भारत जैसे देश में बड़ा आसान हो जाता है स्वयं को असहाय और पीड़ित दिखाना यदि आप दलित कार्ड खेलने में माहिर हैं अथवा आप वामपंथी हैं, समाज में द्वन्द फैला कर अपना उल्लू सीधा करना वामपंथ का चिर-परिचित खेल है। जेएनयू का कन्हैया कुमार हो अथवा हैदराबाद में रोहित वेमुला आत्महत्या मामला, वामपंथ द्वारा पैदा किये खरपतवार है जिन्हें भारत के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग और हाथ में माइक और कैमरा पकड़े पत्रकारों के एक धड़े द्वारा पोषित और संरक्षित किया जाता है।
‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी’ या ‘अफजल हम शर्मिंदा है’ जैसे नारों को अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता बताने वाले इस तथाकथित बुद्धिजीवियों के इस वर्ग का एक मीडिया वर्ग समर्थन ही नहीं करता बल्कि अदालत के फैसले पर भी सवालिया निशान खड़ा करने में पीछे नहीं हटता! हैदराबाद विश्विद्यालय के रोहित वेमुला की आत्महत्या को हत्या साबित करने के लिए छाती कूटते और घड़ियाली आंसू बहाते बेशर्म वामपंथी हो अथवा जादवपुर यूनिवर्सिटी में देश विरोधी नारे लगाते झूठ और मक्कारी की पराकाष्ठा को पार करता हुआ सेकुलर गिरोह, केवल समाज में द्वन्द फैलाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।
फासीवाद,अभिव्यक्ति स्वतंत्रता का हनन, मानवाधिकार, दलित जैसे घिसे पिटे शब्दों ने लैस इन बौद्धिक आतंकवादियों ने अगला निशाना ‘भारतीय जनसंचार संस्थान'(IIMC) को बनाया है जहाँ एक वामपंथी विचारधारा के प्रोफेसर नरेंद्र देव को अनियमितता के कारण पद से मुक्त कर दिया गया। जिसके बाद नरेन्द्र ने एक खुला पत्र लिखकर आईआईएमसी पर निराधार आरोप लगाते हुए कहा कि “आईआईएमसी में दलित छात्रों के साथ भेदभाव होता हैं!” सोचने वाली बात यह की उन्हें इस तरह क्व भेदभाव तब क्यों नहीं नजर आये जब वह सेवा में थे? सेवा मुक्त हो जाने के बाद इस तरह के आरोप लगाकर संस्थान को बदनाम करने वाली मानसिकता केवल वामपंथियों के दिमाग की उपज है।
दरअसल यह सारा मामला IIMC के नवनिर्वाचित अध्यक्ष के जी सुरेश को लेकर जुड़ा है जब से के.जी सुरेश IIMC के अध्यक्ष बनाए गए हैं, तभी से यह संस्थान वामियों और बौद्धिक आतंकवादियों की आँख में चुभने लगा है। दरअसल वामपंथी विचारधारा मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले हर छोटे बड़े शिक्षण संस्थानों के शीर्ष पर काबिज थी लेकिन पिछले दो सालों में जिस प्रकार वामपंथी विचारधारा को जनता और सरकार ने सिरे से नकारना शुरू किया है उससे उनको पीड़ा होनी शुरू हो गयी है और वामपंथी अपने किले को ध्वस्त होने से बचाने के लिए किसी भी हद से गुजर सकते हैं, ताज़ा मामले में वरिष्ठ पत्रकार राम मोहन राय के खिलाफ हुए षड़यंत्र को याद कीजिये की कैसे उन्हेंइंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र से हटाने के लिए झूठ का सहारा लिया जब उनकी एक अनऔपचारिक बात को सनसनी बना कर ‘आउटलुक इंडिया’ पत्रिका में छापा गया था।
रामबहादुर राय के खिलाफ किये गए षड्यंत के बारे में पढ़ें:
* दलित राजनीति के खेल में इस बार ‘एजेंडा जर्नलिस्टों’ के निशाने पर बुजुर्ग पत्रकार रामबहादुर राय!
खैर! जहाँ तक नरेंद्र देव को पद से हटाने की बात है वह University Grants Commission(UGC) के नियमों के अन्तर्गत आती है यह बात तो तय है। नरेंद्र ने एम फिल की डिग्री हासिल की हुई है वह बात अलग है कि वह पत्रकारिता से सम्बंधित नहीं है! यूजीसी के मानकों के तहत वे २००९ से पहले पीएचडी डिग्री धारक भी नहीं है, निजी संबंधों से उन्होंने इस संस्थान में प्रवेश पाया और दो साल से कक्षायें ले रहे हैं जबकि उनकी डिग्री इस बात कि इजाजत नहीं देती कि वह स्नाकोत्तर के विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करे।
अपनी बर्खास्तकी को लेकर रोना रोने वाले नरेंद्र देव इतने पढ़े लिखे तो हैं कि किसी भी डॉक्यूमेंट पर हस्ताक्षर करने से पहले उसमें लिखे नियम और शर्तो को समझ सकें! आपके द्वारा दस्तखत किये सेवा शर्तों में साफ़ उल्लेख है कि “किसी भी समय सेवाएँ समाप्त की जा सकती हैं।” नरेंद्र देव को उनके आचरण, संस्थान में अनुपस्थिति के कारण पद से मुक्त किया गया है न कि किसी षड्यंत और निजी कारणों से!
लेकिन जिस भांति यह संस्थान को बदनाम करने के लिए अनर्गल वार्तालाप कर रहे है वह मानसिकता केवल वामपंथियो की ही हो सकती है जो स्वयं को हमेशा असहाय शोषित पीड़ित दिखा कर अपने लिए सदभावनाओं की संभावनायें तलाशते रहते हैं ऐसी वाम विचारधारा को केवल आंख खोलकर देखने और समझने की जरूरत है, इसलिए अपनी आंखें खुली रखिये और ऐसे लोगों के खिलाफ विरोध दर्ज कीजिये वरना वह दिन दूर नहीं जब जेएनयू और हैदराबाद की तरह IIMC में भी भारत की बर्बादी तक के नारे लगने शुरू हो जायें!