राजा का यह दायित्व है कि वह दंड नीति आदि के द्वारा समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करे ताकि एक आदर्शात्मक राज्य की स्थापना हो सके।
राजा यदि अराजकतावादियों पर कार्रवाई नहीं करता तो यह माना जाता है कि राजा स्वयं अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए अराजकता को प्रेरित कर रहा है।
राजा का यह दायित्व सनातन काल से भारतीय शासन स्तंभ का आधार रहा है। उपनिषद काल में इसे और प्रमुखता से स्थापित किया गया।
शुक्राचार्य ने तो काल का कारण भी राजा को माना है। शुक्र ने समाज का धर्माचरण, आचार-विचार आदि के प्रति संपूर्ण दायित्व राजा में अर्पित किया है। वह लिखते हैं:-
“आचारप्रेरको राजा होतत्कालस्य कारणम्।
यदि काल: प्रमाणं हि कस्माद्धर्मोऽस्ति कर्तृषु।।” (शु.नी.१/२२)
शुक्र नीति (2 खंडो में) प्राप्ति लिंक:-