सारा कुमारी. आज-कल घर वापसी का मुद्दा फिर से बहुत जोर पकड़ रहा है, भारत में सदियों से घर वापसी की परंपरा रही है, पूर्व में भी बप्पा रावल और स्वामी श्रद्धानंद जी ने समय समय पर घर वापसी की मुहिम चलाई है। परन्तु आज मैं सनातन धर्म से इसलाम और ईसाईयत में चले गए हमारे भाई-बहनों के घर वापसी की बात नहीं कर रहीं हूं। बल्कि हिन्दू भाई बहनों के घर वापसी की बात कर रही हूं, ज़ी हां नाम से तो वो अभी भी हिन्दू ही हैं, परन्तु आचार व्यवहार में, संस्कृति का सही ढंग से पालन करने में, और सबसे बड़ी बात अपने हिन्दू भाई बहनों से करुणा, प्रेम और सहानुभूति दिखाने से कोसों दूर है। केवल नाम के हिन्दू है।
ईसाई और इस्लाम में चले गए, भारतीय भाई बहनों से भी पहले हम सभी को हिन्दूओं की घर वापसी का प्रयास जोर शोर से चलाना चाहिए, अन्यथा हम अपनी लड़ाई में सदैव हारते रहेंगे, क्योंकि ये ( क्षदम हिन्दू ) लोग दुश्मन के लिए क़िले का दरवाजा अंदर से खोल देते हैं, और हम पूर्ण तैयारी तथा ताकतवर होने के बावजूद हार जाते हैं। यूं तो जब आधुनिक काल नहीं था, राजा महाराजा का शासन हुआ करता था, तभी से ऐसा होता आ रहा है, तब इन जयचन्दो की वजह से हम युद्ध हारते भी थे, परन्तु बहुत से स्पष्ट दृष्टि रखने वाले और शूरवीर राजाओं की वजह से युद्ध जीतते भी थे, तब हार जीत दोनों का ही सामना होता था।
परन्तु गौर से देखेंगे तो आधुनिक युग में, लगभग 1900 ईस्वी से हम केवल हार रहे हैं, एक बार भी जीत नहीं रहे, सनातन सभ्यता और संस्कृति का केवल क्षय हो रहा है, हानि हो रही है। हमारी संस्कृति के पुरातन वैभव, गौरवशाली इतिहास की फिर से पुनरावृत्ति नहीं हो पा रही है। जो भी हमारे श्रृषि मुनियों ने अथक प्रयास कर के, और हमारे पुरखों ने कड़ा संघर्ष करके जोड़ा था, वो सभी कुछ हम शनैः शनैः खोते ही जा रहे हैं। और आज हम ऐसे मुकाम पर खड़े हैं, एक संकरे रास्ते पर खड़े हैं, यदि अभी हम ध्यान से नहीं चले, हमनें जरा सा भी संतुलन खोया, खुद को संभाल नहीं पाए तो शायद आगे फिर कभी मौका ही ना मिले। हम शायद पारसियों की तरह बिखरे हुए, विश्व के अलग-अलग कोने में जीवन यापन को विवश हो जाएं। और राम, कृष्ण, शिव की धरती पर म्लेच्छ वास करें।
हमें ना सिर्फ इस विकट स्थिति का सामना करना है, इसमें विजयी होना है, अपितु उससे भी महत्वपूर्ण आने वाली पीढ़ी को आगाह करना है कि कौन हमें यहां तक, इस विकट स्थिति तक लाया, जिससे वो इन कालनेमियो से सावधान रहें, स्वयं की और अपने धर्म की रक्षा कर सके। यथा राजा तथा प्रजा यह कहावत हम सबने सुनी भी है, और इतिहास में ऐसे कई उदाहरण भी मिलते हैं, जब राजा ने धर्म परिवर्तन कर लिया तो उसके साथ साथ पूरी प्रजा ने भी धर्म परिवर्तन कर लिया।
परन्तु गांधी के समय से हम ऐसे शासक वर्ग से जुझ रहे हैं, जो मैजोरिटी हिन्दुओं के बल पर ही राजा बनता है, और फिर उन्हीं हिन्दुओं और हिन्दू आस्थाओं को छिन्न-भिन्न करने में लग जाता है। फिर भी जनता सोई रहती है, गांधी के ही गुणगान में लगी रहती है, और उसकी परिणति हमें विभाजन और लाखों हिंदुओं के कत्ल के रूप में मिलती है। जिस तरह colonial powers ने white supremacists के आड़ में पूरे विश्व को लूटा, वहां की स्थानीय सभ्यताएं बर्बाद करी, हिटलर ने नाज़ी की आड़ में यहूदियों का नरसंहार किया, उसी तरह आधुनिक काल में “fake secularism” की आड़ में गांधी से लेकर अबतक सभी भारतीय नेताओं ने भारतीय संस्कृति और उसको मानने वाले लोगों को दिन प्रतिदिन समाप्त करने में अपनी सभी शक्तियां ला दी है। इस देश को लूटा है, इससे नेता और उनके परिवार तो अमीर होते गए परन्तु भारतीयता गरीब होती गई।
यदि अभी हम इनसे सावधान नहीं हुएं, और सभी हिन्दू भाई बहनों की घर वापसी ( अब्बासी व सरकारी हिन्दू) करा कर उनको सावधान नहीं किया तो कल अत्यधिक विभत्स होगा। जिसका उदाहरण हमें रोज़ कन्हैयालाल, उमेश, निशंक, शानू पाण्डेय और ना जाने कितने रूपों में देखने को मिल रहा है। यदि समाज जागृत होगा तभी हम ऐसे छल करने वाले नेताओं से बच सकेंगे। अतः जो हिन्दू स्वयं जंग चुके हैं, वो इस “घर वापसी” मिशन में लगे जाएं, और अधिक से अधिक हिन्दुओं को इसमें जोड़े, फिर देखते हैं, आधुनिक काल का गांधी कैसे हमें मुर्ख बनाता है।
जय हिन्द वन्देमातरम