अनुज अग्रवाल. चीन के जैविक हथियार कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को बर्बाद कर दिया है। पिछले 14 माह से हर देश में बीमारों और लाशों के ढेर लग रहे हैं। अर्थव्यवस्थाऐ चौपट हो चुकी हैं और बेरोज़गारों की संख्या रोज़ बढ़ रही है।
दुनिया की जीडीपी 15-20% घट चूकी है। अंतत: आस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, फ़्रांस और अमेरिका ने सीधे सीधे इस महाआपदा और महामारी की आड़ में शुरू हुए जैविक युद्ध के लिए चीन को कठघरे में लेना शुरू कर दिया है , किंतु भारत सरकार के मुँह में जैसे दही जमा हो या यूँ कहें घिग्घी ही बंध गयी हो। न वो चीन को दोषी ठहराने को तैयार न ही उसके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही को तैयार। उल्टे चीन से व्यापार और वार्ता दोनो नई ऊँचाइयों पर हैं।
अमेरिका में चीन के समर्थन से डेमोक्रेटिक जो बाईडेन के राष्ट्रपति बन जाने के बाद भारत की कूटनीति की धार कुंद पड़ गयी है और मोदी सरकार अनिश्चितता की स्थिति में है।
सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन, किसान आंदोलन और कोरोना की दूसरी लहर के क़हर ने देश को बदहाली व अराजकता के कगार पर का खड़ा किया है और मोदी सरकार की साख , लोकप्रियता व धार को ख़ासा कमजोर कर दिया है। क्या भारत ने चीन के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है ? पूरी दुनिया में कोरोना से हुई मौतों का आँकड़ा तीस लाख से ऊपर पहुँच चुका है और डबल्यूएचओ का मानना है कि वास्तविक मौतें इसकी तीन गुना हैं।
मानसिक सदमे व अन्य बीमारियों का इलाज न मिलने , भुखमरी व बेरोज़गारी के कारण भी इस आँकड़े से कई गुना मौतें देश व दुनिया में हो रही हैं। हर देश वास्तविक आँकड़े छिपा रहा है। भारत में जितने आँकड़े दिए जा रहे है , राज्यवार वास्तविकता उससे दस बीस पचास या सौ गुना तक अधिक हो सकती है। यह अत्यंत भयावह स्थिति है।
इस एक तरफ़ा जैविक युद्ध में कोई भारतीय ऐसा नहीं जिसने अपनो को न खोया हो। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि किसी देश को दुश्मन घोषित करने के मापदंड क्या होने चाहिए व जीवन जीने के क्या मापदंड होने चाहिए? क्या हमें वायरस के भय व आतंक के साये में कुत्ते की मौत स्वीकार है या दुश्मन का बहादुरी से सामना करते हुए सीने पर गोली खाकर ? इस चिंतन के बीच एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या चल रहे इस नरसंहार के पीछे दुनिया की सभी सरकारों की मौन स्वीकृति व गुप्त अजेंडा है ? यदि नहीं तो सामूहिक प्रतिकार की मात्र आवाज़ ही क्यों उठती है कोई बड़ी कार्यवाही चीन और मेडिकल माफिया के ख़िलाफ़ क्यों नहीं हो रही ? क्या सच में इतने गिलगिले , लालची, कमजोर, कायर और रीढ़विहीन और चीन के आगे बेबस हो गयी है दुनिया?