हमारे बच्चों को हम अपनी मातृभाषा हिंदी ठीक से नहीं सिखाते, क्योंकि हम स्वयं ही शुद्ध हिंदी न लिख पाते हैं, और न बोल पाते हैं! संस्कृत के सबसे निकटस्थ हिंदी ही है। इसकी वर्णमाला आध्यात्मिक, स्पष्ट और पूरी ज्ञान यात्रा को अपने में समेटे हुए है। श्रुति कहते ह़ै, ‘अ’ वर्ण ही संपूर्ण वाक् यानी वाणी है। और वह वाक् स्पर्श ( क से म तक के 25 वर्ण), अंतःस्थ (य, र, ल, व) तथा ऊष्म (श, ष, स, ह) अक्षरों के रूप में अभिव्यक्त होकर अनेक तथा विविध रूपों वाला हो जाता है।
कितनी वैज्ञानिक व्याख्या है हमारे वर्णमाला की, है न? अब एक और वैज्ञानिकता पर गौर कीजिए-
हिंदी में कुल 52 वर्णमाला है, यह तो जानते हैं न आप? इसका पहला वर्ण है ‘अ’ और आखिरी वर्ण है ‘ज्ञ’। ‘अ’ होता है ‘अज्ञानता’ और ‘ज्ञ’ से होता है ‘ज्ञान।’
अब इसका तात्पर्य हुआ कि हिंदी अज्ञान से ज्ञान की यात्रा है। बच्चों को भी अ से ज्ञ तक की यात्रा करा कर ही तो हम उन्हें संपूर्ण अक्षर बोध देते हैं? इतने वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और संपूर्णता से और किसी भाषा का विकास नहीं हुआ है, इसीलिए हिंदी विश्व की एक मात्र भाषा है, जिसमें जो बोला जाता है, वही अक्षरशः लिखा भी जाता है!
यह ध्वन्यात्मक भाषा है। बोल-बोल कर पढ़ने से न केवल सारी इंद्रियों का रक्तप्रवाह सुचारू होता है, बल्कि उच्चारण दोष भी समाप्त होता है। संस्कृत आप नहीं बोल, पढ़, समझ या लिख पाते तो कम से कम हिंदी तो बोलिए, लिखिए, पढ़िए और समझिए!
और हां, जब आपका बच्चा अंग्रेजी बोलता है तो आप खुश होते हैं, और जब हिंदी बोलता है तो आप चिंतित हो जाते हैं! है न? यह आपकी मानसिक दासता का परिचायक है। आप स्वतंत्र नहीं हैं, बस अन्य प्राणियों की तरह एक प्राणी हैं जो केवल इसलिए जन्मा है ताकि मर सके! बिना स्वतंत्र चेतना के मानव का कोई अस्तित्व नहीं, यह उपनिषद कहते हैं!
क्या आप जानते हैं कि अपनी भाषा को छोड़ कर दूसरी भाषा में सोचने, पढ़ने, शोध करने वाला दुनिया का एक भी देश विकसित देशों में शामिल नहीं है? आप आधुनिक बनने या स्वयं को साबित करने के लिए विदेशी भाषा के प्रति आग्रह रखते हैं न?
तो चलिए, आधुनिक विश्व का एक भी ऐसा विकसित देश बता दीजिए जो उधार की भाषा में सोचता, काम करता या शोध करता हो? सोचिए! और जब समझ आ जाए तो अपनी और अपने घर की भाषा को हिंदीमय बनाइए! यही सादर अनुरोध है। धन्यवाद!
URL: Hindi is full of science and spirituality
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