अनुराधा। अपना व्यक्तिगत अनुभव बता रही हूँ , हम कोरोना का इलाज निजी हॉस्पिटल में करा रहे थे, रिपोर्ट क्योंकि सरकारी तंत्र के पास भी थी, स्वास्थ्य विभाग से लगातार अपडेट्स ली जाती रही, हबी का ऑक्सीजन लेवल स्टेबल नही हो रहा था, वही जबकि निजी डॉक्टर ने बन्द कमरे में रहने के निर्देश दिए थे,
वही डॉक्टर सप्तऋषि जी (सरकारी डॉक्टर) हरिद्वार ने सलाह न दी होती कि खुले में घूमे बैठे, छत नही है तो विंडो में बैठे, साथ ही निजी डॉक्टर द्वारा दिये जा रहे एन्टी वायरस, फेबिफलु को तुरन्त लेने की मनाही की इस दवाई का सीधा असर लिवर डैमेज करता है
साथ ही ये टैब केवल आपातकालीन दशा के लिए है ऐसा उनके द्वारा अवगत कराया गया, जबकि 10 दिन से ये दवाई 3600 mg,एक,पहले दिन बाकि 800mg प्रतिदिन ले रहे थे साथ ही अन्य दवाई भी चल रही थी
आज सोलहवें दिन जब हमारी निजी डॉक्टर से सुबह बात हुई ओर उन्होंने दवाई आगे भी चलाने के निर्देश दिए तो हमे अटपटा लगा इतनी दवाइया क्यो? क्योंकि सभी सिम्टम्स नॉर्मल थे केवल खाँसी को छोड़कर तभी हमने डॉक्टर सप्तऋषि, स्वास्थ विभाग उत्तराखण्ड से बात की
यदि सरकारी डॉक्टर से आज हमने बात न की होती तो हम बडी मुसीबत में फस सकते थे! क्योंकि निजी डॉक्टर ने कमरे में बन्द रहने की सलाह दी थी, जिसके चलते ऑक्सीज़न लेवल डाउन ही जा रहा था, वही सरकारी स्वास्थ्य विभाग मुस्तैदी से काम कर रहा है,कही कोई कमी नही छोड़ी जा रही है, ज़रूरत है विश्वास करने, ज़रूरत है अफवाह फैलाने वालों का मुँह तोड़ने, धन्यवाद,उत्तराखण्ड स्वास्थ्य विभाग