डरावनी कहानियां पढ़ने से अधिक सुनने में खौफ पैदा करती हैं। सुनाने का अंदाज़ कुछ ऐसा होता है कि सुनने वाला झुरझुरी से भर जाता है। एक फिल्म बनने की कहानी भी ऐसी ही ‘कहानी’ से शुरू हुई थी। फिल्म निर्माता सोहम शाह एक ऐसी फिल्म लेकर आ रहे हैं जिसने प्रदर्शित होने से पहले ही दर्शकों में अच्छी-खासी जिज्ञासा पैदा कर दी है। आगामी अक्टूबर में ये फिल्म प्रदर्शित होने जा रही है, नाम है ‘तुंबाड’। वेनिस फिल्म फेस्टिवल में ‘तुंबाड’ ने काफी प्रशंसा पाई है। कहा जा रहा है कि हॉरर/थ्रिलर जॉनर में ऐसी हिन्दी फिल्म आज तक नहीं बनी।
फिल्म निर्देशक राही अनिल बर्वे बचपन में अपने दोस्त के साथ महाराष्ट्र में नागजीरा के जंगल गए थे। वहां के खौफनाक वातावरण में दोस्त ने उनको प्रसिद्ध मराठी लेखक नारायण धारप की लिखी एक डरावनी कहानी सुनाई। जंगल की रात में अलाव के पास बैठकर वह कहानी सुनने का अनुभव अनिल कभी भूल नहीं सके।
इस कहानी का ड्राफ्ट उन्होंने 1996 में ही तैयार कर लिया था। सन 2016 में उन्होंने इस कहानी पर फिल्म बनाने का इरादा कर लिया। नारायण धारप की लिखी वह कहानी जब बनकर परदे पर आई तो विदेशी निर्देशकों ने भी अनिल के निर्देशन का लोहा मान लिया।
नारायण धारप मराठी साहित्य ने भय कथा लेखक के रूप में प्रख्यात रहे हैं। उनकी लिखी ये कहानी एक उजाड़ और भुला दिए गए गांव ‘तुम्बाड’ की पृष्ठभूमि में एक व्यक्ति के लालच को बयान करती है। विनायक और उसका विकलांग पुत्र पांडुरंग एक रहस्य की तलाश में है, जो उनके परिवार से जुड़ा हुआ है। इस रहस्य की चाबी पांडुरंग की दादी के कमरे में रखे संदूक में बंद है। एक सदी से इस गांव में ये रहस्य दबा पड़ा है। यदि वह बाहर आ गया तो विनाश निश्चित है।
राजकुमार हिरानी और अनुराग कश्यप जैसे निर्देशक ‘तुंबाड’ को गेम चेंजर बता रहे हैं। ये बात और है कि निर्माता सोहम शाह ने फिल्म बनाने के लिए बहुत सी आर्थिक मुश्किलें सही। छह साल की मेहनत के बाद फिल्म परदे का मुंह देख सकी।
वेनिस फिल्म फेस्टिवल में इटली के फ़िल्मकार गिओना नेजैरो ने ‘तुम्बाड’ को विजनरी फैंटसी फिल्म बताया। फिल्म के प्रोमो देखकर लगता है कि निर्देशक ने वैश्विक स्तर का ट्रीटमेंट दिया है। फिल्म का कला पक्ष बेहद मजबूत दिखाई दे रहा है। बड़े निर्देशक भारत में इस फिल्म की बॉक्स ऑफिस सफलता को लेकर आश्वस्त है।
देखिये ‘तुंबाड’का ट्रेलर
भारत में हॉरर फ़िल्में पसंद करने वाले दर्शकों का एक बड़ा वर्ग है लेकिन इस तरह की फिल्मों की सफलता का प्रतिशत बहुत कम होता है। भूतिया फिल्मों की शुरुआत ही रामसे ब्रदर्स की सी ग्रेड फिल्मों से हुई इसलिए लम्बे समय तक इसी तरह की बे सिर पैर की फिल्मों का चलन रहा।
हॉरर फिल्मों में अब तक तीन फ़िल्में ही ऐसी रही, जिन्हे स्तरीय हॉरर में शामिल किया जा सकता है। रामगोपाल वर्मा की ‘रात’ और ‘भूत’ और ’13-बी’ अब तक की श्रेष्ठ हॉरर मानी जाती है। इनके अलावा 1920, राज, महल, एक थी डायन, शापित को रखा जा सकता है। हालांकि इन फिल्मों में एक भी ऐसी नहीं है जो हमें विश्व सिनेमा के ‘हॉरर जॉनर’ में सम्मान दिलवा सके।
‘तुंबाड’ को जिस तरह से विश्व सिनेमा में हाथोंहाथ लिया गया है, उससे लग रहा है कि ये फिल्म पूर्व मराठी फिल्म ‘हरिश्चंद्राची फैक्टरी’ की तरह भारत का नाम ऊँचा कर सकती है। निर्देशक परेश मोकाशी की ‘हरिश्चंद्राची फैक्टरी’ ने ऑस्कर के लिए लम्बी दौड़ लगाई थी लेकिन अंतिम दौर में हार गई थी। परेश मोकाशी की तरह अनिल बर्वे भी भारत को ‘हॉरर जॉनर’ की फिल्मों में बढ़त दिलवा सकते हैं।
1996 में अनिल बर्वे का वह लाल बैग खो गया था, जिसमे इस फिल्म का स्टोरी ड्रॉफ्ट रखा था। किसी रहस्य के आवरण में ये कथा मानो जाकर छुप गई थी, जैसे पांडुरंग की दादी के कमरे में एक रहस्य छुपा बैठा था। कभी-कभी वास्तविकता भी रहस्य के कुहासे में लिपटी होती है। समय आने पर ही स्वयं को प्रकट करती है।
URL: Horror movies like ‘TUMBBAD’ have not been made in bollywood so far
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