नेपाल ने अब भारतीय न्यूज़ चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया है. यानि नेपाल में अब भारतीय न्यूज़ चैनलों का प्रसारण बंद हो जायेगा. दूरदर्शन के अलावा सभी भारतीय न्यूज़ चैनलों पर नेपाल की सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिये गये हैं और इसके पीछे वजह यह बताई गई है क ये भारतीय चैनल नेपाल को और वहां के प्रधानमंत्री को लेकर झूठा प्रोपोगंडा फला रहे हैं.
इस सब के पीछे एक नाम है जो बार बार उभर कर सामने आता है. और वह है नेपाल की चीनी राजदूत होऊ यंकी का नाम. होऊ यंकी इस वक्त सुर्खियों में है. और इसके पीछे की वजह यह है कि पिछले कुछ समय में नेपाल की राजनीति में, उसके शासन में, यहां तक की उसकी विदेश नीति निर्धारित करने में भी उनकी दखलअंदाज़ी बहुत अधिक बढ गयी है. बल्कि कई मीडिया रिपोर्ट्स में तो यहां तक कहा गया है कि के पी ओली तो सिर्फ नाम के प्रधानमंत्री रह गये हैं. नेपाल की असली शासनकर्ता तो चीनी राजदूत होऊ यंकी हैं.
भारतीय न्यूज़ चैनल भी पिछले कुछ समय से नेपाल की सरकार में होऊ यंकी की बढ्ती दखलअंदाज़ी को लेकर खबरें प्रसारित कर रहे हैं. इसका सबसे महत्व्पूर्ण पहलू है नेपाल की चीनी राजदूत का प्रधानमंत्री के पी ओली से सानिध्य और ओली का उन पर अंधविश्वास. बस इसी बात को लेकर भारतीय मीडिया ने कुछ सवाल उठा दिये. भारतीय न्यूज़ चैनलों के प्रसारण को एकाएक रोकने के पीछे मुख्य वजह भी यही है, ऐसा माना जा रहा है.
भारत और नेपाल के बीच में विवाद की स्थिति तब उत्पन्न हुई जब नेपाल ने अपनी संसद में एक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया जिसका उदेश्य भारत के तीन क्षेत्रों को नेपाल के मानचित्र में मिलाना था. और जून में इस विधेयक को नेपाल के संसद ने पारित भी कर दिया और इस पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग गयी. भारत ने इस बात पर आपत्ति जताई कि इस प्रकार बिना किसी बातचीत के भारत के क्षेत्रों को अपने मानचित्र का हिस्सा बनाना उचित नही है और दोनों देशों के बीच लंबे समय से बनी हुई कूटनीतिक सांझेदारी का उल्लंघन है. बस तभी से भारत और नेपाल के बीच तनातनी बढी हुई है.
नेपाल की चीन के साथ बढ्ती नज़दीकियां और भारत के साथ बढ्ता तनाव किसी से छिपा नहीं है. और इन बदलते समीकरणों के पीछे नेपाल की चीनी राजदूत होऊ यंकी का हाथ माना जा रहा है. बल्कि भारत और नेपाल के बीच आजकल जो बार्डर विवाद चल रहा है, उसका चीफ आर्क्टेक्ट यानि प्रमुख निर्माता होऊ यंकी को ही माना जाता है.
नेपाल में हिंदी भाषा पर भी प्रतिबंध लगाने की बात चल रही है. वहां के विद्यालयों में हिंदी भाषा ज्ञान पर कुछ खास ध्यान नही दिया जा रहा. इसके विपरीत मैंडरीन भाषा नेपाल के स्कूलों में ज़ोर शोर से सिखाई जा रही है. बल्कि मैंडरीन भाषा की पढाई बहुत से नेपाली स्कूलों में अनिवार्य कर दी गयी है. हालांकि हिंदी को प्रतिबंधित करने की बात एक प्रकार का मज़ाक ही लगती है क्योकि हिंदी भाषा नेपाल की संस्कृति में रची बसी हुई है. यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिंदी बोलता हैं. इसीलिये यदि कोई औपचारिक प्रतिबंध लग भी गया तो इससे कुछ हासिल नही होगा.
लेकिन इसके पीछे महत्व्पूर्ण बात यह है कि इस भारत विरोधी रवैये के पीछे नेपाल की चीनी राजदूत होऊ यंकी यानि परोक्ष रूप से चीन का हाथ माना जा रहा है. नेपाल के बढ्ते चीनीकरण को लेकर, या फिर इस बात को लेकर कि किस प्रकार से नेपाल धीरे धीरे चीन की एक कांलोनी यानि उसके अधीन रहने वाली एक इकाई बनता जा रहा है, नेपाल के भीतर से ही विरोध के स्वर फूट रहे हैं. हिंदी भाषा को प्रतिबंधित करने की बात को लेकर नेपाल की एक सासद ने ही पूछ डाला कि क्या इसके लिये चीन से निर्देश आये हैं?
नेपाल में इन सभी भारत विरोधी निर्णयों और प्रस्तावों के सीधे तार वहां के प्रधानमंत्री के पी ओली से जुडते हैं और इसी कारणवश वहां की चीनी राजदूत होउ यंकी से जुड्ते हैं जो कि न ही सिर्फ ओली के बहुत निकट मानी जाती हैं, बल्कि खुल्लम्म्खुला वहां की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी के नेताओं से मिलकर उनके साथ राजनीतिक सलाह मशवरा भी करती हैं.
अभी हाल ही में होऊ यंकी कम्यूनिस्ट पार्टी के बहुत से नेताओं से मिलीं. इसके पीछे का कारण प्रधानमंत्री ओली को लेकर पार्टी में बढ्ते मतभेद माना जा रहा है. तो होऊ यंकी ओली की सहायता करने के लिये और उनकी प्रधानमंत्री की कुर्सी सुरक्षित रखने के लिये कम्यूनिस्ट पार्टी के सभी नेताओं से मिलकर उन्हे प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं. और इस बात को लेकर नेपाल में भी जमकर विरोध हुआ. नेपाली लोगों ने नेपाल के चीनी दूतावास के सामने इस बत को लेकर धरना प्रदर्शन किया कि आखिरकार एक चीनी राजदूत नेपाल के आंतरिक मामलों में भला इतनी दखलअंदाज़ी क्यों कर रही है?
होऊ यंकी इससे पहले पाकिस्तान में भी चीनी राजदूत रह चुकी हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह उर्दू भी बोल लेती हैं. इन्हे नेपाली संस्कृति की भी अच्छी खासी समझ है. अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नेपाल की यह चीनी राजदूत नेपाली स्त्रियों के साथ वहां की पारंपरिक वेशभूषा में मंच पर थिरकती भी नज़र आयी हैं.
इन सभी तथ्यों से एक बात जो पता चलती है, वह यह कि होऊ यंकी की शख्सीयत बहुत ही प्रभावशाली हैं. और ये जहां भी रहती हैं, वहां की संस्कृति में वे रच बस गई हैं, ऐसा दिखाने का हुनर उन्हे बखूबी आता है. इसका दूसरा पहलू यह भी है की एक महिला राजदूत जो कि स्वयं को देश की संस्कृति आदि से जुड़ा दिखाती है, उसकी इमेज फिर एक सौहार्द्पूर्ण व्यक्तित्व की बन जाती है. और उसकी इसी इमेज के कारण उस पर कोई सरकारी जासूस होने का शक नही करता. उसे अपनी इस छवि के चलते हर जगह पहुंच भी मिल जाती है और वह बिना किसी व्यवधान के अपने काम को अंजाम दे पाती है. लेकिन अब यह स्ट्रैटिजी भी तो शाश्वत काल के लिये नही चलती न! नेपाल की चीनी राजदूत होऊ यंकी के साथ भी अब कुछ ऐसा ही हो रहा है. अब उनकी असलियत पूरे विश्व के सामने धीरे धीरे कर आने लगी है.