विपुल रेगे। नवरते का गरबा व्यावसायिक आयोजन न होता तो इसमें अनेक प्रकार की बुराइयों ने जन्म न लिया होता और तब ये शुद्ध सात्विक गरबा होता, जो माँ की आराधना में थिरकते भक्तों के चेहरों का पवित्र ओज दिखाता। किसी बाज़ारु मॉडल ने नवरात्रि के पंडाल में खड़े होकर लड़के-लड़कियों को बताया है कि नवरात्रि में वैलेंटाइन से अच्छी ‘सेटिंग’ की जा सकती है। जब धार्मिक आयोजनों में बेहिसाब पैसा और ग्लैमर आता है तो साथ में उर्वशी सोलंकी जैसा कचरा भी ले आता है।
उर्वशी सोलंकी ने नडियाद के गरबा आयोजन में कहा कि गुजरात का गरबा पूरी दुनिया में फेमस है। गुजरात में किसी लड़की को आई लव यू कहना हो तो लोग वैलेंटाइन डे का नहीं बल्कि नवरात्रि का इंतजार करते हैं। नौ दिन गरबा करने के बाद भी अगर आप सिंगल हैं तो समझो आपने सिर्फ गरबा ही किया है। आप में से कितने लोगों ने आई लव यू बोला है? और 9 दिन में जिन लोगों की सेटिंग नहीं हुई, वे अगली नवरात्रि का इंतजार करेंगे। इस बात पर विवाद उठ खड़ा हुआ है। हालांकि इसे अब ‘न्यू नॉर्मल’ समझ लेना चाहिए।
जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में इस धार्मिक आयोजनों में हदें पार हुई है, उसके बाद ऐसे और हादसों के लिए समाज और देश को तैयार रहना चाहिए। हर वर्ष गरबा आयोजन महंगे और पहले से अधिक ग्लैमराइज होते चले जा रहे हैं। सन 2020 में ही गरबा उद्योग 25,000 करोड़ का हो चुका था। उर्वशी सोलंकी जैसे लोग ऐसे आयोजनों में भीड़ खींचने के लिए बुलाए जाते हैं। गुजरात जैसे राज्य में गरबा आयोजकों के बीच तगड़ी प्रतियोगिता का माहौल रहता है।
पिछले साल सरकार द्वारा गरबों पर जीएसटी लगाए जाने के बाद इन आयोजनों के टिकट और महंगे हो गए। अब गरबा आयोजक उर्वशी जैसे कलाकारों को बुलाकर गरबों की भीड़ मेंटेन रखने लगे हैं। इस प्रकरण में स्वयं उर्वशी का एटीट्यूड गौर करने योग्य है। जब मीडिया ने उर्वशी के बयान की आलोचना करती खबर छापी तो उन्होंने इस पर खेद प्रकट करने के बजाय वह खबर अपने ट्वीटर हैंडल पर साझा की। उर्वशी ने मूक संदेश दिया है कि उन्हें अपने आपत्तिजनक बयान की आलोचनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता।
वेलेंटाइन वीक और किसी आपत्तिजनक फिल्म की रिलीज पर सड़क पर उतर आने वाला बजरंग दल भी समर्पण एजुकेशन ट्रस्ट के इस कार्यक्रम पर सवाल या विरोध करता दिखाई नहीं दिया। जब किसी गलत परंपरा का समाज में पुरज़ोर विरोध नहीं किया जाता, तो दूसरी भाषा में उसे समाज का समर्पण समझ लिया जाता है। फिर वह गलत परिपाटी समाज के सिर पर गठरी बनाकर लाद दी जाती है।
उर्वशी सोलंकी के बयान के बाद उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। गुजरात के गरबा समूहों की कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं आई। मीडिया ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया तो यकीन मानिये कि समाज ने पिछले दरवाज़े से एक और सांस्कृतिक आतंकवाद को एंट्री दे दी है। कुछ उत्तरदायित्व केवल सरकार के नहीं होते, उन्हें हमें अपने कंधे पर लेकर चलना होता है।