अनुज अग्रवाल – कोरोना, लॉकडॉउन व मंदी से सहमा देश पिछले कुछ समय से सड़कों पर है। बिहार हो या बंगाल या फिर केरल,तेलंगाना,कर्नाटक,महाराष्ट्र, गोवा, मध्य प्रदेश,राजस्थान, जम्मू कश्मीर और अब दिल्ली , तमिलनाडु , असाम व उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावो, उपचुनावों व स्थानीय निकायो के चुनावों के कारण राजनीतिक दल व जनता अति सक्रिय है तो कृषि सुधारों के विरोध में पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान भी आंदोलन कर रहे हैं, सीएए के कारण अल्पसंख्यक समुदाय पिछले वर्ष से ही आंदोलित है।
पक्ष- विपक्ष हर गली- कूँचे और गाँव,क़स्बे व शहर सभाएँ व रेली कर अपने अपने मत व विचार जनता को बताकर अपने अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। नेता जनता व कार्यकर्ताओं के बीच ही अच्छे लगते हैं व जनता से जुड़े रहने से ही उनको वास्तविक समस्या व उसके जन केंद्रित समाधान का महत्व व गहराई समझ आती है। तब उनकी नीति नीयत व नोकरशाही सब नियंत्रित व सही दिशा में काम करने लायक़ बनी रहती है।
देखा जाए तो लोकसभा चुनावों से भी ज़्यादा बड़ा मंथन व चिंतन देश में चल रहा है और समाजवाद बनाम बाज़ारवाद, धर्म निरपेक्ष बनाम धर्म सापेक्ष व्यवस्था,राष्ट्रवाद बनाम वेश्वीकरण जीडीपी बनाम ह्यूमन हैपीनेस इंडेक्स आधारित विकास व भोतिक विकास बनाम प्रकृतिकेंद्रित विकास पर शेष दुनिया की तरह संघर्ष,बहस व गर्मागर्मी जारी है ।
मगर इससे भी बड़ी बहस अस्तित्व के संकट की है। जलवायु संकट से पृथ्वी होली हुई है और ऐसा प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन व विकराल जनसंख्या के कारण हो रहा है। दुनिया की आबादी 800 करोड़ होने जा रही है जबकि पृथ्वी 400 करोड़ से ज़्यादा लोगों का भर वहाँ नहीं कर सकती। इसीलिए प्रकृति रोद्र रूप दिखा जनसंख्या नियंत्रण की कोशिश कर रही है जो अगले वर्ष और विकराल रूप ले सकता है और उसके बाद और अधिक।
इस चुनोती के बीच वेश्विक राजनीतिक व आर्थिक ताक़तों का आपसी संतुलन बुरी तरह बिगड़ चुका है जिस कारण आर्थिक ताक़तें अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर हावी हो चुकी हैं। दुनिया का नियंत्रण परोक्ष रूप से फ़ोर्चयून 500 कंपनियों के हाथ में आ चुका है और संयुक्त राष्ट्र संघ सहित अन्य सभी वेश्विक संगठन इन कंपनियों की कठपुतली बन चुके हैं।
इन कंपनियों द्वारा दुनिया को ज़ेविक युद्ध, साईबर युद्ध ,हथियारों की होड़ व उपभोक्ता सामानो का मैदान बना दिया गया है व जातीय व साम्प्रदायिक संघर्ष को जानबूझकर बढ़ावा दिया जा रहा है।मानव जाति के लिए यह सर्वाधिक चुनोतीपूर्ण समय है । यह निर्धारित करना कठिन है कि सही क्या और ग़लत क्या व सही कौन और ग़लत कौन? पूरी दुनिया “ नई विश्व व्यवस्था” बनाने की प्रसव पीड़ा से जूझ रही है और किसी को नहीं पता कि अगले कुछ वर्षों का यह मंथन, संघर्ष व संक्रमण काल किस प्रकार की वेश्विक व्यवस्था व पृथ्वी उत्पन्न करेगा।
क्या विचार, भाव व व्यवहार में वो वैसी ही होगी जो मानव जाति को लंबे समय तक सहज जीवन की उपलब्धता सुनिश्चित कराएगी या सभी राष्ट्र , सभ्यताएँ व सम्प्रदाय आपसी संघर्ष कर निबट जाएँगे? ज्ञान परंपरा के देश भारत ने हमेशा दुनिया को मार्ग दिखाया है।
अब पुनः उसको आगे आकार दुनिया का नेतृत्व करना चाहिए व जिन भी मुद्दों पर देश के अंदर संघर्ष व संवाद हो राह है उनको व्यापक दृष्टिकोण देते हुए वेकल्पिक दर्शन का विकास करे जो समाजवाद बनाम बाज़ारवाद, धर्म निरपेक्ष बनाम धर्म सापेक्ष व्यवस्था,राष्ट्रवाद बनाम वेश्वीकरण जीडीपी बनाम ह्यूमन हैपीनेस इंडेक्स आधारित विकास व भोतिक विकास बनाम प्रकृतिकेंद्रित विकास के बीच संघर्ष की जगह संतुलन व सामंजस्य का मार्ग प्रशस्त करें व संघर्ष की जगह संक्रमणकालीन सेतू बनाए व सर्वमान्य व्यवस्था बनने तक निरंतर संवाद की प्रक्रिया को सुनिश्चित कराए।
अनुज अग्रवाल
संपादक,डायलॉग इंडिया
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