विपुल रेगे। नब्बे के दशक में तमिलनाडु के दो गांवों में हुई हिंसा ने देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था। जातिवादी संघर्ष के बाद पुलिस टीम ने एक गांव पर आक्रमण किया और ग्रामीणों के साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया था। इस घटना को इतिहास के पन्नों से ‘कर्णन’ खींच लाई है। कर्णन प्रदर्शित होने के बाद तमिलनाडु में नव निर्वाचित राज्य सरकार को परेशानी हो गई। जिस समय ये घटना हुई थी, राज्य की मुख्यमंत्री जयललिता हुआ करती थी। तमिल अभिनेता धनुष की ये फिल्म अब ओटीटी पर प्रदर्शित हो गई है। बहुत समय बाद एक ऐसी फिल्म आई है, जिसे देखने के बाद ऐसा लगता है कि फिल्म मेकिंग में भारत का भविष्य उज्ज्वल है।
कर्णन का ओपनिंग सीन ही बता देता है कि हम एक प्रतिभाशाली निर्देशक की फिल्म देखने जा रहे हैं। एक बच्ची सड़क पर पड़ी हुई है। उसके मुंह से झाग निकल रहा है। वह मरने वाली है लेकिन उसे सहायता नहीं मिल रही। एरियल व्यू से कैमरा ऊपर उठता है। बच्ची सड़क के बीच पड़ी है और आसपास से गाड़ियां उसे उपेक्षित करते हुए निकलती जा रही है।
कैमरा ऊपर उठता जा रहा है, जैसे कि भगवान का मानवता पर से विश्वास उठ गया हो। ऐसे भावप्रणव दृश्य के द्वार से हम इस फिल्म में प्रवेश करते हैं। कर्णन अन्य साधारण युवाओं की तरह ही है। उसका गांव जातिवाद और शासकीय उपेक्षा का शिकार है। उसका गाँव इतना उपेक्षित है कि सरकार आवागमन के साधन भी उपलब्ध नहीं करवाती।
एक दिन इस गांव में पुलिस का प्रवेश होता है और गांव मरघट बन जाता है। कर्णन तलवार उठा लेता है। तमिलनाडु में नब्बे के दशक में घटी सत्यकथा पर बनी इस फिल्म में इतनी ग्रिप है कि एक बार आप इसमें प्रवेश कर जाएंगे तो निकलने का मन नहीं करेगा। इस सुंदर फिल्म को कई ढंग से परिभाषित किया जा सकता है।
ये फिल्म अपने सरस स्क्रीनप्ले के लिए उतनी ही याद की जाएगी, जितनी कि धनुष के अविस्मरणीय अभिनय के लिए। ये फिल्म अपने कैमरावर्क के लिए उतनी ही याद की जाएगी, जितनी की अचूक निर्देशन के लिए। फिल्म के कुछ दृश्य आपके मन में ऐसे छप जाते हैं कि उनकी स्मृतियाँ आप अपने घर ले जाते हैं। एक दृश्य में धनुष एक ऐसे गधे को स्वतंत्र करता है, जिसके आगे के पांव उसके मालिक ने बांध रखे हैं ताकि वह स्वतंत्र होकर भाग न जाए।
गधे को स्वतंत्र करने के तुरंत बाद ही धनुष गाँव के लिए तलवार थाम लेता है। गधे के पैर खोलने के दृश्य से निर्देशक संकेत देता है कि गाँव पहले गधे की तरह लाचार था लेकिन अब उसकी बेड़िया खुल गई हैं। ऐसे ही कई दृश्य दर्शक को स्तब्ध कर देते हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि शुरुआत में मर चुकी बच्ची ने एक देवी का रुप धर लिया है और वह ग्रामीणों की सहायता कर रही है।
इस बच्ची पर सिनेमेटोग्राफर ने कैमरे को लेकर बहुत सुंदर प्रयोग किये हैं। सिनेमेटोग्राफर थेनी ईश्वर के अभूतपूर्व कैमरा ऐंगल्स के बिना फिल्म निर्देशक मारी सेल्वाराज फिल्म बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। तीन बड़े पुरस्कार जीत चुके थेनी ने कर्णन में विश्व स्तरीय सिनेमेटोग्राफी कर दिखाई है।
यदि आप प्रयोगधर्मी सिनेमा देखने के इच्छुक हैं तो ये फिल्म आपके लिए ही बनाई गई है। यदि आप मसाला फिल्मों से इतर एक अर्थपूर्ण सिनेमा देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपके लिए हैं। यदि आप फिल्म को विद्यार्थी की तरह पढ़ना जानते हैं तो ये फिल्म आपके लिए हैं। कर्णन थियेटर रिलीज के एक माह बाद प्राइम वीडियो पर अंग्रेज़ी सब टाइटल्स के साथ दिखाई जा रही है। भाषा के कारण हिन्दी भाषियों को कुछ समस्या होगी लेकिन फिल्म की दृश्यावली मन को छू जाएगी।