कल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मीडिया पर जो टिप्पणी की है, वह कहीं न कहीं गैर जिम्मेदार और तानाशाही रवैया अख्तियार करने वाले मीडिया हाउसों और लुटियंस पत्रकारों को आईना दिखाने की कोशिश है। डेरा सच्चा सौदा के मामले में जिस तरह से कुछ मीडिया हाउस ने प्रधानमंत्री पर हमला किया, और वह भी हाईकोर्ट की आड़ लेकर वह पूरी तरह से मीडिया की या तो अज्ञानता है या फिर दरबारी-मीडिया का एजेंडा! पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि ‘हमने प्रधानमंत्री पर किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं की थी, लेकिन मीडिया ने बेवजह इसे उछाला।’
हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट की पूर्ण खंडपीठ ने कहा, ‘हमने 26 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री पर कोई टिप्पणी नहीं की थी, लेकिन कुछ चैनलों ने इस तरह का समाचार चलाया! कुछ अखबारों ने भी ऐसी खबर छापी। मीडिया को ऐसी रिपोर्टिंग नहीं करनी चाहिए।’ इस संबंध में एक जनहित याचिका दायर की गयी थी, जिसके बाद तीन जजों की पूर्ण खंडपीठ ने कहा कि ‘जिस संदर्भ में ऐसी बात कही गयी थी, उसमें ऐसा कुछ नहीं था, जिसे प्रधानमंत्री से जोड़ा जा सके। मीडिया ने हाईकोर्ट की टिप्पणी को गलत ढंग से पेश किया है।’
आप देखिए कि जिन मीडिया हाउसों ने डेरा सच्चा सौदा के मामले में अदालत द्वारा सख्त कार्रवाई के आदेश देने को प्रधानमंत्री पर हमले से जोड़ कर अपना एजेंडा चलाया था, आज उन्होंने इसी हाईकोर्ट की आईना दिखाती टिप्पणी को न तो चलाया है और न ही दिखाया है! इस देश के कुछ मीडिया हाउस और लुटियंस पत्रकारों की बिरादरी इस तरह का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार केवल इसलिए कर रहे हैं कि वह 2002 से ही नरेंद्र मोदी को अपनी प्यारी पार्टी कांग्रेस का शत्रु मानकर चल रहे हैं!
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस तरह से संसद के गलियारे में दलाल पत्रकारों का घूमना बंद हुआ है, जिस तरह से पत्रकारों के गैर वाजिब मांगों को मानने से मना किया गया है, जिस तरह से पत्रकारों के सरकार प्रायोजित विदेशी दौरे पर रोक लगी है, जिस तरह से विभिन्न आयोगों, संस्थाओं, राज्यसभा और पद्म पुरस्कारों में पत्रकारों की लॉबिंग को दरकिनार किया गया है, जिस तरह से कालेधन को सफेद करने के धंधे में लगे मीडिया हाउस पर कार्रवाई शुरु हुई है, जिस तरह से मीडिया के हवाला रैकेट का पर्दाफाश हुआ है- उससे यह मीडिया हाउस और पत्रकार विचलित हैं। कांग्रेस का शासन इन सारे कुकर्मों को करने की उन्हें आजादी देती थी, जो अब छिन गयी है!
कांग्रेस शासित यूपीए में मुख्यधारा की मीडिया और लुटियंस पत्रकार खुद को इस देश का भाग्यविधता मानने लगे थे। उन्हें यह गुमान था कि वह जनता को जो सच-झूठ दिखाएंगे, जनता उसे ही मानेगी, उन्हें यह गुमान था कि वह जनता और सरकार के बीच वहीं केवल मध्यस्थ हैं, उन्हें यह गुमान था कि वह एक प्रिविलेस क्लास हैं जो हर वह सुविधा भोगने का अधिकारी है, जो वीआईपी श्रेणी में आता है-ऐसे पत्रकारों और मीडिया हाउसों को मोदी सरकार में निराशा हाथ लगी है, जिस कारण तीन साल बाद भी वह देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ शत्रुता का भाव बनाए हुए हैं। कल उदयपुर की जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी भावुक भी हो गये और कहा कि ‘जिस तरह से उन पर लगातार हमला किया गया है, कोई और होता तो टूट जाता।’
दोहरा चरित्र और एजेंडा आधारित पत्रकारिता के कारण सोशल मीडिया के इस युग में भारतीय मुख्यधारा की मीडिया और पत्रकार आज विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहे हैं! हर राष्ट्रविरोधी तत्व, वह चाहे जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वाले हों या हिज्बुल का आतंकी बुरहान वानी- उनके साथ लुटियंस पत्रकार व मीडिया हाउस खड़े नजर आते हैं। अमेरिका तक में जाकर यह लोगों में वैमनस्यता उत्पन्न करने की कोशिश में एनआरआई से हाथापाई कर चुके हैं! मीडिया अब भी नहीं चेती तो सोशल मीडिया के इस युग में जिस तरह से यह अप्रासांगिक हो रही है, उसमें और तेजी ही आएगी! फिर यह चिल्लाते फिरेंगे कि मोदी सरकार तानाशाही कर रही है! लेकिन सच तो यही है कि मोदी सरकार के तीन साल के दौरान बड़े मीडिया हाउसों और लुटियंस पत्रकारों का एक-एक एजेंडा जिस तरह से जनता के समक्ष आ रहा है, उससे इन पर घोर विश्वसनीयता का संकट उत्पन्न हो गया है।
मुझे याद है, और मैंने अपनी पुस्तक ‘निशाने पर नरेंद्र मोदीः साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी’ में इसे लिखा भी है कि गुजरात दंगे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने तो खुलकर गुजरात के खिलाफ साजिश करने वालों में मीडिया और पत्रकारों को शामिल किया था। गुजरात दंगे के बाद जस्टिस जी.एस.तेबतिया कमेटी ने साफ-साफ लिखा कि दिल्ली की मीडिया ने गुजरात दंगे की वस्तुनिष्ठ और तथ्यगत रिपोर्टिंग नहीं की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि दिल्ली की मीडिया ने तथ्य की जगह विचार को आधार बनाकर गुजरात सरकार पर हमला करने के उद्देश्य से रिपोर्टिंग की।
दो-दो बड़े आयोगों की रिपोर्ट और आज पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट की टिप्पणी यह दर्शा रही है कि दिल्ली की लुटियंस मीडिया जनता के प्रति जिम्मेदारी से अधिक अपने एजेंडे को बढ़ाती रही है। यह वह एजेंडा है जिसे कांग्रेस-कम्युनिस्ट बिरादरी सेट करती है और कुछ एलिट पत्रकार एक राष्ट्र के रूप में भारत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी भारतीय जनता पार्टी और हिंदू समाज को नीचा दिखाने के लिए उस एजेंडे को आगे बढ़ाने के धंधे में लगे हैं। लुटियंस मीडिया अभी भी नहीं चेती तो वह दिन दूर नहीं, जब वह कब्र में दफन नजर आएगी! उसकी अधिकांश विश्वसनीयता पहले ही समाप्त हो चुकी है, बची-खुची बचा ले तो भी गनीमत है!