सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट में दिल्ली दंगे के मामले की पैरवी के लिए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता समेत कुछ अन्य वकीलों को नियुक्त किए जाने को दिल्ली पुलिस ने सही ठहराया है।
दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट से कहा कि उन लोगों की नियुक्ति राष्ट्रपति और उपराज्यपाल के निर्णय के आलोक में किया गया है। इसे मानना दिल्ली सरकार के लिए बाध्यकारी है।
संबंधित अदालत के न्यायमूर्ति इस मामले को जनहित याचिका माना और उसकी सुनवाई जनहित याचिका के मामले की सुनवाई करने वाले पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश दिया। अब इस मामले में 15 मार्च को सुनवाई होगी।
सनद रहे कि दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली सरकार की नियुक्ति संबंधी आदेश को न मानते हुए दिल्ली पुलिस की सिफारिश पर वकीलों की नियुक्ति की मंजूरी दी थी।
दिल्ली पुलिस ने यह जवाब दंगा मामले में एसपीपी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली दिल्ली अभियोजक कल्याण संघ (डीपीडब्ल्यूए) की याचिका पर दिया है।
आप सरकार की ओर से पेश वकील गौतम नारायण ने कोर्ट को बताया कि शुरुआत में दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस द्वारा भेजी गई एसपीपी की सूची खारिज कर दी थी और अपनी सूची भेजी थी।
बाद में उपराज्यपाल ने मामले में हस्तक्षेप किया और उन्होंने दिल्ली सरकार की सूची से असहमति जताई, जिसके बाद मामले को राष्ट्रपति के समक्ष भेजा गया। उन्होंने कहा राष्ट्रपति ने दिल्ली पुलिस की सूची को मंजूरी दी थी।
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने केवल एसपीपी की नियुक्ति के संबंध में अधिसूचना जारी की थी। हालांकि, दिल्ली सरकार ने इनकी नियुक्ति नहीं की है।
गौरतलब हो कि दिल्ली दंगों के मामलों की दिल्ली सरकार की ओर से पैरवी करने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता समेत दूसरे वकीलों को स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर्स के पद पर नियुक्ति को चुनौती के लिए याचिका दायर की गई थी।
इस याचिका पर 15 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट सुनवाई करेगा जबकि इस मामले में हाईकोर्ट केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर चुका है। दरअसल इन नियुक्तियों को लेकर सरकार और उपराज्यपाल में मतभेद है और यह याचिका दिल्ली प्रोसिक्युटर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने दायर की है।
याचिकाकर्ता की ओर से वकील आदित्य कपूर, कुशल कुमार, मेनका गुरुस्वामी और आकाशदीप गुप्ता ने याचिका में मांग की है कि दिल्ली सरकार के 24 जून के उस नोटिफिकेशन को निरस्त किया जाए,
जिसमें उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के लिए ग्यारह पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति की गई । याचिका में कहा गया है कि इन पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति दिल्ली पुलिस की अनुशंसाओं पर की गई थी
जबकि पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति के समय दिल्ली सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच मतभेद थे। इस मामले को लेकर उपराज्यपाल ने हस्तक्षेप करते हुए दिल्ली पुलिस की अनुशंसाओं पर अपनी मुहर लगा दी जबकि याचिका में कहा गया है
कि पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति करने का नोटिफिकेशन अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 24 का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति के लिए कोई मानदंड तय नहीं किए गए थे।
क्या इन वकीलों के पास पूर्व में दंगों से जुड़े मामलों को निपटाने का पर्याप्त अनुभव रहा है और दिल्ली पुलिस की अनुशंसाओं के आधार पर पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति करना संविधान की धारा-21 के तहत निष्पक्ष और स्वतंत्र न्याय पाने के अधिकार का उल्लंघन है। आपको बता दे कि
दिल्ली में हुए दंगों से संबंधित एफआईआर के मामले में उपराज्यपाल ने स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर नियुक्त किया है उनमें मनोज चौधरी, राजीव कृष्ण शर्मा, नितिन राज शर्मा, देवेन्द्र कुमार भाटिया, नरेश कुमार गौड़, अमित प्रसाद, जितेंद्र जैन, राम चंदर सिंह भदौरिया, उत्तम दत्त और सलीम अहमद आदि के नाम शामिल हैं।