
प्रधानमंत्री मोदी का रूस की मदद के बहाने चीन को रोकने की कूटनीति और उसका प्रभाव!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाल ही में पूरे हुए रूस के दौरे में वहां के सुदूर पूर्व इलाकों के विकास के लिये 1 बिलियन डालर की आर्थिक सहायता प्रदान करने की घोषणा की. यह घोषणा कई द्र्ष्टिकोणों से बहुत मह्त्व्पूर्ण है. इसका सैद्धानतिक तौर पर भी बहुत महत्त्व है क्योंकि एक विकासशील देश एक विकसित राष्ट्र को आर्थिक सहायता प्रदान करे, ऐसा बिरले ही देखने को मिलता है. इसका सबसे बड़ा महत्व यह है कि इसके ज़रिये रूस के सुदुर पूर्व इलाकों में बढ़ रहे चीनी हस्तक्षेप पर भी नियंत्रण लगने की उम्मीद है.
भारत-जापान की चीन को रोकने की कोशिश
रूस का सुदूर पूर्व क्षेत्र भूराजनैतिक दृष्टिकोण से एक बहुत ही अहम क्षेत्र है. इसकी चीन, मंगोलिया, उत्तरी कोरिया और जापान, सभी के साथ साझा सीमाये हैं. यह इलाका तेल, लकड़ी, सोना, हीरा, आदि खनिज पद्दार्थों में बहुत समृद्ध है. इस क्षेत्र में निवेश के ज़रिये बढ़्ते चीनी हस्तक्षेप को जापान और भारत दोनों ने ही रोकने की कोशिश की है.
रूस के राष्ट्र्पति व्लादिमिर पुतिन ने खुद जापान और भारत को इस क्षेत्र में निवेश कर इसके विकास में योगदान देने के लिये कहा है. इसके पीछे वजह यह भी है कि रूस भी इस क्षेत्र में चीन के बढ़्ते हस्तक्षेप से खासा परेशान है और वह सोचता है कि यदि भारत और जापान सरीखे देश यहां निवेश करें तो इस क्षेत्र में चीन के बढ़्ते वर्चस्व को चुनौती दी जा सकती है.
चीन की जनसंख्या बदलाव की कोशिश
इन सुदूर पूर्व इलाकों में चीनी निवेश के चलते यहां रहने वाले चीनी लोगों की तादाद भी खासा बढ़ी है. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यहां करीब तीन लाख से लेकर पांच लाख तक की संख्या में चीनी लोग रहते हैं. इस के चलते रूस को यह डर है कि कहीं चीन धीरे धीरे इस पूरे इलाके को अपने कब्ज़े में लेने की कोशिश न करे.
गौरतलब है कि यह क्षेत्र बहुत समय पहले चीन की कुइंग डायनस्टी का हिस्सा हुआ करता था जिसे रूसी ज़ार यानि राजा ने विजय में प्राप्त कर लिया था. इन सभी समीकरणों के चलते प्रधानमंत्री मोदी की रूस के इस क्षेत्र को 1 बिलियन डालर आर्थिक सहायता प्रधान करने की घोषणा न सिर्फ भारत और रूस के संबंधों को और अधिक मज़बूत करती है बल्कि चीन को लेकर रूस की चिंता को कुछ कम भी करती है.
भारत और रूस के बीच पहली बार एक समझौता
एक अहम बात यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘ईस्टर्न एकांनमिक फोरम’ में सम्मिलित होने के चलते भारत और रूस के रिश्ते रक्षा और परमाणु विकास के पारंपरिक क्षेत्रों से निकल ऊर्जा विकास, कृषि संसाधन , पर्यटन आदि क्षेत्रों में भे विकसित हो रहे हैं. अपने कूटनीतिक संबंधों के इतिहास में पहली बार भारत और रूस ने रूस में, खासकर कि वहां के सुदूर पूर्व क्षेत्रों में भारतीय श्रमिकों के काम करने के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं. इसके अलावा भारत देश की पानी की समस्या हल करने के लिये भी वहां के सुदूर पूर्वी क्षेत्रों से ताज़ा पानी आयात करने की संभावना पर विचार कर रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी की पैनी नजर
एक ऐसे समय में जब विशव की अर्थव्यवस्था में चीन और अमरीका के बीच छिड़े व्यापार युद्ध की वजह से कुछ मंदी चल रही है और बहुत से अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे कि विश्व व्यापार संगठन(WTO) का अस्तित्व खतरे में है, ऐसे में भारत न सिर्फ देश के विकास के लिये अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये बाकी देशों के साथ नवीनतम क्षेत्रों में सहयोग कर रहा है, बल्कि इस प्रक्रिया में अपनी कूटनीतिक रणनीति को पूरी तरह आगे बढाते हुए ऐसे देशों पर नज़र रख रहा है जो कि भारत और पूरे विश्व की सुख समृद्धि के लिये खतरा साबित हो सकते हैं.
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Very good written and explained clearly