विपुल रेगे। हॉलीवुड अभिनेता जॉनी डेप अपने समुद्री लुटेरे के अवतार के लिए विश्वप्रसिद्ध हैं। हाल ही में जॉनी की ख्याति में और वृद्धि हुई। जॉनी का अपनी पत्नी एम्बर हर्ड पर किया मानहानि का प्रकरण बड़ा चर्चित रहा। पत्नी द्वारा घरेलु हिंसा का केस दर्ज कराने के बाद जॉनी ने भी पत्नी के विरुद्ध मानहानि का दावा किया और जीत हासिल की। ऐसे प्रकरणों में अधिकांश पत्नियां ही विजयी होती है लेकिन न्यायालय ने जॉनी के पक्ष में निर्णय दिया। इसके बाद सारी दुनिया जॉनी और एम्बर के बीच बंट गई। कथित नारीवादियों के लिए न्यायालय का निर्णय एक झटके के समान रहा है।
वर्जीनिया के न्यायालय में पत्नी के विरुद्ध मानहानि का प्रकरण में विजयी होने के बाद पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन स्टार बर्किंघम के एक भारतीय रेस्टोरेंट में गए। इंग्लैंड के बर्किंघम के भारतीय रेस्टोरेंट ‘वाराणसी’ में भारतीय भोजन का स्वाद लेने के लिए भारतीयों से अधिक गोरे आते हैं। यहाँ जॉनी डेप ने टिक्का मसाला, समोसे और इडली का आनंद लिया। जॉनी ने जीत की ख़ुशी में 46 लाख रुपये सिर्फ खाने पर ही खर्च दिए।
जॉनी की पूर्व पत्नी एम्बर को न्यायालय ने हर्जाने के तौर पर 116 करोड़ देने का आदेश दिया था। हालांकि सहृदय जॉनी ने वह पैसा लेने से इंकार कर दिया है। कहा नहीं जा सकता कि यदि एम्बर ये मुकदमा जीत जाती तो हर्जाने की रकम इस उदारता के साथ छोड़ देती। भारत का नारीवादी आंदोलन इस प्रकरण में विभक्त होता दिखाई दिया। नारी आंदोलन की झंडाबरदार अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने एम्बर हर्ड का समर्थन किया। जबकि दिशा पटानी और सोफी चौधरी मन से जॉनी डेप का समर्थन किया।
सोफी ने अपने इंस्टाग्राम खाते पर लिखा ‘दुनिया को बताओ, मैं जॉनी डेप, एक आदमी, घरेलू हिंसा का भी शिकार हूं। देखें कि कितने लोग आप पर विश्वास करते हैं या आपका साथ देते हैं।’ 6 साल बाद उन्होंने अपना सच कहा और उन्होंने कोर्ट के अंदर और बाहर दोनों में जीत हासिल की। भारत जैसे देश में नारीवादी आंदोलन ने वैचारिकी को इस स्तर तक पहुंचा दिया है कि यहाँ मुश्किल से भरोसा होता है कि एक पति पत्नी द्वारा प्रताड़ित किया जा सकता है।
वर्जीनिया के न्यायालय का ये निर्णय नज़ीर बनना चाहिए। भारत में हज़ारों पुरुषों का जीवन ऐसे फर्जी प्रकरणों से बर्बाद हो गया। कितनों ने आत्महत्या कर ली और कितने ही अपने अपमान से कभी उबर न सके। 150 मिलियन डॉलर की अथाह संपत्ति के मालिक जॉनी चाहते तो पत्नी से हर्जाना वसूल कर सकते थे। 116 करोड़ की राशि कम नहीं होती। जब जॉनी पर घरेलू हिंसा के आरोप लगाए गए, तो वे भीतर से टूट गए।
उन्होंने भरी अदालत में सबके सामने जज से कहा कि उन्हें ये क़ानूनी कार्रवाई करने की आवश्यकता थी। जॉनी दुनिया को बताना चाहते थे कि वे पिछले छह वर्ष से अपनी पीठ पर क्या हादसे ढो रहे थे। निश्चित ही जॉनी द्वारा कानून की शरण में जाने का उद्देश्य पत्नी से मुआवजा पाना नहीं था। वे स्वयं को उस घिनौने आरोप से मुक्त करना चाहते थे। कम से कम जॉनी ये बताने में सफल रहे कि हर बार पुरुष अत्याचारी नहीं हो सकता।
भारतीय नारीवादी आंदोलन सहज विश्वास ही नहीं कर सकता कि एक पुरुष भी प्रताड़ित हो सकता है। हम अपने यहाँ के प्रकरणों को देखे तो बड़ी ही अन्यायपूर्ण स्थिति बनी हुई है। जिन प्रकरणों में सिद्ध हुआ कि पत्नी या प्रेमिका ने झूठा आरोप लगाया था और इस कारण अमुक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है, वहां भी न्यायालयों ने कोई संज्ञान नहीं लिया। बाद में दोषी पत्नी या प्रेमिका को लेकर कोई सुनवाई नहीं की जाती।
जॉनी डेप के पास अथाह धन था, जिसके सहारे उन्होंने न्यायालय की लड़ाई लड़ ली लेकिन ऐसा हर पुरुष के साथ नहीं होता। पिछले साल दिल्ली के पास बसे एक गांव में 41 वर्ष के पुरुष ने स्वयं को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। उसने सुसाइड नोट में लिखा कि उस पर एक महिला ने रेप का झूठा आरोप लगाकर केस में फंसा दिया था। इसी वर्ष फरवरी में ग्वालियर के एक युवक ने फांसी लगाकर अपना जीवन समाप्त कर लिया।
उसने लिखा कि पत्नी के किसी और से अवैध संबंध थे। जब उसने प्रतिकार किया तो पत्नी ने अपने घरवालों के साथ मिलकर दहेज़ प्रताड़ना का आरोप लगा दिया। प्रमोद परिहार नामक इस युवक के पास फिर जान देने के अलावा कोई राह नहीं बची थी। नारी आंदोलन कुछ सच्ची समस्याओं के निवारण के लिए शुरु किया गया था लेकिन बाद के वर्षों में ये एक हथियार बन गया। भारत में इस हथियार की सहायता से सैकड़ों पुरुषों का जीवन समाप्त कर दिया गया है। भारत को ऐसे बहुत से जॉनी डेप प्रकरणों की आवश्यकता है।