सरकारें सब धंधा कर रहीं , पैसा खूब कमाना है ;
उस पैसे से वोट खरीदें , केवल सत्ता में रहना है ।
सत्ता भी किसलिये चाहिये ? जीवन में ऐश जो करना है ;
राष्ट्र की चिंता सबसे पीछे , पहले तो मौज ही करना है ।
सरकारें बन चुकी हैं “बनिया”,”क्षात्र-धर्म” को छोड़दिया है ;
डर के मारे जजिया देतीं , राजदंड को तोड़ दिया है ।
मजहब वाले कट्टर होते , इसी से हावी हो जाते हैं ;
सत्ता वाले पूंछ हिलाते , मंदिर की लूट कराते हैं ।
केवल हिंदू को मूर्ख बनाकर , उल्लू सीधा करते हैं ;
हिंदू कहीं चेत न जायें , झूठा – इतिहास पढ़ाते हैं ।
हिंदू को कर रहे अनैतिक , नैतिक – शिक्षा से दूर किया ;
धर्म को ये दुश्मन हैं मानते , उसकी जड़ को काट दिया ।
धर्म है दुश्मन अनाचार का, हमको पापों से घृणा सिखाता ;
इसीलिये ये तोड़ के मंदिर , गलियारा बनवाता जाता ।
हिंदू इनकी गाय दुधारू , जब चाहे दुहते रहते हैं ;
एक-एक बूंद दूध ले लेते , टैक्स बढ़ाते रहते हैं ।
पर अब दूध से नहीं भर रहा मन , गला काटकर लेते खून ;
पश्चिम से वेगन आयातित , अब गायों का होगा खून ।
हिंदू मरता क्या न करता ? हाथ-पांव अब मार रहा है ;
सड़े हुये दलदल को छोड़कर , अच्छे दल को देख रहा है ।
हिंदू का सौभाग्य तो देखो , “इकजुट-जम्मू” आया है ;
“इकजुट-जम्मू”,”इकजुट-हिंदू”, “इकजुट-भारत” आया है ।
अंतिम आशा ये भारत की , अब इसकी सरकार बनाओ ;
हिंदू अब केवल यही मार्ग है , जान-माल-सम्मान बचाओ ।
आने वाले हर-चुनाव में , हर-हिंदू इसको वोट करेगा ;
हिंदू का खून चूसने वाला , अब सत्ता में नहीं रहेगा ।
धर्म की रक्षा – जीवन रक्षा , हर हिंदू की सुनिश्चित होगी ;
हजार बरस की जो है गुलामी,हिंदू को उससे मुक्ति मिलेगी।
सबसे बड़ा शत्रु हिंदू का , नेता जो अब्बासी – हिंदू ;
नामोनिशां मिटाओ इसका , “इकजुट-भारत” लाओ हिंदू ।
“इकजुट-भारत” एकमात्र दल , “भारतवर्ष” बचायेगा ;
“धर्म – सनातन” स्थापित कर , “हिंदू – राष्ट्र” बनायेगा ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”