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India Speaks Daily > Blog > राजनीतिक विचारधारा > पंचमक्कारवाद > गलाकाट नृशंसता को मानवतावाद के पर्दे में ढंकने का ‘इफ्तारी पाखंड’!
पंचमक्कारवाद

गलाकाट नृशंसता को मानवतावाद के पर्दे में ढंकने का ‘इफ्तारी पाखंड’!

ISD News Network
Last updated: 2019/07/01 at 5:06 PM
By ISD News Network 1.5k Views 9 Min Read
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9 Min Read
Ankit Saxena father (File Photo)
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अंकित सक्सेना को तो आप लोग भूले तो नहीं हैं न? वही दिल्ली के रधुबीर नगर का फोटोग्राफर लड़का जो एक मुसलिम लड़की से प्यार करता था, और जिसे लड़की के घरवालों ने सरेराह गला रेत कर उसे मार डाला था। लड़की के घरवालों द्वारा सड़क पर उसका गला रेता जा रहा था, उसकी मां चीख-चीख कर लोगों से अपने बेटे को बचाने की गुहार लगा रही थी, लेकिन कोई उसकी जान बचाने नहीं आया! आसपास मुसलिम लोगों का ही घर था, लेकिन किसी ने उस मुसलिम परिवार का हाथ नहीं रोका, जो अंकित का गला रेत रहा था! आज वही आस-पास के मुसलिम परिवार के लोग उसके बेसहारा माता-पिता के घर पर इफ्तार का आयोजन करने पहुंच रहे हैं तो आपको सामान्य लग रहा है? मुझे तो नहीं लग रहा! चलिए कुछ कारण बताता हूं-

* इस इफ्तार पार्टी में सोनिया गांधी के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य और गुजरात में दंगों की दुकान सजाने वाले एक्टिविस्ट हर्ष मंदर इस पार्टी में मौजूद थे। यह वही हर्ष मंदर है, जिसने सोनिया गांधी के लिए सांप्रदायिक लक्षित हिंसा विधेयक जैसा ड्राफ्ट तैयार किया था, जिसमें हिंदू समाज को हमेशा के लिए दंगाई घोषित करने की योजना छिपी थी!

* इस पार्टी में गोरखपुर के सरकारी अस्पताल का ऑक्सीजन गैस सिलेंडर अपने निजी अस्पताल में उपयोग करने और कमीशनखोरी के आरोपी डॉ काफिल खान मौजूद थे, जिसे सेक्यूलर मीडिया ने हीरो बनाने का भरपूर प्रयास किया था।

* आरटीआई एक्टिविस्ट अंजली भारद्वाज वहां मौजूद थीं, जो नेशनल कैंपेन फॉर पिपुल्स राइट टू इनफॉर्मेशन से जुड़ी रही हैं, जिससे कभी सोनिया गांधी की टीम और अरविंद केजरीवाल भी जुड़े थे। अंजली को अमेरिका का अशोका फैलोशिप भी मिला हुआ है।

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तो इतने वीआईपी लोग क्या केवल अंकित के लिए आए थे? अब आगे आइए! बीबीसी की रिपोर्ट कहती है कि अंकित सक्सेना के पिता यशपाल सक्सेना का खाना-पीना पड़ोसियों के सहारे चल रहा है तो फिर इफ्तार पार्टी का आयोजन वह कैसे कर सकते हैं? यशपाल सक्सेना ने मीडिया से कहा कि उनके घर में इफ्तार के आयोजन का फैसला उसी गली में रहने वाले इजहार भाई का था! बीबीसी की रिपोर्ट कहती है, अंकित के मां-बाप ने उसे खून से सराबोर होकर ज़मीन पर गिरते हुए देखा। उन्होंने अपने पड़ोसियों से उस लड़के को बचाने की गुहार लगाई जिसे उन्होंने हाफ पैंट पहनने वाले एक बच्चे से एक नौजवान में तब्दील होते देखा था, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की। आज अंकित के घर में इफ्तार का आयोजन करने वाले ऐसे इजहार भाई उस दिन अंकित का जीवन बचाने नहीं आए थे? लेकिन आज इजहार भाई इफ्तार का आयोजन अंकित के परिवार में वीआईपी एनजीओ एक्टिविस्टों के साथ मिलकर कर रहे हैं तो क्या इस पर संदेह नहीं होना चाहिए? बड़े-बड़े मीडिया के कैमरे क्या केवल अंकित के पिता के चाहने पर आ गया था? या फिर लाया गया था?

Ankit Saxena (File Photo)

अब मीडिया के चेहरे देखिए! पूरा लुटियन मीडिया अंकित सक्सेना के पिता की जय-जयकार कर रहा है, जिसमें सागरिका घोष, निखिल वागले, राजदीप, शेखर जैसे पत्रकार शामिल हैं, जो साफ-साफ मुसलिम कट्टरता को बढ़ाने में सहायक रहे हैं।

दरअसल कहानी कुछ और है। कहानी यह है कि अंकित की हत्या दिल्ली में सरेराह सीरिया के आतंकी संगठन आईएसआईएस की तर्ज पर गला रेत कर किया गया। यह नृशंस हत्या देश की राजधानी में हुआ। यह भारत के अंदर मुसलिम कट्टरता का सबसे बड़ा सबूत बनकर सामने आया। ऐसे में मुसलिम कट्टरता के पोषकों ने इसे ढंकने के लिए मानवतावाद का पाखंड रचा और गरीब बेसहारा, हृदय रोग के शिकार अंकित के पिता को इसमें फांस लिया। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, अंकित इकलौता बेटा था। मॉडलिंग करता था, वीडियो बनाता था, फ़ोटोग्राफ़ी करता था। उनकी मौत के कुछ महीने पहले ही यशपाल की हार्ट सर्जरी हुई थी, इसलिए बेटे ने पापा की दुकान बंद करवा दी थी और आराम करने के लिए घर पर बिठा दिया था। कहा था, “पापा अब मैं सबकुछ संभाल लूंगा।” बीबीसी आगे लिखता है, बेटे की मौत का दुख था लेकिन चिंता रोटी की थी। यशपाल कहते हैं, “मेरे पास कुछ नहीं है। दो वक़्त का खाना भी पड़ोसियों के भरोसे चल रहा है। आगे क्या और कैसे होगा कुछ पता नहीं…लेकिन हो ही जाएगा।”

तो फिर इस गरीबी मे इफ्तार का अयोजन कैसे किया? यशपाल बेहद सादगी से कहते हैं, “मैंने कुछ भी नहीं किया। सबकुछ पड़ोसियों और उन लोगों ने किया है जिन्हें मैं जानता भी नहीं।” अंकित के पिता यशपाल के इन बातों पर गौर कीजिए? वह कह रहे हैं कि इफ्तार का अयोजन जो लोग कर रहे हैं, उसमें उनके पड़ोसियों के साथ वो लोग हैं, जिन्हें वह जानते भी नहीं! यानी सांप्रदायिक लक्षित हिंसा विधेयक जैसे विभाजनकारी कानून देश पर लादने की कोशिश करने वाले हर्ष मंदर एंड गिरोह, यानी अजहर भाई जैसे पड़ोसी, यानी एनजीओ एक्टिविस्ट और मीडियाई चेहरे! तो आखिर क्यों? क्या मानवता के लिए? या फिर देश की राजनधानी में गला रेतने वाले मध्ययुगीन मानसिकता से भरे कट्टर समुदाय की नृशंसता को ढंकने के लिए?

दरअसल यशपाल सक्सेना के बेटे के नाम पर ‘अंकित ट्रस्ट’ का निर्माण कर उस बेहारा और दो वक्त की रोटी को तरसते मां-बाप पर सहायता का जाल जिन्हें वो जानते भी नहीं, उन वीआईपी एक्टिविस्टों ने उनके मुसलिम पड़ोसियों के साथ मिलकर फेंका है और इफ्तार का आयोजन कर सरेआम हुए इस्लामी कट्टरता को मानवातावादी बुर्के से ढंकने का प्रयास किया है! वामपंथी और कट्टरपंथी इसमें पूरी तरह से सफल रहे! जिस प्रेम के लिए अंकित की हत्या की गई, उसी प्रेम का दिखावा कर इस्लाम का क्रूर चेहरा पूरी तरह से ढंक दिया गया है!

सोचिए, अंकित के पिता यशपाल सक्सेना के इफ्तार में उसके बेटे अंकित की नृशंसतापूर्वक की गई हत्या आज पूरी तरह से दब कर रह गयी है। क्रूरता को ढंकने के लिए मानवतावाद का मुखौटा लगाया गया है। यही वामपंथ और इस्लामपंथ का वह तरीका है, जिसमें दुनिया बार-बार फंसती रही है! एलन कुर्दी के शव को दिखाकर मानवतावाद का संसार रचा और यूरोप ने अपना दरवाजा सीरियाई शरणार्थियों के लिए खोल दिया! आज यूरोप के हर घर में गोरों की छोटी-छोटी बच्चियों को एलन कुर्दी की तरह रौंदा जा रहा है!

और हां, हिंदू समाज की तो पूछिए मत! न ही हिंदुओं के नाम पर संगठन चलाने वालों से कुछ पूछिए! हर्ष मंदर और गोरखपुर से काफिल खान तो यशपाल सक्सेना के घर पहुंच गया, लेकिन पड़ोसी हिंदू उसकी देखभाल नहीं कर सके। यह एक ऐसे समाज की कहानी है, जो अपनों को तिल-तिल मरता छोड़ देता है और तब तक नहीं जगता, जब तक कि उसके घर में अपनों का गला न रेता जा रहा हो! जब जवान बेटा मर जाए, घर में दो वक्त का खाना भी न हो, शरीर बीमार और कमाने लायक न हो, सिर पर बुजुर्ग और सदमे में जी रही पत्नी का भार हो, तो फिर कोई भी व्यक्ति उसके लिए ही अपने घर का दरवाजा खोलता है, जहां से थोड़ी भी सहानुभूति की झलक मिल जाए! यही कारण है कि वामपंथी हों, इस्लामपंथी हों या मसीहपंथी हों, वह एकजुटता से गला रेतने जैसी कट्टरता को भी ढंक लेते हैं और हिंदू समाज सहिष्णु होकर भी आतंकवादी बना दिया जाता है! बिखरे होने की कुछ तो सजा होती ही है!

URL: ‘Iftar hypocrisy’ to cover the fury of humanity

keywords: Iftar hypocrisy, fury of humanity, Ankit saxena, Ankit saxena murder case, Honour killing, ankit saxena father, Iftar, Muslim fanatics, Delhi crime, इफ्तारी पाखंड, अंकित सक्सेना, इफ्तार,

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