साइयत और इस्लाम में चले गए हिन्दुओं को वापस हिन्दू समाज में लाने के कार्य को हमारे आधुनिक मनीषियों ने भी महत्वपूर्ण बताया था। लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, महामना मदन मोहन मालवीय, और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं ने ही नहीं, बल्कि स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, और श्रीअरविन्द ने इस का समर्थन किया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे राजनीतिक आंदोलन से भी अधिक महत्वपूर्ण माना था।
श्रीअरविन्द ने भी कहा था, ‘‘हिन्दू-मुस्लिम एकता ऐसे नहीं बन सकती कि मुस्लिम तो हिन्दुओं को धर्मांतरित कराते रहें जबकि हिन्दू किसी भी मुस्लिम को धर्मांतरित न करें।’’ डॉ. श्रीरंग गोडबोले ने ‘शुद्धि आंदोलन का संक्षिप्त इतिहास: सन 712 से 1947 तक’ नामक पुस्तक में इसी का संक्षिप्त,प्रामाणिक आकलन किया है।
आज भी विदिशा, मध्यप्रदेश में बेसनगर के पास ई.पू. 110 का बना हुआ हेलियोडोरस स्तंभ है, जिसे एक यूनानी दूत ने भागवत धर्म स्वीकार करने के बाद बनवाया था।
हिन्दू समाज ने प्राचीन काल से ही अनेक बाहरी लोगों को अपनाया था। महाभारत के शान्ति पर्व (65वें अध्याय) में भी यवनादि विदेशियों को वैदिक धर्म में शामिल करने का परामर्श मिलता है। प्रसिद्ध विद्वान आर. जी भंडारकर (1837-1925) ने भी प्राचीन काल में विदेशियों को हिन्दू समाज में अपनाने का विवचेन किया है।
जाने-माने अरब यात्री अल बिलादुरी ने जिक्र किया है कि सिंध में पहली मुस्लिम जीत के बाद बने मुसलमान जल्द ही पुन: हिन्दू धर्म में आ गए। इतिहासकार डेनिसन रॉस ने भी यह लिखा है। मुस्लिम देशों से पलायन कर भारत आए गुलामों के शुद्धिकरण का वर्णन अल-बरूनी ने भी किया है। गुजरात के राजा भीमदेव के सामने महमूद गजनवी की पराजय के बाद भी अनेक मुसलमान शुद्ध होकर राजपूतों में शामिल किए गए थे।
खिलजी वंश का नाश भी एक जबरन धर्मांतरित मुस्लिम, खुश्रु खान ने ही हिन्दुओं के सहयोग से किया था। फिर उसने अपने महल और मस्जिद में हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा शुरू करवा दी, गोहत्या बंद कराई और हिन्दू राज्य कायम किया। यह वर्णन प्रसिद्ध लेखक जियाउद्दीन बरनी ने किया है। सुलतान मुहम्मद तुगलक के काल में दक्षिण भारत में हरिहर और बुक्का के धर्मांतरित होने और स्वामी विद्यारण्य (1296-1391) की प्रेरणा से पुन: हिन्दू होकर विजयनगर साम्राज्य बनाने की कथा भी जानी- मानी है।
जियाउद्दीन बरनी ने फिरोज शाह तुगलक के समय एक ब्राह्मण को दंडस्वरूप जिंदा जलाए जाने का वर्णन भी किया है, जो मुसलमानों को हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धावान बनाया करता था। डॉ. गोडबोले ने इसे ‘शुद्धि’ के लिए प्रथम बलिदान का उदाहरण माना है। कश्मीर का सुलतान गियासुद्दीन (15वीं सदी) भी अपनी हिन्दू श्रद्धा के लिए जाना जाता है। उस ने पहले बलपूर्वक बनाए गए मुसलमानों को पुन: हिन्दू बनने के लिए प्रोत्साहन दिया।
14वीं सदी में कश्मीर के शाह मीर ने अपनी कुछ बेटियों का विवाह ब्राह्मण सरदारों से किया था। सिकंदर बुतशिकन के समय मुसलमान बने अनेक लोग पुन: हिन्दू धर्म में आ गए थे, इस का वर्णन तबकाते-अकबरी के लेखक ख्वाजा निजामुद्दीन अहमद (16वीं सदी) ने भी किया है। पंडित कंठ भट्ट या निर्मल कंठ ने व्यवस्थित रूप से शुद्धिकरण परिषद आयोजित की थी, यह उल्लेख मिलता है।
कश्मीर में 19वीं सदी में भी राजा सर रणवीर सिंह ने बाकायदा एक ‘श्रीरणवीर कारित प्रायश्चित ग्रंथ’ का ही निर्माण करवाया था, जिस में म्लेच्छ बने लोगों की शुद्धि- व्यवस्था पर अध्याय दिया गया है। 16वीं सदी में जोधपुर के राजा सूरजमल ने आक्रमणकारी पठानों द्वारा अपहृत 140 हिन्दू बालिकाओं को छुड़ाने में ही अपने प्राणों की आहुति दी थी। उसी सदी में जैसलमेर के महारावल लूणकरण ने एक विशाल यज्ञ करा कर विगत सदियों में जबरन धर्मांतरित हुए लोगों की शुद्धि करवायी।
17वीं सदी में औरंगजेब के काल में भी शुद्धि के अनेक प्रयत्न हुए। पंजाब के होशियारपुर के एक हिन्दू का इस्लाम में धर्मांतरण हुआ था। उसकी शुद्धि पर उसे बंदी बना लिया गया। विरोध में होशियारपुर के हिन्दुओं ने हड़ताल की थी। स्पष्ट है कि शुद्धिकृत व्यक्ति के प्रति हिन्दू समाज की सहानुभूति हुआ करती थी। 17वीं सदी में ही कीरतपुर (होशियारपुर) के संन्यासी कल्याण भारती के फारस जाकर मुसलमान बन जाने, मगर अनुभव से पुन: इस्लाम त्यागकर हिन्दू बनने की घटना भी मिलती है। स्वदेश आगमन पर उस का भव्य स्वागत हुआ था।
यह वर्णन दबिस्ताने मजाहिब के लेखक फानी (19वीं सदी) ने दिया है। उस ने कई मुस्लिमों के वैष्णव बैरागी बनने की जानकारी भी दी है। डॉ. गोडबोले के अनुसारए शुद्धि आंदोलन के सब से प्रमुख प्रणेता संतशिरोमणि स्वामी रामानन्द (1299-1410) को ही मानना चाहिए। उस समय दिल्ली में तुगलक वंश का राज था। स्वामी जी ने मुसलमान बने हजारों राजपूतों को अयोध्या में विलोम-मंत्र द्वारा समारोह पूर्वक हिन्दू बनाया।
संत रैदास (15-16वीं सदी) के प्रभाव से भी कुछ मुस्लिम हिन्दू बने थे। उसी काल में चैतन्य महाप्रभु भी हुए जिनके प्रभाव में भी मुसलमान के हिन्दू बन जाने के विवरण मिलते हैं। उन के अंतरंग शिष्य ठाकुर हरिदास पहले मुसलमान ही थे।