चीन ने लगभग तय कर लिया है कि वह हाँग कांग में राष्ट्रीय सूरक्षा कानून जल्द ही लागू करेगा. इस कानून के अंतर्गत चीन के पास कानूनी अधिकार होगा कि वह किसी भी हाँग कांग वासी पर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरनाक होने का आरोप लगा कर उसे अपना बंदी बना सकता है. यानि मोटे तौर पर कहा जाये तो इस कानून का प्रयोग कर चीन किसी भी हाँग कांग वासी के साथ वैसा बर्ताव कर सकता है, जैसा किसी अपराधी के साथ किया जाता है.
इस कानून को लेकर वैश्विक मंच पर चीन की कड़ी आलोचना हो रही है. चीन ने इस कानून को कार्यांवित करने के लिये ऐसा समय सुना है जब पूरे विश्व का ध्यान कोरोना वायरस पर केद्रित है. दूसरा, सितम्बर में हाँग कांग के विधान परिषद के चुनाव होने वाले हैं. तो कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन को इस बात का भय है कि पिछले वर्ष के स्थानीय चुनावों की तरह इस बार भी प्रजातंत्र खेमे के उम्मीदवार कही यह चुनाव न जीत जायें. इसीलिये इस बात की पूरी संभावना है क्कि चीन इस कानून को कार्यांवित कर प्रजातंत्री खेमे को दबाने की कोशिश करेगा, उनके सशक्त उम्मीदवारों को इस कानून के बहाने हिरासत में ले लेगा. विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा भी हो सकता है कि चीन राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई दे चुनाव ही रद्द कर दे.
जब से चीन ने इस कानून को हाँग कांग में लागू करने की अपनी मंशा साफ कर दी है, अमरीका के साथ उसकी तनातनी और भी बढ दी है. अमरीका ने पहले ही यह स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि अगर चीन हाँग कांग को लेकर अपनी मनमानी कर देगा तो वह हाँग कांग पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा देगा. ब्रिटेन भी हाँग कांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू होने के खिलाफ है. ब्रिटेन के विदेश सचिव डांमिनिक राब ने चीन को चेतावनी भी दी है कि वह हाँग कांग प्र राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने के अपने फसले पर पुन:विचार करें. रांब अपने वक्तव्य में हाँग कांग के ब्रिटिश कंसलेट के एक पूर्व कर्मचारी के साथ चीनी सरकार द्वारा किये गये दुर्व्यवहार की निंदा कर रहे थे. डांमिनिक राब ने यह भी कहा कि यू के को चीन जैसे देश के उन फैसलों पर सवाल खड़ा करने का पूरा अधिकार है जो कि अन्तराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन कर रहे हों.
यदि एतिहासिक तौर पर देखा जाये तो चीन यदि ये सुरक्षा कानून हाँग कांग में लागू करता है, तो यह अन्तराष्ट्रीय नियम कानूनों का उल्लंघन ही होगा. हाँग कांग 1997 से चीन के अधीन है. 1997 में जब हाँग कांग ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ था तो उसे 50 साल की लीज़ पर चीन को सौप दिया गया था. 50 साल के बाद यानि 2047 में हाँग कांग के भविष्य का फैसला होगा. अभी हाँग कांग चीन के ‘ एक देश, दो सिस्टम्स ‘ के सिद्धांत पर चलता है जिसके अंतर्गत हाँग कांग का अपना अलग संविधान है, उस देश में मीडिया और प्रेस सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है और चीन के विपरीत हाँग कांग एक पूंजीवादी और ‘फ्री मार्केट’ अर्थव्यवस्था है. हाँग कांग में पिछले वर्ष से ज़बर्दस्त जन आंदोलन छिड़ा हुआ है जिसका उद्देश्य है प्रजातंत्र की मांग और चीन के आधिपत्य से आज़ादी. कोरोना वायरस आपदा से इस आंदोलन पर कुछ फर्क ज़रूर पड़ा है लेकिन यह आंदोलन अभी भी मिटा नहीं है.
यदि ये राष्ट्रीय सुरक्षा कानून चीन में लागू होता है तो ये ‘एक देश दो सिस्टम ‘ के सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत जाता है. और इस कानून का प्रयोग करके हाँग कांग में अभिव्यक्ति की आज़ादी, स्वतंत्र प्रेस की आज़ादी सब समाप्त होने का डर है. आलोचकों का कहना है कि यदि यह कानून हाँग कांग पर लगता है तो हाँग कांग एक प्रकार से चीन की कांलोनी जैसे बन जायेगा. हाँग कांग वासियों को भी यही भय है. और कई मीडिया रिप्रोर्ट्स के मुताबिक तो चीन ने अब इस बात से भी साफ मुकरना शुरू कर दिया है कि उसे संभवत: 2047 में हाँग कांग को आज़ादी देनी होगी.
यदि चीन हाँग कांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करता है तो वह शायद हाँग कांग में चल रहे जन आंदोलन को दबाने में तो कुछ हद तक कामयाव हो जायेगा, लेकिन ये फैसला चीन के लिये शायद इतना अच्छा साबित न हो. चीन को अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत से प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है जिससे हाँग कांग की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठप्प पड़ सकती है. दूसरा, अधिकतर युवा हाँग कांग वासी चीन के आधिपत्य में र्रहना बिल्कुल पसंद नहीं करेंगे. ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश बडे स्तर पर हाँग कांग वासियों को नागरिकता देने के लिये तैयार हैं, यदि कांग कांग में चीन ने यह कानून लागू किया तो. ऐसे मे चीन हाँग कांग पर अपना कब्ज़ा तो जमा लेगा लेकिन उसे इसकी वहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
चीन का एक और काला पन्ना ।