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मूवी रिव्यू

शोर करने वाला पटाखा है ‘हॉउसफुल : 4, ये रंग नहीं बिखेरती

Vipul Rege
Last updated: 2019/10/26 at 12:29 PM
By Vipul Rege 1 View 6 Min Read
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6 Min Read
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बेशक फ़िल्में मनोरंजन के लिए बनाई जाती है। ये बात ‘हॉउसफुल: 4 जैसी फ़िल्में साबित करती आई हैं। एक होता है सोद्देश्य मनोरंजन और एक निरर्थक। हंसकर भूल जाने जैसा या पान खाकर थूक देने जैसा। मुख विलास जैसा मन विलास। अक्षय कुमार की ‘हॉउसफुल:4 ने बॉक्स ऑफिस पर तगड़ी ओपनिंग ली है। जिस फिल्म का बजट सिर्फ 75 करोड़ हो और उसमे अक्षय कुमार जैसा अभिनेता मैन लीड में हो तो फिल्म न केवल लागत वसूलेगी बल्कि निर्माता को अतिरिक्त फायदा भी देकर जाएगी। व्यावसायिक सूझबूझ दिखाते हुए इस हंगामेदार फिल्म को दीपावली के मौके पर प्रदर्शित किया गया है। हॉउसफुल की थीम हमेशा से ‘slepstick comedy’ की रही है लेकिन इस बार इसे ‘reincarnation comedy’ में बदल दिया गया है।

एक अलिखित नियम है कि हर फिल्म ‘कुछ कहती है’। ‘हॉउसफुल: 4 देखने के बाद ऐसा लगता है निर्देशक एक ‘रोलर कॉस्टर’ की सवारी करवाने के बाद भी कुछ कह नहीं पाया है। फिल्म बहुत हंसाती है लेकिन थियेटर से निकलते ही याद नहीं रहती। बस एक बन्दा याद रहता है, और वह है अक्षय कुमार। ये पूरी तरह से अक्षय की फिल्म है। एक कन्फ्यूजिंग स्क्रिप्ट, अजीबोगरीब डायलॉग और उलझा हुआ निर्देशन ही इस फिल्म का हासिल है।

पुनर्जन्म की ये कहानी एक काल्पनिक शहर सितमगढ़ से शुरू होती है। सन 1419 में एक राजा अपने बिगड़ैल बेटे बाला को राज्य से निकाल देता है। बाला पडोसी राज्य सितमगढ़ जाकर राजा के स्वयंवर में हिस्सा लेता है। राज परिवार का राघवन पटेल उसे और राजा की बेटी को मरवाने की साजिश रचता है। बाला समेत धर्मपुत्र, राजकुमारी माला, मधु, बांगड़ू महाराज, मीना और राजा गामा मारे जाते हैं और छहसौ साल बाद उनका पुनर्जन्म होता है। किस्मत उनको एक बार फिर सितमगढ़ पहुंचा देती है। वहां रुकी कहानी फिर शुरू हो जाती है।

जब आपके पास पुर्जन्म पर आधारित एक अच्छी कहानी थीं तो स्वाभाविक निर्देशन करने के बजाय फूहड़ता से उसे बर्बाद क्यों किया। जब फिल्म फ्लैशबैक में जाती है तो निर्देशक की गलतियां छन-छन कर बाहर आने लगती है। छहसौ साल पहले के वक्त में राजे-रजवाड़े नब्बे के दशक के गीतों के बोल बोलते हैं और एक राजकुमारी कहती है ‘इतने अच्छे शब्दों को तो संगीत में ढालना चाहिए।’ ऊपर से बाला महाराज अंग्रेजी झाड़ते हुए एक सैनिक से कहते हैं ‘साइड में हट’। ऐसा करके आप उसी सम्मोहन को तोड़ देते हैं जो आपने रचाया था। कॉमेडी के नाम पर इस फिल्म में संवाद ही हैं। डबल मीनिंग डायलॉग और वाहियात दृश्य से भरी पड़ी है ये फिल्म।

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अक्षय कुमार की बॉलीवुड में एक इमेज है, उनका एक कद है लेकिन इस तरह के किरदार कर वे अपना कद कम कर रहे हैं। कुछ दिन पहले हमने उन्हें एक शानदार फिल्म ‘मंगल मिशन’ में देखा था और अब वे ‘बाला’ के किरदार में नज़र आते हैं। उन्हें अपनी ऑनस्क्रीन इमेज ब्रेक ही करनी थी तो किसी एक्शन थ्रिलर से भी ब्रेक कर सकते थे। हालांकि एक वही हैं जो दर्शक की रूचि बनाए रखते हैं। यदि अक्षय को फिल्म से निकाल दिया जाए तो इसमें कुछ ख़ास नहीं बचता।

रितेश देशमुख, बॉबी देओल, कृति सेनन, कृति खरबंदा, पूजा हेगड़े, रंजीत, चंकी पांडे, नवाजुद्दीन सिद्दीकी को जब किरदार ही कमज़ोर मिलेंगे तो वे भी क्या कर लेंगे। इन सभी ने त्रुटिपूर्ण किरदारों में जान फूंकने की कोशिश की लेकिन ‘बीज’ को कैसे बदला जा सकता है। एक और बात अखरने वाली लगी। बाहुबली जैसी क्लासिक फिल्म का इसमें मज़ाक बनाया गया है। और मजा ये है कि सितमगढ़ जैसी काल्पनिक नगरी दिखाने के लिए जो कम्प्यूटर ग्राफिक्स बनाए गए, वे बाहुबली की नकल करके ही बनाए गए हैं। जब आप अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए दूसरे हिट प्रोडक्ट का मज़ाक बनाने निकल पड़ो तो ये बात आपके कस्टमर को पसंद नहीं आती।

पहले दिन पहले शो में फिल्म देखते हुए दर्शकों के रिएक्शन पर गौर किया। बहुत कम लम्हे ऐसे आए, जब दर्शक खुलकर हँसता है। फिल्म में कोई इमोशनल अपील नहीं है इसलिए दर्शक के भावुक होने का सवाल ही नहीं उठता। जो थोड़ा बहुत शोर उठता, वह भी अक्षय के प्रशंसकों का होता। वैसे भी कोई प्रशंसक की निगाह में उसके पसंदीदा कलाकार की हर फिल्म बेहतरीन ही होती है। जैसा कि मैंने कहा ये एक रोमांचक राइड है लेकिन बेमतलब की।

दीपावली के मौके पर इस फिल्म की तुलना उन पटाखों से की जा सकती है, जो आवाज़ तो करते हैं लेकिन रंग नहीं बिखेरते। उनमे उल्लास नहीं होता, शोर होता है। हॉउसफुल :4 एक हिट फिल्म है क्योंकि इसका बजट कम है। ये बात और है कि इस त्योहारी मौसम में ये फिल्म कोई उमंग नहीं जगा पाती।

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TAGGED: houseful 4, movie review
Vipul Rege October 26, 2019
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Vipul Rege
Posted by Vipul Rege
पत्रकार/ लेखक/ फिल्म समीक्षक पिछले पंद्रह साल से पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय। दैनिक भास्कर, नईदुनिया, पत्रिका, स्वदेश में बतौर पत्रकार सेवाएं दी। सामाजिक सरोकार के अभियानों को अंजाम दिया। पर्यावरण और पानी के लिए रचनात्मक कार्य किए। सन 2007 से फिल्म समीक्षक के रूप में भी सेवाएं दी है। वर्तमान में पुस्तक लेखन, फिल्म समीक्षक और सोशल मीडिया लेखक के रूप में सक्रिय हैं।
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