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India Speak Daily > Blog > समाचार > देश-विदेश > दुनिया के 10 कर्जदार देशों में भारत 7 वें नं पर!
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दुनिया के 10 कर्जदार देशों में भारत 7 वें नं पर!

ISD News Network
Last updated: 2025/03/20 at 1:05 PM
By ISD News Network 23 Views 8 Min Read
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Grok : दुनिया के 10 बड़े कर्जदार देश

यहां दुनिया के शीर्ष 10 कर्जदार देशों की सूची दी जा रही है, जो कुल विदेशी कर्ज (external debt) के आधार पर 2024 तक के उपलब्ध आंकड़ों से संकलित है। यह सूची मुख्य रूप से हाल के वैश्विक आंकड़ों और वर्ल्ड ऑफ स्टेटिस्टिक्स जैसे स्रोतों पर आधारित है:

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) – $36 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 34.6%)
  2. चीन (China) – $14.69 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 16.1%)
  3. जापान (Japan) – $10.2 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 10.0%)
  4. यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) – $3.66 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 3.6%)
  5. फ्रांस (France) – $3.57 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 3.5%)
  6. इटली (Italy) – $3.26 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 3.2%)
  7. भारत (India) – $3.26 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 3.2%)
  8. जर्मनी (Germany) – $2.96 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 2.9%)
  9. कनाडा (Canada) – $2.35 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 2.3%)
  10. ब्राजील (Brazil) – $1.94 ट्रिलियन (कुल वैश्विक कर्ज का 1.9%)

नोट: ये आंकड़े कुल कर्ज (सार्वजनिक और निजी दोनों) को दर्शाते हैं, जो विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के आकार और वित्तीय गतिविधियों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। कुछ सूचियों में कर्ज-से-जीडीपी अनुपात के आधार पर रैंकिंग अलग हो सकती है, जहां जापान, ग्रीस जैसे देश ऊपर आते हैं।


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सितंबर 2024 तक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत का कुल विदेशी कर्ज (external debt) $711.8 बिलियन (लगभग 711.8 अरब अमेरिकी डॉलर) है। इसे भारतीय रुपये में परिवर्तित करने पर (1 अमेरिकी डॉलर = लगभग 83 रुपये मानते हुए, जो आज की तारीख 19 मार्च 2025 के आसपास का औसत विनिमय दर है):

  • $711.8 बिलियन × 83 रुपये = लगभग 59.08 लाख करोड़ रुपये।

भारत के विदेशी कर्ज का विवरण:

  • जीडीपी के अनुपात में: यह भारत की जीडीपी का लगभग 18.8% से 19.4% है, जो इसे अभी भी प्रबंधनीय स्तर पर रखता है।
  • प्रमुख कर्जदाता: विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक (ADB), जापान ($20.5 बिलियन), रूस ($3.1 बिलियन), जर्मनी ($2.7 बिलियन), और अमेरिका ($33 मिलियन) जैसे देश शामिल हैं।
  • वृद्धि का रुझान: 2014 में भारत का विदेशी कर्ज $446.2 बिलियन था, जो 2024 तक $711.8 बिलियन हो गया, यानी 10 सालों में लगभग $265.6 बिलियन की वृद्धि हुई।

यह कर्ज मुख्य रूप से बुनियादी ढांचा विकास, आर्थिक प्रोत्साहन, और वैश्विक व्यापार के लिए उपयोग किया जा रहा है। भारत का कर्ज अभी भी कई विकसित देशों की तुलना में कम जोखिम वाला माना जाता है, क्योंकि इसका विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत है और कर्ज-से-जीडीपी अनुपात स्थिर है।

2004 से 2014 तक भारत के विदेशी कर्ज का विश्लेषण

2004 से 2014 तक भारत का विदेशी कर्ज (external debt) तेजी से बढ़ा। यह अवधि भारत के आर्थिक उदारीकरण और वैश्विक एकीकरण के दौर से जुड़ी है, जिसमें बुनियादी ढांचा विकास, औद्योगीकरण और विदेशी निवेश में वृद्धि हुई। यहाँ इस अवधि के आंकड़े और विश्लेषण हैं:

  • 2004 में विदेशी कर्ज: $111.7 बिलियन (लगभग 11.17 अरब अमेरिकी डॉलर)।
  • 2014 में विदेशी कर्ज: $446.2 बिलियन।
  • कुल वृद्धि: $446.2 – $111.7 = $334.5 बिलियन।
  • प्रतिशत वृद्धि: ($334.5 / $111.7) × 100 = लगभग 299%।
  • औसत वार्षिक वृद्धि: $334.5 बिलियन / 10 साल = $33.45 बिलियन प्रति वर्ष।

प्रमुख कारण:

  1. आर्थिक विकास और निवेश: 2004-2014 के बीच भारत की जीडीपी औसतन 7-8% की दर से बढ़ी। इस दौरान बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (जैसे हाईवे, बंदरगाह) और ऊर्जा क्षेत्र में भारी निवेश हुआ, जिसके लिए विदेशी कर्ज लिया गया।
  2. वैश्विक वित्तीय संकट (2008): संकट के बाद भारत ने घरेलू मांग को बढ़ाने के लिए कर्ज लिया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (IMF, विश्व बैंक) से उधारी शामिल थी।
  3. कम ब्याज दरें: इस अवधि में वैश्विक बाजारों में कम ब्याज दरों ने भारत को सस्ते कर्ज लेने के लिए प्रेरित किया।
  4. कर्ज-से-जीडीपी अनुपात: 2004 में यह अनुपात 17.1% था, जो 2014 तक बढ़कर 23.9% हो गया, जो कर्ज में तेज वृद्धि को दर्शाता है।

संरचना:

  • इस दौरान बहुपक्षीय (multilateral) कर्ज (विश्व बैंक, ADB) और द्विपक्षीय कर्ज (जापान, जर्मनी) में वृद्धि हुई।
  • वाणिज्यिक उधारी (commercial borrowings) और NRI जमा (deposits) भी बढ़े।

2014 से 2024 तक भारत के विदेशी कर्ज का विश्लेषण

2014 से 2024 तक भारत का विदेशी कर्ज बढ़ा, लेकिन पिछले दशक की तुलना में वृद्धि की गति धीमी रही। यह अवधि नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल से मेल खाती है, जिसमें आर्थिक सुधार, आत्मनिर्भरता पर जोर और विदेशी मुद्रा भंडार में मजबूती देखी गई। आंकड़े इस प्रकार हैं:

  • 2014 में विदेशी कर्ज: $446.2 बिलियन।
  • 2024 में विदेशी कर्ज (सितंबर 2024 तक): $711.8 बिलियन।
  • कुल वृद्धि: $711.8 – $446.2 = $265.6 बिलियन।
  • प्रतिशत वृद्धि: ($265.6 / $446.2) × 100 = लगभग 59.5%।
  • औसत वार्षिक वृद्धि: $265.6 बिलियन / 10 साल = $26.56 बिलियन प्रति वर्ष।

प्रमुख कारण:

  1. बुनियादी ढांचा और विकास परियोजनाएँ: स्मार्ट सिटी, हाई-स्पीड रेल (जैसे बुलेट ट्रेन परियोजना जापान के सहयोग से), और डिजिटल इंडिया जैसी परियोजनाओं के लिए कर्ज लिया गया।
  2. कोविड-19 प्रभाव: 2020-21 में महामारी के कारण आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अतिरिक्त कर्ज की आवश्यकता पड़ी।
  3. मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार: 2014 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $303 बिलियन था, जो 2024 तक बढ़कर $652.9 बिलियन हो गया। इससे कर्ज प्रबंधन में सहायता मिली।
  4. कर्ज-से-जीडीपी अनुपात: 2014 में 23.9% से घटकर 2024 में 18.8%-19.4% के बीच रहा, जो दर्शाता है कि कर्ज की वृद्धि जीडीपी की वृद्धि के साथ संतुलित रही।

संरचना:

  • प्रमुख कर्जदाता: विश्व बैंक, ADB, जापान ($20.5 बिलियन), रूस ($3.1 बिलियन), जर्मनी ($2.7 बिलियन)।
  • मुद्रा: 53.8% कर्ज अमेरिकी डॉलर में, 31.5% रुपये में, शेष येन, यूरो और SDR में।
  • दीर्घकालिक कर्ज: कुल कर्ज का 81.5% दीर्घकालिक (1 साल से अधिक अवधि) है, जो स्थिरता दर्शाता है।

तुलनात्मक विश्लेषण

विवरण2004-20142014-2024
प्रारंभिक कर्ज$111.7 बिलियन$446.2 बिलियन
अंतिम कर्ज$446.2 बिलियन$711.8 बिलियन
कुल वृद्धि$334.5 बिलियन$265.6 बिलियन
प्रतिशत वृद्धि299%59.5%
औसत वार्षिक वृद्धि$33.45 बिलियन$26.56 बिलियन
कर्ज-से-जीडीपी अनुपात17.1% से 23.9%23.9% से 19.4%

निष्कर्ष:

  1. वृद्धि की गति: 2004-2014 में कर्ज की वृद्धि दर (299%) 2014-2024 (59.5%) की तुलना में बहुत अधिक थी। यह पिछले दशक में तेज आर्थिक विस्तार और बाद में कर्ज प्रबंधन पर ध्यान देने का परिणाम है।
  2. प्रबंधनीयता: 2014-2024 में कर्ज-से-जीडीपी अनुपात कम हुआ, जो दर्शाता है कि कर्ज की वृद्धि अर्थव्यवस्था की वृद्धि के साथ संतुलित रही। विदेशी मुद्रा भंडार का 96% कवरेज भी इसे टिकाऊ बनाता है।
  3. उद्देश्य: पहले दशक में कर्ज का उपयोग मुख्य रूप से आर्थिक आधार बनाने में हुआ, जबकि बाद के दशक में इसे विशिष्ट परियोजनाओं और संकट प्रबंधन (कोविड-19) में केंद्रित किया गया।

कुल मिलाकर, 2014-2024 में भारत ने कर्ज को अधिक नियंत्रित और रणनीतिक तरीके से उपयोग किया, जबकि 2004-2014 में यह तेजी से बढ़ा लेकिन आर्थिक विकास के लिए आवश्यक था।

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