प्रो. रामेश्वर मिश्र ‘पंकज’ एक नई कार्टूनों की मंडली खड़ी हो गई है और नित नई कार्टून मंडली खड़ी हो रही हैं,जो यह कहती है कि हम तो जगे हुए हैं, तुम सो रहे हो ।।हम तुम्हें जगाने आए हैं। परंतु वे इस बात का कोई लक्षण और प्रमाण नहीं देते कि आखिर वे कौन हैं? अगर वह हम में से एक हैं तो वह क्यों जगे हैं, आप हम क्यों सोए हैं ?
न में ऐसी क्या खासियत है कि वह जगे हैं और हम में ऐसी क्या कमी है कि हम सोए हैं? सीधे उत्तर तो वे नहीं देते । पर जब बातचीत करो तो पता चलता है कि वह कम्युनिस्ट या किसी हिन्दूवादी कथित मतवाद से उत्तप्त हैं। या अपने संगठन के संस्थापक या अपने गुरु या अपने प्रिय व्यक्ति के विचारों को हमारे ऊपर आरोपित करना चाहते हैं और इसे ही वे इस पदावली में व्यक्त कर रहे हैं कि वे जगे हुए हैं और हम सोए हुए हैं।
अब इस पर उत्तर का परंपरागत तरीका तो यह था कि हम उठाएं डंडा और लगे सोटने या पटक कर उन की छाती पर अपना लात रख दें।। परंतु वर्तमान भारत कोई स्वतंत्र समाज नहीं है। यहाँ विदेशी प्रेरणा से संचालित अनेक मतवाद शक्तिशाली हैं और उन को राज्यकर्ताओं का भरपूर संरक्षण प्राप्त है वे राज्य के द्वारा वित्तपोषित हैं और कानून के नाम पर तरह-तरह के मकड़जाल से उन को छूट दी गई है और हमें बाँधा गया है।।
इसलिए न तो हम उन को पटक कर उन की छाती पर लात रख सकते और ना ही हम डंडों से उन की पिटाई कर सकते। उल्टे वही हमें फँसा देंगे।
बस, हम इतना ही कर सकते हैं कि गहरे तिरस्कार से उन्हें देखें और हाथ जोड़ कर मुँह फेर लें या अवसर हो तो ठोक दें।”