इस सृष्टि में मानव में पांच तत्व की प्रधानता बताई गई है जैसे पंचतत्व, पंचामृत, पंचगव्य, या फिर पांच विकार यथा वायु, पित्त, वात, रक्त, कफ मतलब ये की ये पांच चीजें मनुष्य के शरीर में अनिवार्य है।
अब देखिए ना आज पूरी दुनिया सिर्फ 1 विकार पर ही टिक चुकी है और वो है “कफ” तो आज उसी पर थोड़ा मंथन करते हैं लेकिन उससे पहले जो कुछ दिन पहले देखने और सुनने को मिला उस दासत्व को भी थोड़ा समझ ले कि आखिर WHO जिस भी दवा का प्रयोग शुरू होता है वो उसी पर उंगली उठा कर रुकवा देता है और इसी कड़ी में स्वास्थ्यमंत्री डॉ. हर्षवर्धन का भी नाम जुड़ता आ रहा है जो कुछ समय से बिल्ली बाबू मेरा मतलब वही बिल गेट्स जो आजकल कोरोना की दवा के लिए हिमालय की घाटियों में आभासी यात्रा कर वहां के दुर्लभ जड़ी बूटियों का संग्रह कर रहे हैं और उसके पश्चात उन सभी जड़ियों के सम्मिश्रण का परीक्षण भारतीय पर किया जाएगा, के साथ WHO की इच्छा को पूर्ण करने में लगे हैं। मतलब ये की जो गुलामी के समय अपने उपनिवेश में दासों पर किसी दवा या अन्य का परीक्षण करने के बाद साम्राज्यवादी खुद के उपयोग में लाते थे सबकुछ बिल्कुल वैसा ही है बस जरिया थोड़ा अलग है और इन बातों को देखने सुनने के बाद हम खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि देखो फलाने अंग्रेज बाबू ने हमें इस लायक समझा। सीधी सी बात यह है कि हमारा देश हमारा शरीर सन 1947 में आजाद जरूर हुआ लेकिन मानसिकता उसी गुलामी की बेड़ियों में आज भी जकड़ा हुआ है, मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ क्योंकि हम अपनी संस्कृति, पद्धति और तमाम तरह की नियम जो कभी हमारे पूर्वजों ने बनाये थे वो सब भूल चुके हैं।
खैर चलिए इन तमाम तरह की बाते तो आगे भी होती रहेगी लेकिन आज जिस त्रासदी में पूरा विश्व जी रहा है वो विषाणु किसी के सनक का या फिर मानवीय भूल का परिणाम ये कोई नही जानता बस जानना यह चाहता है कि आखिर कुछ तो होगा जो इस बेलगाम विषाणु को लगाम लगाए जिसने पूरे विश्व में कोहराम मचा रखा है।
जानते हैं भारत कभी विश्वगुरु था होना भी चाहिए क्योंकि जहां गाय को माता और कुत्ते को भैरव का स्वरूप माना गया है, जिस देश में आयुर्वेद के दिग्गज धन्वंतरि, चरक हुए जहां चाणक्य ने सम्पूर्ण विश्व को शल्यक्रिया द्वारा बच्चे जनने की प्रक्रिया से अवगत कराया वो आखिर क्यों ना विश्वगुरु हो लेकिन आज वही आयुर्वेद उसी भारत में उपेक्षित हो अपनी पहचान के लिए संघर्षरत है लेकिन हमारे राजा के दरबारियों को इस आयुर्वेद में कुछ दिखता नही, अगर दिखता तो आज चीनी वायरस के इलाज में आयुर्वेद को जरूर जोड़ा जाता ना कि बिली साब के आगे पीछे घूमने में समय जाया करते।
आयुर्वेद आखिर क्या है ये शब्द जानने के लिए हमें चलना पड़ेगा वेदों की ओर जहां अथर्ववेद में गंभीर से गम्भीर रोगों का निदान बताया गया है-
यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः।
निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्।। (अथर्व०-१/३२/३)।
अर्थात जिस राज्य में अथर्ववेद को जानने वाला रहता हो वह राज्य उपद्रव रहित हो निरंतर उन्नति करता है।
अथर्ववेद का यह प्रथम श्लोक अपने आप में ही बहुत कुछ कह देता है लेकिन हमें आंग्ल और मुगल इतिहास को पढ़ने से फुरसत मिले तभी तो सनातन इतिहास को पढ़ पाएंगे।
आप अथर्ववेद को पढ़िए या अग्निपुराण को आपको हजारो रोग के ऐसे ऐसे उपचार मिलेंगे जिसे पढ़ कर आपको विश्वास हो जाएगा कि वैदिक काल में हमारा आयुर्वेद किस प्रकार चरम पर था जिसे बाद में तोड़ मरोड़ कर पंगु बना दिया गया।
अग्निपुराण के अनुसार रक्त, वात, पित्त और कफ रोग के अनेकों उपचार बताये गए हैं जिसमें अश्वगंधा, शतावर, हरड़, बहेड़ा आंवला, पिपली, मूसली, गुडूची, अमरबेल, गोक्षुरा आदि अनेकों जड़ी बूटियों का उल्लेख किया गया है जो हमारे शरीर सौष्ठव के लिए अत्यंत ही लाभदायक है लेकिन हमें तो बुखार में पैरासिटामोल, अपच में डायज़ीन, शारीरिक कमजोरी में बिकासूल खाने की आदत पड़ चुकी है तो हम इन आयुर्वेदिक दवाओं का क्यों सेवन करें।
क्या कभी हमने सोचा है कि जो दवा इंस्टेंट रिलीफ के नाम पर हमें दिया जाता है आखिर उसका कुछ तो नकारात्मक प्रभाव होगा हमारे जीवन में?
अब भी समय है वैदिक भारत की ओर लौटिए कभी अपने पूर्वजों के लिखे नियमों को मानिए फिर देखिए कैसे फिर से भारत विश्वगुरु बनेगा और सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक होगा।
चलते-चलते ये काल तो कोरोना काल है तो और कहते हैं कि जिसका शरीर भीतर से मजबूत है वह इससे जीत जाएगा तो अपने घर वेद पुराण को (अश्वगंधा, गुडूची, त्रिफला) ले आईये फिर देखिए और महसूस कीजिये कि आपका शरीर कितना उपद्रव रहित है और हां ज्यादा मानसिक परेशानी हो तो शतावर भी लीजिये चित्त निर्मल हो जाएगा।
बाकी बिली बाबू अभी हिमालय की आभासी यात्रा पर हैं ही कोरोना मारक औषधि की तलाश में जिस दिन मिल जाएगा उसदिन फिर से अंग्रेजी पतलून पहन लीजियेगा फिर “What is ayurveda? कहियेगा। तबतक के लिए आयुर्वेद को अपना लीजिये और अंग्रेजी पतलून पहनने तक खुद को जिंदा बचा लीजिये।
फिलहाल के लिए चलिए आर्यवर्त में निवास कीजिये। कभी फिर मिलेंगे भारतीय खगोल विज्ञान मेरा मतलब भृगु संहिता और रावण संहिता के साथ तब तक के लिए शुभ विदा।।