भाजपा कार्यकर्ता अंकुर राणा अपने फोन पर तेज़ी से टाइप कर रहे हैं. अंकुर उन सैकड़ों व्हाट्सऐप ग्रुप में मैसेज भेज रहे हैं, जिनके वो ऐडमिन हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के सोशल मीडिया कोऑर्डिनेटर ने पिछले महीने वोटिंग से पहले बताया था, “मेरे पास 400 से 450 व्हाट्सऐप ग्रुप हैं, जिनमें से प्रत्येक में लगभग 200-300 सदस्य हैं. इसके अलावा, क़रीब 5000 लोगों से मेरा सीधा संपर्क है. इस तरह, मैं व्यक्तिगत रूप से रोजाना 10-15 हजार लोगों तक पहुँचता हूँ.”
वह उस प्रशिक्षित और दक्ष टीम का हिस्सा थे, जिसे बीजेपी के संदेशों को करोड़ों मतदाताओं और समूहों तक पहुंचाने के लिए बनाया गया था. बाद में ऐसी ही टीमें यूपी की कई दर्जन अन्य लोकसभा सीटों पर भी बनाई गईं.
इस अभियान का पैमाना चौंका देने वाला है. बीजेपी ने इस साल 370 सीटों के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए दूसरे मैसेजिंग ऐप और सोशल मीडिया के साथ, व्हाट्सऐप को एक महत्वपूर्ण मार्ग के तौर पर चुना है. इसका मुख्य कारण ये है कि भारत वैश्विक स्तर पर व्हाट्सएप का सबसे बड़ा बाज़ार है. 50 करोड़ से ज़्यादा लोग इस मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर रोज़ाना कई घंटे बिताते हैं.
भारतीय व्हाट्सऐप पर रोज़ाना गुड मार्निंग से लेकर मीम्स तक शेयर करते हैं और कई भाषाओं में राजनीतिक टिप्पणियां भी साझा की जाती हैं.
अंकुर जैसे कार्यकर्ता उस चुनावी मशीन का अहम हिस्सा हैं जो ये सुनिश्चित करती है कि बीजेपी के संदेश भी लोगों तक पहुँचते रहे.
बीबीसी ने उत्तर प्रदेश में निर्वाचन क्षेत्र सोशल मीडिया कोऑर्डिनेटर के तौर पर काम करने वाले 10 अन्य भाजपा कार्यकर्ताओं से बात की. उन सभी ने बताया कि वे सैकड़ों व्हाट्सऐप ग्रुप चलाते हैं और सभी ग्रुप में 200 से 2000 सदस्य होते हैं.
ये एक बहुत नियंत्रित अभियान . मेरठ के एक भाजपा कार्यकर्ता ने बताया कि रोज़ाना दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय से राजनीतिक संदेश और हैशटैग भेजे जाते हैं.
जिनमें प्रधानमंत्री और पार्टी का गुणगान होता है. साथ ही विपक्ष की आलोचना से जुड़े कॉन्टेंट भी दिए जाते हैं. इन्हें राज्य स्तर पर स्थापित मुख्यालयों तक ट्रेंड कराना होता है.
यहां से मेरठ लोकसभा क्षेत्र के अंकुर सहित 180 कार्यकर्ताओं के पास मैसेज भेजा जाता है. ये लोग भेजे गए संदेश को आगे बढ़ाते हैं और अंततः ये संदेश बीजेपी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं तक पहुंच जाते हैं.
हर दिन एक से डेढ़ लाख लोगों तक पहुँचने का लक्ष्य
अंकुर बिना किसी वेतन के बीजेपी के लिए काम करते हैं. जब वो बीजेपी के लिए काम नहीं कर रहे होते हैं, वो मुंबई में एक डिज़िटल मार्केटिंग कंपनी भी चलाते हैं. उनका कहना है कि युवाओं तक पहुँचने के लिए व्हाट्सऐप विशेष रूप से उपयोगी है.
अंकुर बताते हैं कि 40 साल से अधिक आयु के लोग फेसबुक पर ज्यादा सक्रिय हैं.
वो कहते हैं, “हमारा लक्ष्य प्रतिदिन औसतन 100,000-150,000 नए लोगों तक पहुँचना है.”
विशेषज्ञ मानते हैं कि भाजपा सोशल मीडिया अभियान में अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफ़ी आगे है. लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि व्यक्तिगत संपर्क के बिना यह सब संभव नहीं है – ख़ासकर तब जब उन्हें सबसे पहले लोगों के फ़ोन नंबर हासिल करने होते हैं.
मेरठ में एक बूथ के बीजेपी के प्रचार प्रभारी विपिन विपला ने कहा, “पार्टी के प्रत्येक सदस्य को, फिर वो बिल्कुल निचले स्तर पर हो या पार्टी अध्यक्ष ही क्यों ना हो, 60 मतदाताओं तक पहुंचने की ज़िम्मेदारी दी गई है.”
“जिन 60 मतदाताओं की ज़िम्मेदारी हमें दी गई होती है, हमें उनसे लगातार संपर्क बनाए रखना होता है, मिलते रहना होता है ताकि उन्हें बीजेपी को वोट देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके. उनके फोन नंबर हासिल करके अपने व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल कराना भी हमारी ज़िम्मेदारी है.”
विपिन ने इन वोटरों के लिए एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया है, जिसका नाम है ‘ह्यूमैनिटी इज़ लाइफ़’. इससे पता चलता है कि ग्रुप को बहुत ज़्यादा राजनीतिक न बनाना भी कैंपेन का एक हिस्सा है.
लेकिन जैसा कि सब जानते ही हैं, इंटरनेट पर, किसी भी नैरेटिव को पूरी तरह नियंत्रित करना असंभव है.
और जब ये नैरेटिव निजी व्हाट्सऐप अकाउंट और समूहों पर शेयर किया जा रहा हो, तो यह पता करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है कि किस तरह के संदेश शेयर किए जा रहे हैं और वो संदेश कहां से आए हैं.
किस तरह के मैसेज
एक वायरल मैसेज जिसे, कई ग्रुपों में कई बार फॉरवर्ड किया गया और बीबीसी ने जिसे देखा, इसमें कांग्रेस पार्टी पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करने का आरोप लगाया गया था.
मैसेज में लिखा था, “कांग्रेस ने पहले ही भारत को इस्लामिक देश बना दिया था, बस उन्होंने कभी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं की.” मैसेज में 18 ऐसी चीज़ें बताते हुए ये दावा किया गया था कि कांग्रेस मुस्लिम समुदाय का पक्ष लेती है.
मैसेज सबसे पहले कहां से आया, ये पता लगाना असंभव है, लेकिन यह मैसेज भाजपा नेतृत्व द्वारा हाल के सप्ताहों में चुनावी रैलियों के दौरान की गई टिप्पणियों को प्रतिबिंबित करता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल में चुनावी रैलियों में दावा किया था कि अगर विपक्ष सत्ता में आ जाता है तो वह लोगों की संपत्तियों को ‘घुसपैठियों’ में बाँट देगा. प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी को मुसलमानों के संदर्भ में देखा गया. इसके बाद नरेंद्र मोदी पर इस्लामोफ़ोबिया फैलाने के आरोप लगे थे.
भाजपा के अपने सोशल मीडिया हैंडल से इस बात को दोहराते हुए एनिमेटेड वीडियो शेयर किए हैं. साथ ही भाजपा के नेताओं ने ग़लत दावे किए हैं कि यह कांग्रेस के घोषणा पत्र में लिखा है. कांग्रेस के घोषणा पत्र में धन के पुनर्वितरण या मुसलमानों जैसे शब्दों का उल्लेख नहीं है.
रटगर्स विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर किरण गरिमेला, जो भारत में व्हाट्सऐप के उपयोग पर शोध कर रही हैं, कहती हैं कि राजनीतिक दलों की आधिकारिक विचारधारा अक्सर निजी समूहों पर भी दिखाई देती है – लेकिन फिर, यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि क्या आधिकारिक है और क्या अनौपचारिक है.
किरण कहते हैं, “ इसके लिए ऊपर से नीचे तक ज़ोर दिया जा रहा है, आईटी सेल (भाजपा की सोशल मीडिया टीम) का ऑपरेशन है और फिर इसके इर्द-गिर्द सामग्री तैयार की जा रही है, जिसे लगातार फैलाया जा रहा है. लेकिन इसमें मुख्य प्रयोग यह हो रहा है कि आम लोग भी इस तरह की विचारधारा को फैलाने में भूमिका निभा रहे हैं.”
वो कहते हैं, “व्हाट्सएप की प्रकृति को देखते हुए यह समझना कठिन है कि “कौन सी सामग्री आईटी सेल की है और कौन सी पार्टी को समर्थक करने वालों की सामग्री है.”
और संदेश भले ही किसी एक प्लेटफॉर्म से शुरू हों, वो दूसरे मीडिया पर भी घूमने लगते हैं, जिससे लोग इस बात को लेकर आश्वस्त हो जाते हैं कि जो वो देख रहे हैं, वह सच है.
भाजपा का विज्ञापन
भाजपा के नए कैंपेन विज्ञापन में ये दिखाया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन में फंसे छात्रों को निकालने के लिए रूस- यूक्रेन जंग को रुकवा दी थी.
यह दावा पहली बार मार्च 2022 में, युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद, एक्स पर कई यूजर्स द्वारा किया गया था और कुछ समाचार चैनलों ने भी इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था.
उस समय भारत के विदेश मंत्रालय ने इस दावे को ख़ारिज कर दिया था. एक प्रवक्ता ने कहा था, “ये कहना कि किसी ने बमबारी रुकवा दी, या फिर, आप जानते हैं, कि हम इसका समन्वय कर रहे हैं, मैं ये मानता हूं कि ये पूरी तरह से ग़लत है. ”
अब दो साल बाद, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान इसका ज़िक्र किया और सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन को ख़ूब देखा गया. भाजपा ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि वह इस दावे को क्यों दोहरा रही है.
मेरठ यूनिवर्सिटी के बाहर हम 20 साल से ज़्यादा उम्र के उन छात्रों से मिले जो पहली बार वोट डालने वाले थे.
हमने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने यह दावा सुना है और क्या वे इस पर विश्वास करते हैं. अधिकतर छात्रों ने बताया कि उन्होंने ये वीडियो ‘एक्स’ पर देखा है.
सोशल मीडिया का प्रभाव
अपने दोस्तों के साथ सहमति जताते हुए विशाल वर्मा ने कहा, “हां, निश्चित रूप से हम मानते हैं कि भारत के अनुरोध के चलते युद्ध रोक दिया गया था.”
आस-पास इकट्ठा हुए अन्य लोगों ने भी सहमति में सिर हिलाया. बस कुछ छात्र असहमत थे.
कबीर ने कहा, “यह सच नहीं है. मैंने छात्रों द्वारा ख़ुद बनाए गए वीडियो देखे हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकार ने उनकी मदद नहीं की.”
हमने यही सवाल पास के गांव के लोगों से भी पूछा, जिनमें से कई लोगों ने टीवी समाचारों में यह दावा देखा था.
41 वर्षीय किसान संजीव कश्यप ने कहा, “हां, युद्ध रोक दिया गया क्योंकि मोदी का विश्व स्तर पर सम्मान है.”
वहीं 75 वर्षीय जगदीश चौधरी ने कहा, “देखिए, हमने सुना है कि युद्ध रूक गया था, हमने ख़ुद वहां जाकर यह नहीं देखा है. लेकिन मुझे लगता है कि इसमें कुछ सच्चाई होगी.” चार अन्य ग्रामीण भी उनसे सहमत थे.
लोग किस बात पर यकीन करते हैं, इसे प्रभावित कर पाना, एक अहम ताक़त है. अंततः इससे लोग किसे मतदान करेंगे, इसे भी प्रभावित किया जा सकता है.