रामेश्वर मिश्रा पंकज। गुड फ्राइडे पर विभिन्न ईसाई संगठनों समूहों और पादरियों द्वारा जारी फोटो को ध्यान से देखें जिसमें वे पतित लोगों के चरण धो रहे हैं। स्पष्ट है कि किसी को पतित कहते हुए फिर उसके चरण धोना यह ईसाई परंपरा है । भारत में कतिपय हिंदू नेता तथा अन्य उत्साही लोग ,उन लोगों के,जिन्हें वे स्वयं दलित या उपेक्षित या वंचित आदि बताते हैं उनके ही पैर धोने का जो नाटक करते हैं,
वह स्पष्ट रूप से पूरी तरह ईसाई परंपरा है और वे लोग चित् से ईसाई हो चुके हैं। हिंदू वह है जो उस के पैर धोए, जिसके प्रति उसे गहरी श्रद्धा है और यह श्रद्धा उस व्यक्ति के शील,चरित्र और ज्ञान के कारण हो। ना तो उसके किसी पृष्ठभूमि के कारण, ना परिवार के कारण। पतित के पैर धोने का हिंदू धर्म की किसी परम्परा से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है ।अतः जो लोग उन्हें पतित या दलित बताते हुए फिर पैर धोते हैं , वे सब चित्त से ईसाई हो चुके लोग हैं । उनका हिन्दू धर्म के ज्ञान, शील और चरित्र से कोई संबंध दूर दूर तक नहीं है
( आदरणीय श्री रामेश्वर मिश्र पंकज जी की वाल से …)