
महाराष्ट्र में अफसरशाही और राजनीति का नंगा नाच भारत देख रहा है
क्या आपको दीपेश सावंत याद है। सुशांत सिंह राजपूत के घर काम करने वाले इस नौकर का नाम न्यूज़ चैनलों पर खूब चला था और ये सुशांत की संदिग्ध हत्या के मुख्य संदिग्धों में से एक था। इस दीपेश सावंत ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो पर आरोप लगाया है कि उसे अवैध हिरासत में रखा गया था।
अक्टूबर में दीपेश ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर ये आरोप लगाया और इसके एवज में दस लाख रुपये का हर्जाना भी माँगा है। सोचिये देश की प्रमुख जाँच एजेंसी की मुंबई में क्या गत बना दी गई है। सोमवार को एनसीबी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष स्पष्ट किया कि दीपेश की हिरासत गैरकानूनी नहीं थी।
उसे एक उचित प्रक्रिया के बाद ही हिरासत में लिया गया था। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मुंबई में छह माह से सुशांत केस पर कार्यरत है लेकिन ऐसा लगता नहीं कि वे किसी परिणाम के नज़दीक भी पहुँच सके हैं। एजेंसी ने मुंबई में अनगिनत छापेमारी की है लेकिन अब तक ड्रग्स का बड़ा जखीरा वे न पकड़ सके और न ही मास्टरमाइंड की ओर जाँच की सुई घुमा सकी है।
जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया, वे भी कुछ दिनों में ज़मानत लेकर बाहर आ गए। ऐसे ड्रग पैडलर्स की लंबी फेरहिस्त है, जिनको जेल में ले जाने के बाद भी एजेंसी उनसे ये न उगलवा सकी कि मुंबई में ड्रग्स की सप्लाई को आश्रय कौन दे रहा है। ध्यान रहे एनसीबी को पांच महीने का समय मिला था, जो कम नहीं होता। भारती सिंह और हर्ष की गिरफ्तारी 86 ग्राम गांजे के आधार पर कर ली गई।
कोई नौसिखिया भी बता सकता था कि इस आधार पर एजेंसी भारती और हर्ष को चौदह दिन की जेल में नहीं भेज पाएगी। दोनों को कोर्ट में आसानी से ज़मानत मिल गई क्योंकि गिरफ्तारी से पूर्व एजेंसी ने पर्याप्त होमवर्क ही नहीं किया था। इतने फ़िल्मी सितारों से पूछताछ हो चुकी लेकिन हासिल अब तक शून्य ही रहा है।
और अब मुंबई एनसीबी के जोनल चीफ समीर वानखेड़े और उनकी टीम पर प्राणघातक हमला किया गया। क्या ऐसा नहीं लगता कि मुंबई में कार्यरत सीबीआई और एनसीबी की दशा मेमनों जैसी हो गई है। हालात इतने बदतर है कि गोरेगांव के छुटभैये ड्रग पैडलर ने एनसीबी चीफ पर हमला करने का दुःसाहस कर डाला। अतीत में जाइये और इस केस को देखिये।
मनोरंजन उद्योग से संबंधित होने के कारण केंद्रीय एजेंसियों से हद से ज़्यादा मुलायम रवैया अपनाया। एनसीबी की कसरत में कहीं सख्ती देखने को ही नहीं मिली। परिणाम ये रहा कि न सीबीआई के हाथ कुछ लगा और न एनसीबी कुछ हासिल कर सकी। क्या ये आश्चर्य नहीं है कि देश की सबसे बड़ी केंद्रीय एजेंसी का मुखिया इस बहुत बड़े हाई प्रोफाइल केस पर कोई बयान नहीं देता।
सुशांत केस में देश को एकबारगी नहीं लगा कि देश में कोई सीबीआई चीफ जैसा पद भी है। राज्य और केंद्र की इस लड़ाई में यदि कुछ खो रही है तो वह न्याय में आस्था है। महाराष्ट्र के घटनाक्रम को देखकर सहज ही अनुभव हो रहा है कि अफसरशाही और राजनीतिक गठजोड़ कैसा नंगा नाच कर रहे हैं।
चौराहों पर जब भी इस केस की चर्चा होती है तो ये जुमला बार-बार सुनने में आता है ‘सीबीआई कुछ नहीं करने वाली, सीबीआई ने आज तक कुछ नहीं किया है।’ भारत में मान्यताएं ऐसे ही गढ़ी जाती है। सीबीआई के बारे में आमजन की सोच कुछ गलत तो नहीं है। सुशांत केस बंद होने के बाद सबसे बड़ा आघात युवा वर्ग पर होगा, जो सिस्टम की कालिख से उम्मीद लगाए बैठा है। ऐसे ही आघात तो एक भारतीय को ‘सब कुछ सहने वाला भारतीय’ बना देते हैं।
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