
झूठा ही सही इंसाफ की आस में जीने के लिए भरोसा तो करना होता कि हमारी सुप्रीम जांच एजेंसी बहुत काबिल है और अदालतें इंसाफ का मंदिर
राजनीतिक मामले में सुप्रीम जांच एजेंसी और अदालतें अपनी काबिलियत से इंसाफ पर हमारे भरोसे को हिलाते- डुलाते रहते हैं…हम भी उंघते हुए इसे अपनी काबिलियत से मापते रहते हैं…
हमारी जांच एजेंसी और अदालतें कैसे काम करती है. उसका बेहतरीन उदाहरण लालू यादव पर आपराधिक मामले, उसकी जांच और फैसलों से समझा जा सकता है। शायद ही कोई अधिकारी या नेता हो जिस पर आय से अधिक मामला का संदेह हो, उस पर मामला दर्ज हो और वो देश की सुप्रीम अदालत ने भी निर्दोष साबित कर दिया गया हो। लालू शायद इकलौते राजनेता है! लालू को आय से अधिक मामले में सीबीआई की ट्रायल कोर्ट से राहत मिल गई। सीबीआई अपनी इस हार के खिलाफ ऊपर की अदालत गई ही नहीं। इस मामले की शिकायत सुप्रीम कोर्ट पहुंची तो सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को रफादफा कर दिया ।
दिलचस्प देखिए अदालत की नजर में उसी सीबीआई के पास लालू के खिलाफ इतने सबूत मिल गए कि लालू चारा घोटाला के सभी चार मामले में दोषी साबित हो गए। पांचवें मे भी सजा तय है। लालू को इतनी सजा हो चुकी है कि इस जनम में उनके लिए आजाद घुमना संभव नहीं दिख रहा। इतना ही नहीं हाल के दो वर्षों में लालू के पास से अरबो की अवैध बेनामी संपत्ति दिल्ली एनसीआर समेत पटना में अटैच की गई जो उनके नौ बच्चों और पत्नि के नाम से थे।
सवाल यह है कि यदि चारा घोटाला में लालू ने इतनी कमाई की कि एक दो नहीं सभी मामलों मेे दोषी साबित हो गए। तो फिर आय से अधिक संपत्ति मामले मे वो बरी कैसे हो गए! यदि उन पर आय से अधिक संपत्ति का मामला बनता नहीं तो उन्हें भ्रष्टाचार के मामले में इतनी सजा कैसे हो गई ! हमे तनीक भी लज्जा नहीं आति अपने इस सिस्टम पर।
लालू के 11 सदस्यीय परिवार में उनके अलावा कोई कमाऊ नहीं था फिर भी राजनीति और बिहार जैसे बेहद गरीब राज्य में सरकार में आते ही उनका साम्राराज्य इस कदर बढ़ा कि बेहद गरीब खेतिहर मजदूर का बेटा राजनीति के सेवागत पेशे में अथाह संपत्ति का मालिक बन गया। लेकिन उनके पास आय से अधिक संपत्ति सीबीआई ने जो दिखाया वो अदालत की नजर में आय से अधिक थी ही नहीं! फिर वो चारा घोटाले में दोषी कैसे हो गए.!
दिलचस्प देखिए राजनीतिक लाभहानि के लिए लालू पुत्र तेजस्वी इसके लिए मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं। लेकिन उन पर मामला दर्ज ,आरोप पत्र और आरोप तय तब हुआ जब वो खुद को किंग मेकर कहते थे। सजा कि शुरुआत तब हुई जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी जिसे वो बाहर से समर्थन दे रहे थे। हां उन्हें आय से अधिक संपत्ति में राहत तभी मिली जब वे यूपीए 2 के हिस्सेदार थे।
यह पूरा मामला यह समझने के लिए काफी है कि हमारी जांच एजेंसी,अदालतें राजनीतिक मामलों को कैसे डील करती है।
इसे और बेहतर समझने के लिए माया और मुलायम की राजनीति सूझबूझ से समझा जा सकता है। मुलायम और माया पर आय से अधिक संपत्ति का मामला दस साल तक सुप्रीम कोर्ट में लटका रहा। मुलायम पर तो सौ करोड़ से ज्यादा का सेल डीड सुप्रीम कोर्ट में याचिका कर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने पेश किया। मुलायम के खिलाफ शिकायत सुप्रीम कोर्ट मे अभी भी लटका है। कुछ होने की कोई उम्मीद नहीं हैं क्योंकि तब मुलायम सोनिया के थे अब मोदी के। सोचिए मामला तक दर्ज नहीं हुआ।
यूपीए 1 सरकार के दौर में ही यह मामला अपने दोनो सहयोगी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। चैक एंड बैलेंस चलता रहा। मोदी के दौर में भी वह चल रहा है।
मुलायम सत्ता वोट बैंक के बेहततर ठेकेदार और सत्ता के बेहतर मैनेजर हैं । ये तो नहीं कह सकता की लालू सत्ता के बेहतर मैनेजर नही रहे लेकिन बदलते वक्त के मैनेजर नहीं बन सके। बात कुछ भी हो राजनीतिक मामलों में सुप्रीम जांच एजेंसी और अदालते बेहतरीन मैनजर साबित होते हैं जो इंसाफ पर हमारे भरोसे को हिलाते डुलाते रहते हैं। कुछ हिलते डुलते रहना चाहिए। हमें व्यवस्था के वजूद का पता चलता है।
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