‘लड़का अपना रूप बदलता है। मेकअप करता है। लड़की का वेश बनाकर बाहर निकलता है। बाहर उसे सारे मर्द वैसे ही मिलते हैं जैसी कल्पना नारीवादी लेखकों या आंदोलनकारियों की होती है। उसे छेड़ा जाता है, घूरा जाता है और गंदा स्पर्श किया जाता है। वापस आकर वह अपनी महिला मित्र से कहता है तुम ये सब कैसे झेल लेती हो। मैं तो एक घंटे में ही थक गया।’ ये एक शार्ट फिल्म की कहानी है, जिसे फरहान अख्तर और रंजीता कपूर ने मिलकर बनाया है। इस शार्ट फिल्म के साथ एक टैगलाइन बहुत तेज़ी से प्रचारित की जा रही है। ‘देश को बदलना है तो मर्द को बदलना होगा’। ‘Me too’ अभियान के बाद नारीवादी वर्ग देश के ‘मर्द’ को बदलने के लिए आंदोलन करेगा।
सोशल मीडिया के प्रकाश में आने के बाद शॉर्ट वीडियो फिल्म बनाने का चलन शुरू हुआ। इन शॉर्ट वीडियो फिल्मों में एक खास पैटर्न नज़र आने लगा। हर दूसरा वीडियो नारीवाद की वकालत करता था। एक अभिनेत्री को बाजार में घूमते दिखाया जाता और दूसरे कलाकार पुरुष उसके साथ बुरा बर्ताव करते, छेड़खानी करते थे। एक समय था जब आम दर्शक फिल्मों में दिख रही घटनाओं को सच समझता था। आजकल की इन शॉर्ट फिल्मों को लेकर दर्शक की यही मानसिकता बन गई है। वे वीडियो से प्रभावित होते हैं लेकिन ये नहीं सोचते कि ये एक स्क्रिप्टेड वीडियो है, जिसमे सच का अंश मात्र नहीं है। फरहान अख्तर की फिल्म ‘शी’ को इस कैटेगरी में रखा जा सकता है।
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एक काल्पनिक वीडियो बनाकर आप देश में वास्तविक माहौल नहीं खड़ा कर सकते। फरहान अख्तर वीडियो को प्रचारित करने के लिए ट्वीटर अकाउंट पर लिखते हैं ‘रियलिटी चेक’। इस वीडियो में कौनसी वास्तविकता है कि आप उससे एक फर्जी नारीवादी आंदोलन शुरू करना चाह रहे हैं। एक लड़का लड़की का वेश बनाकर बाहर निकलता है और देखिये सारे भूखे मर्द ही सड़क पर टहल रहे होते हैं। क्या भारत की सड़कों पर चलने वाले सारे मर्द ही ऐसे होते हैं। यदि ऐसा वाकई होता तो देश में बलात्कारों का आंकड़ा कहीं अधिक होता।
शॉर्ट फिल्म सन्देश दे रही है कि पुरुष स्वयं नारी पर हो रहे अत्याचारों को इस तरह अनुभव करे। जब छेड़छाड़ से परेशान कोई लड़की शाम को अपने पिता से जाकर शिकायत करती है तो क्या पिता अपनी बेटी की तकलीफ का अनुभव नहीं करता। क्या एक पति या एक बेटा पत्नी या माँ के दर्द को अनुभव नहीं कर सकता। ‘Me too’ अभियान के द्वारा कथित नारीवादी कई पुरुषों के दामन को दागदार तो बना ही चुके हैं और अब इस शार्ट फिल्म के जरिये उन्हें शर्मिंदा करने की तैयारी में हैं।
भारत का नारीवाद और पश्चिम का नारीवाद बिलकुल ही भिन्न है। पश्चिम में नारी ने स्वतंत्रता के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी है। वहां स्त्रियों को मत देने का अधिकार तक नहीं हुआ करता था। वहां लड़ाई मताधिकार के लिए शुरू हुई और समानता के अधिकार पर जाकर रुकी। भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद आसानी से मत देने का अधिकार मिल गया। चारदीवारी में कैद भारतीय महिला ने अपने अधिकार के लिए जो लड़ाई लड़ी, वह पश्चिम की लड़ाई से बिलकुल ही अलग थी। भारत में नारीवाद का अर्थ है पुरुषों को गाली देना। यहाँ का नारीवाद सकारात्मकता की नींव पर खड़ा ही नहीं हुआ। भारत के नारीवाद की ऑक्सीजन ‘पुरुषों से घृणा’ पर आधारित है।
जब तक देश में नारीवाद का सही अर्थ प्रस्तुत नहीं किया जाएगा, ‘शी’ जैसी फिल्मे बनाई जाती रहेगी। रही बात उन दरिंदो की जो नारी पर बलात्कार को ट्रॉफी जीतने के बराबर मानते हैं तो वे दुनिया में हर जगह पाए जाते हैं। पृथ्वी कभी ऐसे पुरुषों से मुक्त नहीं हो सकती लेकिन ये भी उतना ही सत्य है कि हर पुरुष ऐसा नहीं होता जैसा फरहान अख्तर अपनी फिल्म में दिखाते हैं। तो पुरुषों के तनाव को बढ़ाने के लिए नारीवादियों ने नया शिगूफा छेड़ दिया है।
URL : farhan akhtar share 3 minute short film she seh ke dekho
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