चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर स्थिति अब समाधान के करीब है और पैंगांग झील को लेकर चीन के साथ समझौता भी हो चुका है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा मे विस्तारपूर्वक पूरी स्थिति का ब्यौरा दिया कि किस प्रकार से पैंगांग झील के उत्तर और दक्षिण मे सैनिको की वापसी पर चीन के साथ सहमति बन चुकी है. और इस संबंध मे दोनों देशों के सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है.
साथ ही रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि भारत ने हमेशा ही द्विपक्षीय संबंधों के बने रहने पर ज़ोर दिया है और इस समझौते के अंतर्गत तय हुआ है कि अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति को लागू किया जायेगा और जो निर्माण अभी तक किया गया , उसे तत्काल हटा दिया जायेगा.
साथ ही उन्होने यह भी कहा कि सैनिक वापसी की प्रक्रिया जैसे ही पूरी हो जायेगी, वैसे ही बार्डर के मुद्दों को लेकर दोनों देशों के बीच विभिन्न स्तरों पर बातचीत की प्रक्रिया शुरू होगी. समझौते के 48 घंटो के भीतर ही दोनों देशों के कमांडर मुलाकात करेंगे.
पिछले कुछ समय से पैंगांग झील को लेकर भारत और चीन के बीच जिस तरीके के हालात चल रहे थे और दोनों देशों के बीच कमसकम 9 बार उच्च स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं, इस मुद्दे को लेकर, विभिन्न स्तरों पर बातचीत हुयी लेकिन फिर भी कोई हल, कोई समाधान निकलता नही नज़र आ रहा था. तो उस लिहाज़ से तो ये समझौता मोदी सरकार के लिये एक बड़ी विजय है, कूटनीति के लिहाज़ से और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज़ से.
हालांकि आलोचकों के शब्द बाण बरसना अभी से शुरू हो गये हैं. सबसे बड़े आलोचक हैं, जिन्हे हम सभी जानते हैं, कांग्रेस पार्टी के श्री राहुल गांधी जी जिन्होने इस पूरे समझौते को लेकर एक सनसनीखेज़ बयान दे डाला कि भारत सरकार ने चीन के साथ पैंगांग झील को लेकर यह समझौता एक कीमत पर किया है. उन्होने सरकार पर बाकायदा आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की पावन ज़मीन चीन को दे दी, भारत मां का एक टुकड़ा चीन को सौंप दिया. राहुल गांधी ने कहा कि रक्षा मंत्री के बयान से स्पष्ट है कि हम फिंगर 4 से फिंगर 3 पर आ गये. जबकि फिंगर 4 तो हमारा इलाका है.
इस पर भाजपा के पार्टी अध्यक्ष जे पी नड़्डा ने कहा कि राहुल गांधी इस प्रकार का झूठा दावा करके सेना का अपमान कर रहे हैं. जे पी नड्डा ने राहुल गांधी को जवाब देते हुये ट्वीट करते हुये कहा कि क्या यह कांग्रेस और चीन के बीच हुये एम ओ यू का हिस्सा है?उन्होने फिर इस बात को रेखांकित किया कि मौजूदा समझौते के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा कोई भी इलाका चीन को नही दिया गया.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी स्थिति स्पष्ट कर दी है कि इस समझौते के अंतर्गत भारत की कोई भी ज़मीन चीन को नही दी गयी.
लेकिन हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस पार्टी , एक ऐसी पार्टी जिसने स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक अधिकांश समय देश पर राज किया है, एक ऐसी पार्टी जो कि अधिकांश समय सत्ता मे रही है, मोदी सरकार को सत्ता से हटाने की अपनी चाह में उसका इतना अधिक नैतिक पतन हो गया है कि उसने अंतराष्ट्रीय समुदाय के सामने देश का मज़ाक बना कर रख दिया.
देश के प्रधानमंत्री पर यह आरोप लगाना कि उन्होने किसी समझौते के अंतर्गत भारतीय ज़मीन का एक हिस्सा पड़ोसी देश को सौंप दिया है, कोई छोटी बात नही है. और वह भी बिना किसी तथ्य के यह आरोप लगाना. और इससे भी ज़्यादा आश्चर्य की बात यह है कि राहुल गांधी के इस आरोप को मीडिया मे खूब कवरेज भी मिल रही है. खैर, वो तो मिलेगी ही क्योंकि वो इतने बड़े विपक्ष के नेता हैं.
भारत का मीडिया इस बारे मे बात करता है, उससे इतना नुकसान फिर भी नही होता. लेकिन देश का सिर शर्म से तब झुक जाता है, उसका आत्मगौरव तब लहुलूहान हो जाता है जब विदेशी मीडिया राहुल गांधी के इस प्रकार के बेसिरपैर के बयान के बारे में खबरें प्रकाशित करता है. क्योंकि उसे तो स्कूप चाहिये और जब भारत की विपक्षी पार्टी का एक नेता उसे इतना बड़ा स्कूप दे रहा है, तो वो तो छापेगा ही.
और बात यही नही रुकेगी. अब इसके बाद कांग्रेस के सारे फैंस , उनके चेले चपाटों की पूरी फौज ट्विटर, फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर भी इस बात को लेकर झूठी खबरें, फेक न्यूज़ फैलानी शुरू कर देगी कि भारत सरकार ने अपनी ज़मीन का एक टुकड़ा चीन को दे दिया. इस बात को लेकर फेसमुक पर लोग मेम्स बनायेगे और ट्विटर पर हैशटैग चलेंगे.
एक मिनट के लिये अगर मान भी लें कि राहुल गांधी को वाकई मे देश की चिंता है और उन्हे सच मे लगता है इस समझौते मे सरकार ने कुछ गलत किया है तो वे गुप्त रूप से प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख सकते थे. बिना इस मुद्दे को इस प्रकार लाइमलाइट मे लाये वे पहले इस मुद्दे को लेकर सरकार से बातचीत कर सकते थे.
लेकिन यहां उनका उद्द्देश्य सिर्प्फ सनसनी फैलाना और सरकार को नीचे लाने का रास्ता ढूंढना है और इसीलिये उन्होने सार्वजनिक रूप से इस प्रकार की बात रखी.
खैर, राहुल गांधी से अब समझौते की ओर वापस लौटते हुये, सेना और सरकार के रणनीतिकार अब विश्वास जता रहे हैं कि पैंगांग झील मे भारत और चीन की सेनाओं के पीछे हटने की सहमति के पश्चात डेपसांग के पुराने और जटिल मसले को भी बातचीत द्वारा सुलझा लिया जायेगा.
विशेषज्ञों के अनुसार यह संभव है कि पैंगांग के उत्तरी और दक्षिणी किनारो से सेनाओं के पूरी तरह हटने से पहले ही डेपसांग पर बातचीत शुरू हो जाये.
अब चीन इस प्रकार के डिसइंगेज्मेंट के लिय तैयार कैसे हो गया, इसके पीछे बहुत सी वजहें हो सकती है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर चीन को बहुत से मुद्दों को लेकर आलोचना का सामना करना पड रहा है. हाँग कांग के मुद्दे को लेकर तो उसकी ब्रिटेन से तन गयी है. ब्रिटेन और चीन के बीच मीडिया शीत युद्ध भी छिड़ गया है. ब्रिटेन ने चीन के स्टेट ब्राड्कास्टर सी सी टी वी के अंग्रेज़ी भाषा के अंतराष्ट्रीय न्यूज़ चैनल सी जी टी एन को प्रतिबंधित किया तो चीन ने बी बी सी वर्ल्ड पर ही बैन लगा दिया. अमेरिका से तो चीन के संबंध पहले से ही बिगड़े हुये हैं और जो बाइडन सरकार के आने के बाद भी उनके सुधरने के आसार कम ही नज़र आ रहे हैं.
ऐसे मे संभव है कि चीन अपनी छवि सुधारने के लिये और दुनिया को दिखाने के लिये यह डिसेंगेज्मेंट कर रहा हो. लेकिन मुख्य बात यह है कि यहां भारत सरकार को बहुत ही सावधान और सतर्क रखने की आवश्यकता है. क्योंकि ड्रैगन जैसे पड़ोसी का कोई चार दिन मे हृदय परिवर्तन नही हो जायेगा. वो कभी भी किसी भी बात को लेकर पलट सकता है, समझौते उसके लिये कोई खास मायने नही रखते, इस बात के प्रमाण उसने अतीत मे कई बार दिये हुये हैं. इसीलिये भारत सरकार को अपनी तरफ से ड्रैगन पर बहुत ज़्यादा नज़र रखने की ज़रूरत है. और जैसा कि अंग्रेज़ी मे एक कहावत है कि जो कुछ भी चीन कहता है, take it with a pinch of salt.