लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच जो हिंसक झड़्प हुई, उसमे 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए. और विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कमसकम 40 चीनी सैनिक मारे गये. हालांकि चीन ने अपने सैनिकों को पहुंची क्षति को लेकर कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की है.
जिस प्रकार चीन ने छल से भारतीय सेना पर प्रहार करने की कोशिश की, वो भी एक ऐसे समय पर जब दोनों देशों के सेना प्रमुखों के बीच वार्ता चल रही थी, इसके बाद से भारत में चीनी सामान के बहिष्कार का नारा और भी बुलंद् हो गया है. देश भर में जगह जगह भारतीय व्यापारी चीनी समान को जलाकर, उसका बाकायदा दहन कर उसका बहिष्कार कर रहे हैं. और साथ ही प्रण कर रहे हैं कि वे चीनी माल आयात नहीं करेंगे चाहे उन्हे कितना भी बडा आर्थिक नुकसान क्यों न उठाना पड़े. कई जगहों पर तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले भी जलाये गये.
इस घटना के बाद अब सरकार ने भी चीन के प्रति कड़ा रूख अपना लिया है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि भारत यूं तो सदा से ही शांति के पक्ष में रहा है लेकिन यदि उसे बेवजह उकसाया गया तो उसे उचित जवाब देना भी आता है, यदि भारत की अखंडता को कोई ललकारता है तो भारत भी चुप नहीं बैठेगा.
गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई इस हिंसक मुठ्भेड़ के बाद भारतीय रेल ने फ्रेट कांरिडोर डेवेलपमेंट के लिये चीनी कंपनी के साथ जिस अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे, उसे अब रद्द करने का निर्णय ले लिया है. हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि इस निर्णय का गलवान घाटी की घटना से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन इस बात को तो नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता कि यह निर्णय ठीक उस घटना के बाद ही हमें सुनने को मिलता है, जब भारत में चीनी सामान के विरोध के स्वर अपने चरम पर हैं. भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने भी सरकारी कंपनी बी एस एन एल को अपनी 4 जी उन्नयन प्रकिया में चीनी उपकरणों का प्रयोग न करने के लिये कहा है. किसी भी देश की सरकार सीधे तौर पर तो किसी दूसरे देश के सामान को अपने यहां जगह देने या उनकी कंपनियों के साथ बिज़नेस करने के लिये मना नहीं कर सकती. यह तो फिर विश्व व्यापार संगठ्न के नियमों के विरुद्ध हो जायेगा. लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर इस प्रकार् के निर्णय लेकर भारत सरकार चीन को यह संदेश ज़रूर पहुंचा सकती है कि भारत चीन में बने सामान पर अपनी निर्भरता कम कर के चीन को आर्थिक रूप से क्षति पहुंचाने में पूर्णतया सक्षम है.
विश्व विख्यात भारतीय वैज्ञानिक सोनम वांगचुक ने सोशल मीडिया पर अपने यू ट्यूब वीडियोज़ के ज़रिये चीनी सामान का बहिष्कार करने की जो मुहिम छेड़ी थी, उसने भारत के मिडिल क्लास के मन में गहरी जड़ें बना लीं, वही मिडिल क्लास जो कि चीन से आयात किये गये सस्ते सामान का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. और अब सैनिकों की मुठ्भेड़ की घटना के बाद से तो चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम को आम लोगों से अप्रत्याशित सपोर्ट मिल रहा है. सोनम वांगचुक के यू ट्यूब वीडियोज़ के नीचे के अगर हम कमेंट देखेंगे तो पायेंगे कि किस प्रकार से लोग देश्प्रेम की भावना से ओत प्रोत होकर चीनी सामान त्यागने का दृढ संकल्प कर रहे हैं. ये एक प्रकार का नवजागरण ही है. और इस मुहिम की सफलता से चीन अब बुरी तरह सकपका गया है. इसीलिये चीन का मीडिया इस प्रकार के लेख प्रकाशित कर रहा है कि भारत को बार्डर समस्या को आर्थिक मुद्दों के साथ नहीं जोड़ना चाहिये, वगैरह वगैरह.
एक ऐसे समय में जब दोनों देशों के बीच इतना अधिक तनाव बढ चुका है और बात सैनिकों की जान तक आ पहुंची है, भारत का लेफ्ट लिबरल मीडिया सीधे तौर पर तो चीन का पक्ष नही ले रहा लेकिन बड़ी ही चालाकी से इस प्रकार की खबरें प्रकाशित कर रहा है जिससे चीन का पक्ष सामने आये. जैसे कि कुछ न्यूज़ रिपोर्ट्स इस बात को लेकर चिंता जता रही हैं कि दोनों देशों के बीच बार्डर पर बढ्ते तनाव के चलते उन भारतीय कंपनियों के बिज़नेस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है जो चीन से कच्चा माल आयात करते हैं. तो कुछ् खबरें इस प्रकार का ज्ञान भी दे रही हैं कि कार्पोरेट या बिज़नेस से जुड़े निर्णयों को भू राजनीतिक मुद्दों से अलग रखना चाहिये. और कुछ इसी प्रकार की बातें चीन का मीडिया भी कर रहा है.
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