विपुल रेगे। बॉलीवुड की ओर से हिन्दू धर्म पर आक्रमण सतत जारी है। अब सांस्कृतिक आतंकवादियों ने नए उभरते सितारे कार्तिक आर्यन पर दांव लगाया है। फिल्म निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने अपनी नई फिल्म की घोषणा की है। इस फिल्म का शीर्षक ‘सत्यनारायण की कथा’ रखा गया है। संभवतः कार्तिक को मालूम नहीं है कि इस फिल्म का उनके कॅरियर पर क्या असर होने वाला है। हालांकि अनुभवी निर्माता साजिद जानते हैं कि विवादों वाला शीर्षक रखने से उनकी फिल्म को मुफ्त का प्रचार तो मिलेगा, साथ ही सांस्कृतिक आतंक का एजेंडा भी पूरा होता रहेगा।
इस मंच पर बार-बार लिखा जा चुका है कि हिन्दू समुदाय की छवि नष्ट करने के लिए एक हज़ार पटकथाएं तैयार है। साजिद नाडियाडवाला की मंशा तो फिल्म का शीर्षक जानकर ही पता चल रही है। फिल्म निर्माता जानते हैं कि सत्यनारायण की कथा वाला शीर्षक उनकी फिल्म को रातोरात वायरल लिस्ट में ले आने वाला है।
कार्तिक आर्यन ने नाडियाडवाला को धन्यवाद दिया है। काश कि वे जानते कि इस शीर्षक के साथ बड़े सितारें काम करने से मना कर देते। संभवतः उन्हें बाद में पता चले कि उन्होंने हाथ में जलता हुआ अंगार रख लिया था। आज फिर उन दिशा-निर्देशों को याद करने का दिन है, जो देश के सूचना व प्रसारण मंत्री ने फिल्म उद्योग पर लागू किये थे।
उन दिशा-निर्देशों का अर्थ ये था कि फिल्म निर्माता स्वयं देखेंगे कि उनकी फ़िल्में विवाद तो पैदा नहीं करेगी। क्या साजिद को किसी भी एंगल से महसूस हुआ कि उनकी आगामी प्रेमकथा का शीर्षक बहुत अधिक आपत्तिजनक है। सत्यनारायण भगवान की हिन्दू धर्म के लिए क्या महत्ता है, क्या ये भी उन्हें बताया जाए ? वास्तव में ये फिल्म निर्माता जान गए हैं कि केंद्र सरकार के चिन्दी दिशा-निर्देश उन्हें सांस्कृतिक आतंक फैलाने से रोक नहीं सकते।
मीडिया लिखता है कि इस फिल्म की घोषणा के बाद प्रशंसक उत्साहित हैं। जब संवेदनशील प्रसंगों में मीडिया का इतना लचर रवैया हो, तो समझ में आता है कि बॉलीवुड कुछ मामलों में इतना दुःसाहसी क्यों है। संभवतः फिल्म को दर्शकों के बीच लोकप्रिय करवाने के लिए ये शीर्षक रखा गया हो। विरोध होते ही नाम बदलकर कुछ और रखा जा सकता है। हालांकि तब तक तो साजिद की फिल्म को बिना विज्ञापन ही भरपूर प्रचार मिल जाएगा।
क्या हिन्दू धर्म की मान्यताएं इन लोगों की फिल्मों को प्रचार दिलाने के लिए हैं। हम अभी देख रहे हैं कि मर्यादा पुरषोत्तम राम को लेकर दो फिल्मों की घोषणा की गई है। इन फिल्मों में राम और सीता के चरित्र को निभाने के लिए ऐसे कलाकारों से संपर्क साधा जा रहा है, जिनका जीवन विभिन्न प्रकार के विवादों में घिरा रहा है।
इससे समझ आता है कि हिन्दी फिल्म उद्योग उन्मुक्त और ढीठता का व्यवहार कर रहा है। निश्चित ही अगले कुछ दिनों में इस फिल्म का विवाद चारों ओर से प्रकट होगा। हिन्दुओं की ओर से किया गया स्वाभाविक विरोध, उनकी गुणवत्ताहीन फिल्मों को प्रचार दिलाने का ईंधन बन जाएगा।