बचपन में जिस पेड के नीचे ,
गर्मियां गुजार देते थे,
सुना है ! कल काट दिया,
मॉल बनाने के लिए !
उसमें लटके,
कुछ झूले ?
जो हवा की सैर
कराते थे, हमें
अब कहाँ लगाएंगे?
कुछ बेले भी थी,
जो गलबहियां डाले
पड़ी रहती थीं !
प्रियतमा के जैसे
सुना है !
उन्होंने भी जौहर
ले लिया अपने प्रेमी
पेड के साथ,
कुछ जोड़े पक्षियों के,
अभी तक बैठे हैं
पास के मुंडेर पर,
अपने घोसलों की चाह में
जिनमें उनके अंडे थे,
एक पल में ही,
कितना कुछ बदल गया,
विकास के नाम पर !
एक पेड फिर से मर गया !
और, मर गया वो जीवन,
जो उसके साथ पलता था !