हिन्दू संघर्ष समिति (Hindu Struggle Committee) श्रीलंका में लगातार प्राचीन मंदिरों को सरकार द्वारा निर्माण व विकास कार्यों के नाम पर ध्वस्त किया जा रहा है ।
ये मंदिर बहुत ही प्राचीन ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व के है , ऐसा लग रहा है कि श्रीलंका सरकार हिन्दू तमिल समुदाय काँ सांस्कृतिक नरसंहार कर रही है ।
हाल ही में श्रीलंका के राष्ट्रपति कामिल विक्रमसिंघे भारत आने वाले है , ऐसे में इस मुद्दे को लेकर दुनिया भर के हिन्दू संगठनों में एक तीव्र रोष है . श्रीलंका में वर्तमान सरकार के आने के बाद मंदिरों के स्वरूप को बिगाड़ने व उन्हें पुरातत्व सर्वे व विकास व विनिर्माण कार्यों के नाम पर ध्वस्त करने को असहनीय अपराध माना जा रहा है ।
हिन्दू संघर्ष समिति के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अरुण उपाध्याय इसे हिन्दूओं और भारत के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण कृत्य मानकर इसकी कड़ी निंदा करते हुयें कहते हैं कि भारत सरकार को भी इस पर संज्ञान लेकर तुरंत कड़ी आपत्ति जतानी चाहियें ।

उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुये कहा कि श्रीलंका के हालिया आर्थिक संकट के बाद भारत उसका सबसे बड़ा मददगार बनकर सामने आया है उसके बाद भी यदि श्रीलंका की सरकार वहॉं पर मंदिरों का ध्वंस कर रही है तो ये कदम दोनों देशों के मैत्री संबंधों के लियें घातक है ।
ग़ौरतलब है कि भारत के पर्यटक जो वहॉं पर रामायण कालीन धार्मिक स्थलों का दौरा करते है वो श्रीलंका के पर्यटन उद्योग का सबसे बड़ा घटक है , ऐसे में श्रीलंका सरकार के ये कदम प्रतिगामी और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है । हिन्दू संघर्ष समिति इसकी कड़ी निंदा करती है और भारत सरकार से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने की माँग करती है ।
इसके साथ साथ हिन्दू संघर्ष समिति दक्षिण अफ़्रीकी राजनेता नलदेई पंडोर द्वारा श्रीलंका सरकार के अधिकारियों को दिए गए निमंत्रण की कड़ी निंदा करता है। श्रीलंका सरकार के प्रतिनिधियों को दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर बुलाया जा रहा है जहाँ श्रीलंका में ट्रुथ रिकन्सीलेशन कमीशन (टीआरसी) को कैसे स्थापित किया जाए विषय पर बातचीत होगी।
इस आयोग की स्थापना के लिए श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी और न्याय मंत्री विजयदास राजपक्षे को दक्षिण अफ्रीका का निमंत्रण दिया गया है। हिन्दू संघर्ष समिति इस आयोग की स्थापना के लिए श्रीलंका के राजनेताओं को निमंत्रण देने की कड़ी निंदा करता है और यदि ऐसा होता है तो यह अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के मूल्यों पर तमाचा मारने जैसा होगा क्योंकि अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के साथ दुनिया के महान नेताओं का नाम जुड़ा हुआ है जैसे नेल्सन मंडेला और चीफ अल्बर्ट लुथूली आदि।
टीआरसी का मॉडल श्रीलंका में लागू करवाने का मतलब ऐसा होगा मानो स्वयं आक्रांता को ही सताए गए पीड़ितों को न्याय देने का काम दिया गया हो ! यह उल्टा चोर कोतवाल को डॉंटने जैसा बिलकुल हास्यपद विचार है। अली साबरी जोकि दो भूतपूर्व राष्ट्रपति महिंदा और गोटबाया राजपक्षे दोनों के पुराने करीबी रहे हैं और इन दोनों ही राष्ट्रपतियों पर तमिल हिंन्दुओं के प्रति युद्ध अपराध के गंभीर मामले चल रहे हैं। श्रीलंका टीआरसी की स्थापना के बहाने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है ताकि अंतरष्ट्रीय समुदाय को ऐसा लगे कि श्रीलंका खुद से युद्ध अपराध के आरोपों की पूरी सच्चाई से जांच कर रहा है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि टीआरसी की यह पहल ऐसे समय में चल रही है जब यूएनएचआरसी में श्रीलंका के युद्ध अपराधों के बारे में चर्चा निर्णायक स्तर पर पहुँच गयी है। अब अगर ऐसे समय में टीआरसी का मॉडल लागू किया जाता है तो श्रीलंका के मानव अधिकार के हत्यारे और युद्ध अपराधी कानून के भय के बिना दंड मुक्त जीवन जीते रहेंगे।
हिन्दू संघर्ष समिति ने पिछले साल सैंडिले शल्क से इस विषय पर बात करी थी तब उच्चायुक्त सैंडिले शल्क हिन्दू संघर्ष समिति से सहमत थे कि श्रीलंका के मामले में टीआरसी मॉडल लागू नहीं किया जा सकता। इसके निम्नलिखित कारण हैं :
1 ) बहुंसख्यक सिंहली समुदाय ने अपने कुकृत्यों को स्वीकार नहीं किया है।
2 ) तमिलों, मुस्लिम और क्रिस्चियन समुदाय पर अभी भी अत्याचार किये जा रहे हैं।
3 ) पीड़ित समुदायों के गृह क्षेत्रों में भारी मात्रा में सेना की संख्या बढ़ा दी गयी है।
4) वर्तमान में सरकारी शह पर वहॉं गौहत्या और मंदिरों के ध्वस्तिकरण के मामले बढ़े है
अब सैंडिले शल्क अपनी बात से पलट गए हैं जोकि आश्चर्यजनक है। जाहिर है, श्रीलंका सरकार ने तमिलों के साथ जो अमानवीय अपराध किये हैं उसके कारण श्रीलंका आईएमएफऔर विदेशी निवेशकों के जबरदस्त दबाव में है। ऐसे में टीआरसी मॉडल को लागू करवाने के लिए श्रीलंका की तत्परता सिर्फ एक छलावा मात्र हैं जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और विशेषकर यूएनएचआरसी को बरगलाया जा सके जोकि श्रीलंका के युद्ध अपराधों पर सख्त कदम उठाने का मन बना चुकी है।
हिन्दू संघर्ष समिति ने मंत्री नलदेई पंडोर से श्रीलंका में हाशिए पर पड़े तमिलों, मुस्लिमों और ईसाइयों और दक्षिण अफ्रीका और डायस्पोरा के उन तमाम लोगों से एक अनारक्षित माफ़ी माँगने के लिए कहा है जिन्होंने एक दशक से अधिक समय डिपार्टमेंट ऑफ़ इंटरनेशनल रिलेशन्स एंड कॉपरेशन (साउथ अफ्रीका का विदेश मंत्रालय ) के साथ मिलकर काम किया है।
ऐसे में अब भारत श्रीलंका संबंधों को लेकर भारत सरकार को वहॉं पर हिन्दू समुदाय व भारत के हितों को लेकर फूंक फूंक कर कदम उठाने होगें ।
श्रीलंका के वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व की मंशा संदिग्ध है और उन्हें भारत से मैत्री पूर्ण संबंध बनाये रखने के लिये अपनी कृतघ्नता की आदत को छोड़ना होगा ॥