न जाने इस समय देश में ऐसे कितने स्कूल चल रहे हैं, जहां राष्ट्रगान को हराम घोषित कर रखा है। पहले उप्र से खबर आई और अब राजस्थान से कि वहां के स्कूलों में राष्ट्रगान का विरोध हो रहा है! पहले इस्लामी कट्टपंथियों को वंदे मातरम पर आपत्ति हुई और अब जन गण मन से आपत्ति है! चूंकि भारत का बंटवारा एक बार मजहब के आधार पर हो चुका है, इसलिए इन्हें भारत देश से ही आपत्ति है! चेतन हो या अचेतन- इनका मन भारत को एक राष्ट्र मानने को तैयार ही नहीं है और इसमें इन्हें वामपंथी बुद्धिजीवियों का समर्थन प्राप्त है, क्योंकि स्टालिन की भी सोच थी कि भारत एक राष्ट्र नहीं है! तभी आप राष्ट्रवाद के खिलाफ एनडीटीवी पर बहस देखते और अंग्रेजी अखबारों में इसे पढ़ते हैं!
राजस्थान के एक स्कूल पर राष्ट्रगान, ‘जन गण मन’ को इस्लाम विरोधी बताकर बंद करने का आरोप लगा है। TOI की खबर के मुताबिक, यह प्राइवेट स्कूल राजस्थान के बाडमेर जिले में है। इसका नाम मौलाना वलि मोहम्मद है। वहां पढ़ने वाले हिंदू स्टूडेंट्स पर कुरान पढ़ने के लिए दवाब भी डाला गया था।
पहले कट्टरपंथियों को वंदेमातरम से समस्या हुई, नेहरू ने तब इनका साथ दिया! फिर इन्हें भारत से समस्या हुई, देश के टुकड़े हुए! 1946 के चुनाव में जिन प्रदेशों के मुसलमानों ने पाकिस्तान निर्माण के लिए वोट दिया, वो यहीं रह गए, नेहरू ने आल इंडिया रेडियो पर घोषणा कर-कर के उन्हें रोका! फिर कश्मीर से हिन्दुओं का सफाया कर दिया और अब राष्ट्गान की खिलाफत पर उतर आए हैं! आज भी नेहरू की सोच वाले इनके समर्थन में संसद से टीवी स्टूडियो तक कुतर्क कर रहे हैं! याद रखिए, भारत में वामपंथ, असल में नेहरूपंथ पर खड़ा है! नेहरू की हर अवधारणा रूसी कम्युनिस्ट तानाशाह स्टालिन की अवधारणा की नकल है! इसे आप ठीक से मेरी शीघ्र प्रकाशित ‘भारतीय वामपंथ का काला इतिहास’ पुस्तक के जरिए समझ पाएंगे!
दरअसल समस्या उनकी नहीं, समस्या हमारी है! इस्लाम सह-अस्तित्व को नहीं मानता है! और नेहरू समर्थक इसे मानने को राजी नहीं हैं! ज्यों-ज्यों इनकी जनसंख्या बढ़ेगी, इस देश में और पाकिस्तान निर्माण की संभावना बढ़ती जाएगी! इसलिए जरूरी यह है कि इस्लाम के भारतीयकरण पर जोर दिया जाए। और यह तभी संभव है जब इस देश में समान नागरिक संहिता, समान शिक्षा व्यवस्था, समान जनसंख्या नीति, कश्मीर से 370 को समाप्त कर समान राज्य नीति और हज सब्सिडी व मदरसा संस्कृति समाप्त कर समान धार्मिक नीति लागू हो ! सभी भारतीय एक समान की नीति जब तक लागू नहीं होगी, तब तक इनकी प्रैक्टिस में मजहब से बड़ा राष्ट्र कभी स्थापित नहीं हो पाएगा!
नेहरु बनने की कीमत इस देश ने बहुत चुका ली है, अब और नेहरू न बना जाए! अन्यथा जैसे कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ, इस देश की आने वाली पीढ़ियों का भी हश्र कुछ वैसा ही हो सकता है! अब भी नहीं चेते तो कब चेतेंगे? सरकारें वोट बैंक की गुलाम होती हैं, इसलिए आम भारतीयों को ही इन नीतियों को लागू करवाने के लिए सड़क पर उतरना पड़ेगा! याद रखिए, पूर्व में कश्मीरी पंडितों की हठधर्मिता की कीमत उनके बच्चों को चुकानी पड़ी! हमारी उदासीनता की कीमत हमारे बच्चों को चुकानी पड़ेगी!
इसलिए उठिए और समान नागरिक संहिता, समान शिक्षा व्यवस्था, समान जनसंख्या नीति, समान राज्य नीति और समान धार्मिक नीति लागू करने के लिए आंदोलन चलाएं! इस्लाम अपने श्रेष्ठता दंभ से पीड़ित है, इसे समानता के धरातल पर उतारना होगा! यदि हर चीज में समानता एक प्रगतिशील धारणा है तो फिर यहां क्यों नहीं?
फिर से याद रखिए, गली-गलौच से कुछ नहीं होगा! अधिक से अधिक इससे आपका फ्रस्ट्रेशन निकलेगा, लेकिन ठोस धरातल पर कुछ नहीं होगा! सरकारों को गाली देकर भी कुछ हासिल नहीं होगा, क्योंकि हुक्मरानों के बच्चों का नरसंहार नहीं, हमारे बच्चों के नरसंहार की स्थिति बन रही है- जब तक इस तरीके से नहीं सोचेंगे, तब तक हम-आप अपनी उदासीनता नहीं तोड़ पाएंगे! भारत के हर कोने में पाकिस्तान बन रहा है, कृपया सचेत होइए!