विपुल रेगे। अभिनेता ऋषि कपूर के निधन के पश्चात उनकी अंतिम फिल्म शर्मा जी नमकीन ओटीटी पर प्रदर्शित हुई है। इस फिल्म के साथ विशेष बात ये है कि मुख्य चरित्र को ऋषि कपूर के साथ अभिनेता परेश रावल ने भी निभाया है। एक ही किरदार को दो अभिनेता निभाते दिखाई देते हैं। ये एक सेवानिवृत्त वृद्ध की कथा है, जो जीने की एक नई राह खोज रहा है।
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दिल्ली में रहने वाला बृजकिशोर शर्मा रिटायरमेंट के बाद अलग-अलग ढंग से समय बिताने का प्रयास करता है। उसे खाना बनाने का बहुत शौक है। उसे उसके मित्र पेशेवर रसोइया बनने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। एक दिन शर्मा जी को महिलाओं की किटी पार्टी में खाना बनाने का काम मिलता है। उनका खाना बहुत पसंद किया जाता है और काम चल निकलता है। शर्मा जी के दो बेटे हैं।
एक बेटे का विवाह होने वाला है। बड़ा बेटा मकान लेना चाहता है लेकिन बिल्डर उसको मकान नहीं दे रहा। शर्मा जी को इस बात के बारे में नहीं मालूम है और बेटे को भी नहीं पता है कि पिता ने कैटरिंग का कार्य शुरु कर दिया है। निर्देशक हितेश भाटिया की ये फिल्म दिल्ली की पृष्ठभूमि में सांस लेती प्रतीत होती है। ये अदाकारों की फिल्म है। फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता सरस निर्देशन और कलाकारों का अभिनय है।
ऐसा नहीं है कि ऋषि कपूर अंतिम समय में कोई महान फिल्म दे गए हैं लेकिन इतना अवश्य है कि उन्होंने अपनी फिल्म यात्रा का समापन गरिमामयी ढंग से किया है। फिल्म की शुरुआत में ऋषि कपूर के पुत्र रणबीर परदे पर आकर बताते हैं कि शूटिंग समाप्त होने से पूर्व ही ऋषि का निधन हो गया था। फिल्म को पूरा करने के लिए अभिनेता परेश रावल से अनुरोध किया गया।
फिल्म में शर्मा जी के आधे सीन परेश के हिस्से में आए हैं और उन्होंने बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ ये भूमिका निभाई है। फिल्म देखकर पता चलता है कि ऋषि लगभग चालीस प्रतिशत शूटिंग पूर्ण कर चुके थे। वे अधिकांश इनडोर दृश्यों में दिखाई देते हैं। दर्शक के लिए एक ही पात्र को दो अभिनेताओं द्वारा निभाते देखना असमंजस में डाल देता है।
हालाँकि तय करना मुश्किल होता है कि ऋषि और परेश में से कौन शर्मा जी को परदे पर जीवंत कर गया है। फिल्म एक सेवानिवृत व्यक्ति की आकाँक्षाओं को उड़ान भरती दिखाती है तो पिता-पुत्र के रिश्ते को भावनात्मक रुप से प्रस्तुत करती है। फिल्म का क्लाइमैक्स सबसे अच्छा है। अंतिम पंद्रह मिनट में दर्शक निर्मल मनोरंजन पाता है।
ऐसी फिल्मों की सूची बड़ी छोटी है, जिनमे मुख्य कलाकार के निधन के बाद दूसरे कलाकार ने उस किरदार को निभाया हो। के.आसिफ की एक फिल्म ‘लव एंड गॉड’ ऐसी ही फिल्म है जो विभिन्न कारणों से वर्षों तक रुकी रही। इसे बनाने की शुरुआत सन 1963 में हुई और ये 1986 में प्रदर्शित हुई। जब कुछ सीक्वेंस बचे थे, तभी मुख्य अभिनेता संजीव कुमार का निधन हो गया।
बाद में एक डुप्लीकेट को लेकर शूटिंग पूर्ण की गई और संजीव की डायलॉग डिलीवरी सुदेश भोंसले द्वारा करवाई गई थी। शर्मा जी नमकीन भविष्य में ऋषि कपूर की अंतिम फिल्म के रुप में जानी जाएगी। हालाँकि परेश रावल का भावनात्मक सहयोग भी बराबर याद रखा जाएगा। यदि परेश रावल का समर्पण न होता तो ये फिल्म रिलीज का मुंह नहीं देख पाती।