
भारत ने विश्व गुरु बनने की ओर पहला शक्तिशाली कदम उठा लिया
कोरोना वायरस को लेकर एंथोनी फौसी ने शुरू से ही डोनाल्ड ट्रम्प का सहयोग नहीं किया है। अमेरिकी पत्रिका साइंस को दिए गए एक इंटरव्यू में फौसी ने ये बयान देकर चौंका दिया कि वे ट्रम्प के उस वक्तव्य से सहमत नहीं है, जिसमे उन्होंने कहा था कि कोरोना एक चीनी वायरस है। ट्रम्प ने कहा था कि ‘चीन को अमेरिका को नोवेल कोरोना वायरस की स्थिति के बारे में 3-4 महीने पहले बता देना चाहिए था। विगत 21 मार्च को एक प्रेस ब्रीफिंग में ट्रम्प ने पत्रकारों से मुखातिब होते हुए कहा था कि कोरोना वायरस का निदान जब तक नहीं मिल जाता, मलेरिया में प्रयोग होने वाली हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है। पत्रकार वार्ता में ही एंथोनी फौसी ने ट्रम्प की बात को ठुकराते हुए कह दिया कि ऐसा संभव नहीं है। फौसी के अनुसार ये सुझाव वैज्ञानिक नहीं था।
इसके बाद हम देखते हैं कि लॉकडाउन का सही पालन न करने और इस दवा का सुझाव ठुकराने के बाद अमेरिका में स्थितियां कितनी विकट हो गई। अब तक वहां 8000 लोग मारे जा चुके हैं और तीन लाख से अधिक संक्रमित हैं। ट्रम्प के अनुसार देश में लगभग दो लाख लोगों की मौत होने की आशंकाएं बलवती हो गई है। ऐसे कठिन समय में ट्रम्प ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टैबलेट की मांग की है। सर्वविदित है कि भारत इस दवा का भारी मात्रा में उत्पादन करता है। हालांकि कोरोना संकट के बाद भारत ने इस दवा के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। वैसे संभव है कि उदारमना मोदी अमेरिका को इस दवा की पहली खेप भेज देंगे।
एंथोनी फौसी इससे पहले छह अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। ट्रम्प और उनके बीच मतभेद अभी से नहीं है बल्कि ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही शुरू हो गए थे। संक्रामक रोग संस्थान के निदेशक होने के नाते वे कोरोना संकट का कोई तात्कालिक हल निकालने में असफल रहे और उन्होंने तो मलेरिया की दवा का आयडिया भी उसी समय ठुकरा दिया था। यदि वे ट्रम्प की बात पर ध्यान देते तो आज अमेरिका में सम्भवतः उतनी मौतें न हुई होती। फौसी का असहयोग इस कदर रहा कि 21 मार्च की प्रेस वार्ता के बाद वे गायब हो गए और अमेरिकी प्रशासन उन्हें खोजता रहा। ईश्वर का आशीर्वाद है कि भारत में सरकार के अंदर ऐसी असहमतियां नहीं बनी और हम अब भी कोरोना से लड़ाई में विश्व में अग्रणी बने हुए हैं। कोरोना संकट में ट्रम्प को अपने देश के मीडिया का भी साथ नहीं मिला। मलेरिया की दवा वाले बयान पर उनकी बहुत आलोचना की गई।
कल्पना कीजिये कि ऐसी स्थितियां हमारे देश में बन जाती तो क्या होता। देशवासियों का सौभाग्य है कि नरेंद्र मोदी हमारे प्रधानमंत्री हैं। वे इस संकट से लड़ने में वैश्विक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावी सिद्ध हुए हैं। भारत को छोड़ सम्पूर्ण विश्व कोरोना के आगे घुटने टेक चुका है और भारत की ओर आशा से देख रहा है। भारत ने विश्व गुरु बनने की ओर पहला शक्तिशाली कदम उठा लिया है।
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विपुल जी आप और संदीप जी विशिष्ट अनुसंधान कर समाचार लिखते हैं ?
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