़ दिया।
आरंभ में भीख मांगकर यति नरसिंह्मानंदजी जी ने उन्हें जमानत दिलाने और उनके परिवार का खर्च उठाने पर 35 लाख रुपये खर्च किए। एक कथित हिंदूवादी वकील ने ही करीब 8 लाख रुपये पैरवी के लिए ले लिए।
जितेन्द्र त्यागी जब जेल से निकले तब तक सिस्टम उन्हें इतना डरा चुकी थी कि यति और उनकी टीम जेल के जिस गेट पर उनकी प्रतीक्षा कर रही थी, वह उसकी जगह दूसरे गेट से चुपके से निकल गये।
जमानत अवधि पूरी होने पर उनकी जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने आगे नहीं बढ़ाया। अब वह पुनः जेल पहुंच चुके हैं।
उनके लिए न कोई कथित हिंदू संगठन सामने आया, न कथित हिंदूवादी पार्टी या कोई हिंदूवादी वकील ही आगे आया। और तो और हिंदू समाज ने भी रवैया दिखाया, ‘इससे मुझे क्या?’
फिर हिंदू कहते हैं कि हम मिटते क्यों जा रहे हैं? क्योंकि ‘वो’ अपने मजहब के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं, जैसे हादिया को मुस्लिम बनाए रखने के लिए PFI ने लगाया।
वहीं, हिंदू समाज पूरी उम्र अपने धर्म को छोड़कर किसी नेता, पार्टी या बाबा के चक्कर में ही जीवन गुजार देता है! वह कभी अपने हिन्दू समाज के लिए खुलकर आगे नहीं आता। उसे मरने के लिए छोड़ देता है , जैसे जितेन्द्र त्यागी को छोड़ दिया।
फिर कोई क्यों हिंदू समाज में लौटेगा? फिर हिंदू नहीं तो और कौन मिटेगा? प्रकृति उन्हीं का वरण करती है जो अपने लिए लड़ना जानता है!