इस भरी दुनिया में अकेला हूं,
पुस्तकों से मेरी यारी है,
पुस्तकें ही छोड़ कर,
गुजर जाना चाहता हूं,
इस भरी दुनिया में हां अकेला हूं।
सुन रहा हूं हर ओर का शोर,
बह रहा हूं बस अपनी ओर,
अपने अंदर और डूब जाना चाहता हूं,
हां दुनिया से दूर मैं अकेला हूं।
पत्थरों से टकरा रहा हूं नदी की तरह,
पेड़ से टूट रहा हूं पत्तों की तरह,
टकरा और टूटकर भी,
वह लक्ष्य साधना चाहता हूं,
हां, भरी दुनिया में मैं नितांत अकेला हूं।