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India Speaks Daily > Blog > इतिहास > स्वर्णिम भारत > भारत का प्राचीन इतिहास काफी गौरवशाली है! वैदिक काल में घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों का वर्णन मिलता है!
स्वर्णिम भारत

भारत का प्राचीन इतिहास काफी गौरवशाली है! वैदिक काल में घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों का वर्णन मिलता है!

ISD News Network
Last updated: 2018/06/28 at 12:13 PM
By ISD News Network 317 Views 7 Min Read
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7 Min Read
Sonauli excavation found chariot (File Photo)
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उत्तर प्रदेश के सोनौली में जो पुरातात्विक अवशेष मिले हैं इससे यह साबित हो गया है कि हमारा प्राचीन इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। अभी तक जैसे मेसोपोटामिया या हड़प्पा की संस्कृति को सबसे प्राचीन माना जा रहा था, हमारी ऐतिहासिक सभ्यता भी उनसे कम प्राचीन नहीं है। उत्तर प्रदेश के सोनौली में हुई खुदाई के दौरान कांस्य युग के समय के रथ और घोड़ों के अवशेष मिले हैं इससे यही साबित होता हैं। सोनौली में शवों की समाधि की खुदाई के दौरान जो अवशेष मिले हैं उससे पुरातात्विक विभाग का दल काफी उत्साहित हैं। इस दल के नेतृत्व करने वाले पुरातत्व विभाग के निदेशक एसके मंजुल ने कहा है कि इस खोज से महाभारत काल के लिंक जुड़ते हैं।

मुख्य बिंदु

* यूपी के सोनौली में हुई खुदाई में मिले हैं कांस्य युग के रथ और घोड़ा के अवशेष

* इस ऐतिहासिक खोज से हमारे देश के इतिहास को मिल रहा है नया आयाम

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* हमें अपने अतीत पर पुनर्विचार करना के साथ नए परिप्रेक्ष्य के साथ संपर्क करना होगा

उत्तर प्रदेश के सोनौली स्थित एक शवों की समाधि की खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग को जो प्रमाण मिले हैं वह भारत के गौरवशाली अतीत का सबूत बनकर सामने आया है। इस शवों की समाधि से पुरातत्व विभाग को लौह युग से पहले यानि कांस्य (ताम्र) युग के अवशेष के प्रमाण मिले हैं। यह अवशेष रथ और घोड़ा के हैं। इन अवशेषों को देखने के बाद पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना है कि इससे महाभारत काल और हड़प्पा काल में घोड़े के उपयोग को लेकर कई नए तथ्यों का खुलासा हो सकता है। पुरातत्वविदों ने सोमवार को बताया कि ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी खुदाई के दौरान रथ और घोड़े के अवशेष मिले हों।

भारत में भी प्राचीन काल से ही रथों और घोड़ों का उपयोग होता रहा है।

पुरातत्व विभाग के निदेशक एसके मंजुल और सह-निदेशक अरविन मंजुल के नेतृत्व में 10 लोगों की टीम ने 2018 के मार्च से इस शवों की समाधि की खुदाई शुरू की थी। मंजुल का कहना है कि इस खुदाई से मिले प्रमाण भारत के प्राचीन इतिहास को गौरवमयी बनाता है। उन्होंने कहा कि इससे पहले मेसोपोटामिया, जॉर्जिया और ग्रीक सभ्यता में रथ और घोड़े के उपयोग के प्रमाण मिले हैं। लेकिन अब सोमौली की खुदाई से भारत में प्राचीन काल में इसके साक्ष्य मिल गए है। इस प्रमाण के बाद अब हम भी कह सकते हैं कि भारत में भी प्राचीन काल से ही रथों और घोड़ों का उपयोग होता रहा है।

सोनौली में जो ऐतिहासिक साक्ष्य मिले हैं इससे अब हमें अपने अतीत पर पुनर्विचार करने के साथ ही अपने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को नए संदर्भ में देखना है। इस अवशेष में सबसे खास बात है कि रथ की बनावट बिल्कुल वैसी ही है जैसे इसके समकालीन मेसोपोटामिया आदि दूसरी सभ्यताओं के दौरान मिला था। इस रथ के पहिए की बनावट ठोस हैं इसमें तीलियां नहीं हैं। रथ के साथ पुरातत्वविदों को मुकुट भी मिला है जिसे रथ की सवारी करने वालों द्वारा पहना जाता रहा होगा।

पुरातत्व विभाग के मुताबिक 116 कब्रगाहों की खुदाई जरूरी

गौरतलब है कि देश के पुरातात्विक विभाग को साल 2005 में खुदाई के दौरान 116 शवों की समाधि का पता चला जिसका संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से बताया गया। दोबारा जब वहां 120 मीटर की दूरी से खुदाई की गई तो यहां रथ और घोड़े के अवशेष मिले। यहां आठ कब्रगाहों की खुदाई की गई। हर कब्रगाह की खुदाई के दौरान लौह युग या उससे पहले के अवशेष मिले हैं। पुरातत्वविदों के मुताबिक हर समाधि की खुदाई के दौरान अलग-अलग तरह की सभ्यताओं की कहानी सामने आ रही है। यहां की खुदाई से उस काल के लोगों के रहन सहन से लेकर कला और संस्कृति के अवशेष मिल रहे हैं।

इन शवों की समाधि में कंकाल, मिट्टी के बर्तन, तलवार, टॉर्च व रथ मिले हैं। ताबूतों पर तांबे से नक्काशी की गई थी। इससे पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग कला के साथ साथ तकनीकी रूप से भी एडवांस थे! इन प्रमाणों के मिलने के बाद घोड़ों के कंकालों का पता लगाने के लिए खुदाई की जाएगी। एक कब्र में कुत्ते का शव भी मिला है जो कि हिंदू पौराणिक चरित्र यम का वाहन है इसलिए पुरातत्व विभाग का मानना है कि ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बाकि बचे कब्रगाहों की खुदाई करनी जरूरी है ताकि हमारे प्राचीन इतिहास का साक्ष्य समृद्ध हो सके।

दूसरे इतिहासकारों का पक्ष

इस मामले में इतिहासकार डीएन झा का मानना है कि वैदिक काल में घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों का वर्णन मिलता है। हालांकि लोहे का प्रमाण उत्तर वैदिक काल में मिलता है। कई विद्वानों ने महाभारत के समयकाल के बारे में लिखा है। डीएन झा का कहना कि उन्हें नहीं पता कि किसने रथ का प्रमाण महाभारत का समयकाल निर्धारित करने के लिए किया है।

वहीं दूसरे इतिहासकार वी एस सूक्तांकर के अनुसार, महाभारत की रचना कई शताब्दियों में हुई है। एक सामान्य मान्यता है कि इसकी रचना 400 ईसा पूर्व से लेकर 400 ईस्वी के बीच हुआ था। हालांकि कुछ लोग महाभारत काल को और छोटा बताते हैं! लेकिन डीएन झा का कहना है कि किसी भी हालत में महाभारत की रचना किसी एक रचनाकार द्वारा नहीं की गई और यही कारण है कि महाभारत काल के सही समय को निर्धारित करना काफी मुश्किल है।

URL: India has been glorified in global history, proven by the Sonauli excavation of UP

Keywords: Sonauli excavation, sonauli found chariot, sonauli of up, bronze age, indian sub continent, indus valley civilization, सोनौली खुदाई, सोनौली, कांस्य युग, भारतीय उप महाद्वीप, सिंधु घाटी सभ्यता

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ISD News Network June 28, 2018
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Posted by ISD News Network
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