मोदी सरकार ने कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को को खारिज करते हुए कूड़ेदान में डाल दिया है। मोदी सरकार ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि इसे भारत की संप्रभुता पर हमला माना जाएगा। कश्मीर भारत का हिस्सा है, और इसमें किसी तीसरे की दखलअंदाजी भारत की एकता पर हमला माना जाएगा। असल में संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार उच्चायुक्त जेन बिन राद अल-हुसैन भारत और मोदी सरकार का धुर विरोधी है। वे अरब देशों से ताल्लुक रखते हैं और कट्टर मुसलमान हैं।
बीबीसी के अनुसार, प्रिंस ज़ेद ने जून 2014 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त का पद संभाला। मतलब जिस वक़्त भारत की सत्ता मोदी के हाथों में आई उसी वक़्त ज़ेद के हाथों में यूएन में मानवाधिकार की। यानी ज़ेद शुरु से मोदी सरकार का विरोध कर रहा है। दूसरी ओर दिवालिया हो चुके पाकिस्तान अपने इस मुसलिम भाई ज़ेद की रिपोर्ट पर बहुत खुश है।
कश्मीर पर ताज़ा रिपोर्ट से पहले भी ज़ेद भारत सरकार की आलोचना कर चुका है। पिछले साल सितंबर में उसने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के 36वें सत्र में रोहिंग्या समस्या के प्रति भारत सरकार के रवैये की आलोचना की थी। उस समय भी भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि संयुक्त राष्ट्र ने किसी एक घटना को काफ़ी विस्तार देकर उसे समाज की व्यापक समस्या बताया है।
प्रिंस जेद ने 49 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में जुलाई 2016 से अप्रैल 2018 यानी मोदी सरकार के आने के बाद से कश्मीर में हुई घटनाओं का उल्लेख करते हुए कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन की बात कही है और यह कहा है कि कश्मीर के लिए एक अंतरराष्ट्रीय जांच आयोग बनाया जाए। मोदी सरकार ने इसे साफ तौर पर पूर्वग्रह प्रेरित रिपोर्ट बताते हुए खारिज कर दिया है।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, प्रिंस ज़ेद राद अल हुसैन जॉर्डन के शाही परिवार के सदस्य हैं। हुसैन संयुक्त राष्ट्र में सितंबर 2010 से जुलाई 2014 तक जॉर्डन के राजदूत रह चुके हैं। द इकॉनोमिक टाइम्स में प्रकाशित लेख के अनुसार ज़ेद जॉर्डन के राजा अबदुल्ला द्वितीय के चचेरे भाई हैं।
URL: India and Modi sarkar dismiss UN report on kashmir
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