दिल्ली जैसे महानगरों में इस तरह के दृश्य आपको कहीं न मिल जायेंगे, फुटपाथ, पार्क आदि! लेकिन दिल्ली की लाइफ लाइन बन चुकी मेट्रो की सीढ़ियों में इस बालक को देखा तो मन के उदगारों ने शब्दों का रूप ले लिया! यों तो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल आये थे गरीबों के मसीहा बन कर लेकिन यह तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है! केजरीवाल और उनके विधायकों की तेरह हजार रूपये की एक थाली का कुछ अंश भी ऐसे बच्चों के लिए उपयोग में लाया जाता तो शायद न यह तस्वीर होती और न यह कविता…
विकास के पथ पर हूँ,
कैसे कह दूँ ?
वो फुटपाथ पर
गहन निंद्रा ले,
सियासत को
मुंह चिढ़ा रहा!
भूखा पेट,
सिरहाना सीढ़ी का,
उपहास लोकतंत्र का,
उड़ा रहा!
विकास के पथ पर हूँ,
कैसे कह दूँ?
कब तक,
भविष्य भारत का
यों,
भूखा ही सो जायेगा,
नव-भारत का
दमकता सूरज
कब क्षितिज
पर छायेगा?
विकास के पथ पर हूँ,
कैसे कह दूँ?
हिंदी कविताओं के लिए नीचे पढें:
1- हिंदी कविता ‘जीवन मरण के मध्य’!
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