भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़कर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दावत देने वाले इमाम बुखारी वाले जामा मसजिद के पास वीआईपी होटल में मुसलमान पत्रकार इफ्तार करने के लिए जमा हुए। केवल इफ्तार करने के लिए जमा होते तो कोई बात नहीं थी, लेकिन ये लोग ‘मुसलिम यूनिटी’ के बैनर तले जमा हुए। यानी इनकी पत्रकारिता का चोला उतर गया और मुसलमान अंदर से बाहर निकल आया! सोच कर देखिए, यदि कोई पत्रकार ‘हिंदू एकता’ के बैनर तले भोज का आयोजन करे तो ये सारे मुसलमान, कम्युनिस्ट और लुटियन पत्रकार एक सुर में उन्हें सांप्रदायिक करार दे देंगे! लेकिन आपने कहीं कोई शोर सुना कि देश का मुसलमान पत्रकार ‘मुसलिम यूनिटी’ के नाम पर सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे रहा है? कांग्रेस राज में जमकर माल कूटने वाले मुसलमान पत्रकार आज शिया-सुन्नी, मुसलिम युनिटी की बात कर रहे हैं, तो जानते हैं इसके पीछे की वजह क्या है?
इन पत्रकारों, अहां, मुसलिम पत्रकारों को दर्द है कि मोदी सरकार तीन तलाक को क्यों खत्म कर रही है? इनको दर्द है कि मोदी सरकार ने हज की सब्सिडी को क्यों खत्म किया है? इनको दर्द है कि मदरसे में फर्जी लोगों के वजीफे के नाम पर जाने वाले करोड़ों रुपये को मोदी-योगी सरकार ने आधार कार्ड से जोड़ कर बंद क्यों कर दिया है? इनको दर्द है कि मदरसे में मजहबी तालीम के अलावा अन्य विषयों को पढ़ाने के लिए क्यों कहा जा रहा है? इनको दर्द है कि मदरसे में राष्ट्रगान गाने की अनिर्वायता क्यों लगाई गयी है? इनको दर्द है कि पिछले चार साल में एक भी शहर में बम धमाका करने वाले मजहबी जमात के लोग शहरों में क्यों नहीं घुस पा रहे हैं? इनको दर्द है कि देश में षड्यंत्र रचने के लिए लाए जा रहे NGO में विदेशी फंडिंग पर मोदी सरकार ने कड़ी कार्रवाई क्यों की है? इनको दर्द है कि कश्मीर में 200 से अधिक जेहादी आतंकवादी क्यों मारे गये हैं? इनको दर्द है कि मजहबी देश पाकिस्तान को मोदी ने भिखमंगा क्यों बना दिया है? इनको दर्द है कि शिया वक्फ बोर्ड राम मंदिर के नाम पर सच क्यों बोल रहा है? ऐसे कई दर्द से ये मुसलिम पत्रकार गुजर रहे हैं। इन दर्दो को कम करने के लिए जामा मसजिद के पास वीआईपी होटल की छत पर इफ्तार-इफ्तार खेलने के लिए ये मुसलमान पत्रकार जमा हुए थे। आखिर 2019 का भी तो इन्हें डर है कि कहीं मोदी दोबार आ गये तो तीन तलाक जैसे सारी इस्लामी बुराईयों पर कानूनी रोक लग सकता है!
यह एक अवधारणा है कि पत्रकार समाज को अपनी लेखनी और करनी से सही रास्ता दिखाते हैं। लेकिन आज इस उम्मीद को तार-तार कर वही पत्रकार मुसलिम एकता के लिए काम करते हैं। जबकि अगर यही काम हिंदू यूनिटी के नाम पर किया जाए तो उन्हें सांप्रदायिकता का ठप्पा लगा दिया जाता है। लेकिन आरफा खानम शेरवानी हो या मुबारक अली, जफर आगा हो जैसे बड़े पत्रकार आज सरेआम मुसलिम एकता के लिए काम कर रहे हैं। इसके लिए ये लोग इफ्तार पार्टी का आयोजन धड़ल्ले से करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इनके पीछे की मंशा न मजहबी सौहार्द कायम करना है न ही अपने समुदाय के प्रति इन्हें कोई स्नेह उपजा है। इनकी मंशा विशुद्ध राजनीतिक है। पत्रकार किसी संप्रदाय, जाति या समुदाय का नहीं होता है। वह सिर्फ पत्रकार होता है। लेकिन धीरे धीरे ही सही इनलोगों का नकाब उतरना शुरू हो गया है। ये पत्रकार मुसलिम हो गए हैं। जो बाद में न पत्रकार रहेंगे न ही मुसलिम ही रह पाएंगे।
मुख्य बिंदु
* मुसलिम यूनिटी के नाम पर पत्रकार कर रहे हैं इफ्तियार पार्टी का आयोजन
* हिंदू यूनिटी के नाम पर ऐसे आयोजन करने वालों को सांप्रदायिकता का ठप्पा लगा दिया जाता है
कुर्बान अली, जफर आगा हों या आरफा खानम शेरवानी- सभी कांग्रेस-कम्युनिस्ट मानसिकता के रहे हैं! लेकिन जिस तरह से मोदी सरकार के आने के बाद ये मुसलिम यूनिटी का राग अलाप रहे हैं, वह इनकी छुपी हुई कट्टर मानसिकता को भी बाहर ले आया है।
आरोप है कि कुर्बान अली ने पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के कार्यकाल के दौरान राजसभा टीवी में जमकर मजा लूटा! आज जब कांग्रेस सत्ता से बाहर है और अब आम चुनाव होने में एक साल बचा है तो ये लोग उस नमक की सरीयत देने में जुट गए हैं। आरफा खानम शेरवानी आज किस प्रकार की पत्रकारिता कर रही हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। सरकार विरोध के नाम पर देश का विरोध करने लगी हैं। सरकार के खिलाफ फेक न्यूज परोसने का अपना एकमात्र एजेंडा बना चुकी हैं। वह अपने कार्यक्रम में कभी भी किसी विरोधी आवाज वाले को नहीं बुलाती हैं। देश से लेकर विदेश तक में सरकार और देश को बदनाम करने का उनका एकमात्र एजेंडा है।
ये लोग अभियान चला-चलाकर खुद को एंटी नेशनल गैंग में शामिल कर लिया है। ये नहीं जानते कि सरकार की आलोचना एक चीज है और देश की आलोचना दूसरी चीज। इन दोनों के बीच एक बारीक सी लकीर होती है। देश और समाज के खिलाफ निर्णय लेने वालों की आलोचना अवश्य होनी चाहिए वह चाहे विरोधी पार्टी हो या सत्ताधारी पार्टी या फिर सरकार। लेकिन इन लोगों ने अपना अभियान कांगेस-कम्युनिस्ट-अलगाववादी-मजहबी जमात के समर्थन में चला रखा है!
इन सभी की मंशा किसी न किसी प्रकार कांग्रेस को सत्ता में लाना है। इसी लक्ष्य के लिए ये लोग जी-जान से जुटे हैं। चाहे मौजूदा केंद्र सरकार के खिलाफ फेक न्यूज प्रचारित करने का काम हो या कांग्रेस के लिए एक बार फिर मुसलिमों को लामबंद करना हो। ये लोग इसी काम में जुटे हैं कि किसी प्रकार मुसलिम का एकमुश्त वोट कांग्रेस के पक्ष में चला जाए! क्या सचमुच ये लोग पत्रकार हैं, या फिर मदरसे से निकली सोच?
ये मुसलमान पत्रकार मजहब के नाम पर जो इफ्तियार पार्टी कर रहे हैं वे मुसलिमों के हित में भी नहीं है। क्योंकि ये लोग लोकतांत्रिक मूल्य के तहत मुसलमानों को अपने विवेक से फैसला लेने देना ही नहीं चाहते। ये बताते हैं कि आप अपना भला-बुरा नहीं जानते। आपका भला-बुरा मैं जानता हूं इसलिए मेरा कहा मानिए और जो कह रहा हूं वही करिए! असल में मुसलमानों में जो तबका पढ़ लिखकर आगे बढ़ गया है वो भी पिछड़े मुसलमानों को पिछड़ा ही रखना चाहते हैं ताकि उनकी पूछ उनके बीच बनी रहे। इनके नाम पर वे मलाई चाटते रहें।
देश के मुसलमानों को इतने दिनों तक यही लोग पिछड़ा बनाए हुए हैं। मुसलमानों ने अपने विवेक से सरकार चुनने में कभी कोई भूमिका निभाई ही नहीं! पहले मौलानाओं के चंगुल में फंस कर हांके जाते रहे, अब मुसलमान बुद्धिजीवियों द्वारा हांके जाने का प्रयास किया जा रहा है। मुसलमानों को समझना चाहिए कि जिस प्रकार ये पत्रकार इन्हें मजहब के नाम पर एक होने की बात कह रहे हैं, अगर उसी प्रकार हिंदू एक हो गया तो इनका हस्र क्या होगा? इसीलएि ये मुसलिम यूनिटी और हिंदू विखंडन के लिए काम करते हैं! दलितों को हिंदुओं से तोड़ने का कोई कम उपक्रम कर रहे हैं ये कांग्रेसी-कम्युनिस्ट तबलीगी पत्रकार?
इन लोगों ने तो कई मौकों पर समाज को भी बांटने काम किया है। कठुआ का मामला हो यो भीमा कोरेगांव का हिंसा, इन लोगों ने पूरे हिंदू को अपमान करने और हिंदुओं में फूट डालने का अभियान चलाया और इसके लिए जमकर फेक न्यूज भी प्रसारित किया। ये मुसलमान पत्रकार जिस प्रकार मजहब की आड़ लेकर अपने राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए मुसलिम को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं, इससे आने वाले समय में मुसलमानों का बुरा ही होने वाला है क्योंकि इस प्रकार की विभेदकारी साजिश से किसी संप्रदाय का भला नहीं हो सकता है!
URL: Iftar party for Muslim unity becomes communal in name of Hindus unity
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