क्वाड ग्रुपिंग पिछले कुछ समय से काफी चर्चा में है. क्वाड 4 देशों की एक अनौपचारिक ग्रुपिंग है. ये चार देश हैं भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान. और इस ग्रुपिंग का उद्देश्य है इंडो पैसिफिक क्षेत्र की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना. अगर दूसरे शब्दों मे कहें तो क्वाड का उद्देश्य है इंडो पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ्ते वर्चस्व पर अंकुश लगाना.
तो इस गुरुवार क्वाड ग्रुपिंग के देशों की एक वर्चुयल मीटिंग संपन्न हुयी. और क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की यह एक वर्चुयल बैठक थी. यानि आस्ट्रेलिया, जापान और भारत के विदेश मंत्री इस वर्चुयल बैठक मे सम्मिलित हुये और अमेरिका के सेक्रेटरी आफ स्टेट ऐंटनी ब्लिंकिन ने इस बैठक मे भाग लिया.
तो इस बैठक मे नया क्या हुआ? चर्चा तो उन्ही सब मुद्दों को लेकर होती है कि किस प्रकार से एक ऐसे इंडो पैसिफिक क्षेत्र का विकास किया जाये जो कि स्वतंत्र हो, खुला हो और सबको साथ लेकर चलने वाला हो. यानि किसी एक का अत्यधिक वर्चस्व न हो इंडो पैसिफिक क्षेत्र में. लेकिन वार्ता के बात जो मीडिया मे स्टेटमेंट्स दिये जाते हैं, उनमे कुछ महत्व्पूर्ण , नई बातें देखने को मिलती हैं कि क्वाड को लेकर उसके सदस्य देश किस प्रकार का मेसेज भेज रहे हैं अंतराष्ट्रीय समुदाय को, जिसमे चीन भी शामिल है.
तो सबसे पहली बात तो यह है इस मीटिंग के बाद भारत ने पहली बार इस ग्रुपिंग के बारे मे बात करते हुये औपचारिक तौर पर ‘क्वाड’ शब्द का प्रयोग किया. जी हां, इस ग्रुपिंग का नाम क्वाड ज़रूर है लेकिन यह एक अनौपचारिक ग्रुपिंग है और इसीलिये शायद भारत अभी तक क्वाड शब्द का प्रयोग करने से झिझकता था. जब भी इस ग्रुप की कोई मीटिंग होती थी या इस ग्रुपिंग के बारे मे उसे कुछ बोलना होता था, तो भारत इसके लिये’ चार देशो की मीटिंग ‘, इस संबोधन का प्रयोग करता था. लेकिन औपचारिक तौर पर इसे क्वाड नही कहता था.
लेकिन अबकी बार की मीटिंग के बाद पहली बार भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने औपचारिक स्टेट्मेंट मे इस ग्रुपिंग को क्वाड कहकर संबोधित किया है. अमेरिका और आस्ट्रेलिया औपचारिक तौर पर इसे क्वाड ही बोलते थे लेकिन भारत नही बोलता था. तो ये बेहद महत्व्पूर्ण बात है कि भारत ने भी अब इसका नाम औपचारिक तौर पर लेना शुरू कर दिया है. ये इस बात का द्योतक है कि भारत न सिर्फ अब इस ग्रुपिंग और और भी ज़्यादा गम्भीरता से लेगा बल्कि इस अनौपचारिक ग्रुपिंग को एक औपचारिक जामा पहनाने की दिशा मे भी शायद कुछ सार्थक पहल करे.
यूं तो क्वाड कोई बहुत नई ग्रुपिंग नहीं है लेकिन इसका महत्व पिछले कुछ वर्षों मे ही बढा है. क्वाड की स्थापना 2007 मे हुयी थी जब जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो ऐबे ने इस ग्रुपिंग की स्थापना करने की पहल की थी. हालांकि इससे पहले ही 2006 मे जापान के विदेश मंत्री इस ग्रुपिंग का विचार सबके सामने रख चुके थे लेकिन इसकी स्थापना को लेकर बहुमत 2007 मे ही बन पाया.
तो 2007 मे क्वाड ग्रुप की पहली मीटिंग संपन्न हुयी. और हालांकि इसका उद्देश्य शुरू से ही इंडो पैसिफिक मे चीन के बढ्ते वर्चस्व पर अंकुश लगाना था, लेकिन तब इस ग्रुप को कोई ठीक प्रकार का दिशा निर्देश नही मिल पाया. शुरू तो यह किसी प्रकार से हो गया लेकिन फिर अगले कुछ वर्षों मे इसकी कुछ ज़्यादा प्रासंगिकता नही रही.
लेकीन जब इंडो पैसिफिक क्षेत्र मे चीन के बढ्ते खतरे को यहे सभी देश जानने समझने लगे, जब इन सभी देशों मे चीन किसी न किसी प्रकार से अपना एजेंडा चलाने लागा, कही वह चुनावों और राजनीति को इंफ्लुएंस करने की कोशिश करने लगा, तो कहीं बार्डर पर घुसपैठ करने लगा. तो इस प्रकार से जब क्वैड के सदस्य देशों को चीन का खतरा स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा तो फिर क्वैड ग्रुप को गम्भीरता से लिया जाने लगा.
लेकिन इस ग्रुपिंग का असली सशक्तीकरण हुया डानल्ड ट्र्म्प के कार्यकाल मे , डानल्ड ट्र्म्प जिन्होने इंडो पैसिफिक नीति को न ही सिर्फ अमेरिका की विदेश नीति का एक महत्व्पूर्ण हिस्सा बनाया, बल्कि जिनकी सरकार ने क्वाड की मीटींग्ज़ के बाद सार्वजनिक तौर पर चीन जो कुछ भी इंडो पैसिफिक क्षेत्र मे कर रहा है, बाकायदा चीन का नाम लेकर उस सब की आलोचना करने से परहेज नही किया.
तो अगर उस लिहाज़ से देखें और उस समय से तुलना करे, तो इस वर्ष की मीटिंग जो कि अमेरिका मे जो बाइडन के कार्यकाल मे संपन्न हुयी, और वर्चुयल तौर पर संपन्न हुई, थोड़ा निराश भी करती है.
पिछली बार डानल्ड ट्र्म्प के कार्यकाल मे जो क्वैड के विदेश मंत्रियों की वार्ता जापान मे संपन्न हुयी थी, उसके उलट अबकी बार अमेरिका ने अपने आफिशियल स्टेटमेंट मे चीन शब्द का प्रयोग ही नही किया, आलोचना तो दूर की बात.
अमेरिका ने मीटिंग के बाद औपचारिक तौर पर यह कहा कि चारों मंत्रियों ने इस बात पर विचार विमर्श किया कि इंन्डो पैसिफिक क्षेत्र मे झूठे समाचार काउंटर करने के लिये, समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये, वैश्विक शांति बनाये रखने के लिये, म्यांमार की प्रजातांत्रिक सरकार की वापसी सुनिश्चित करने के लिये और पूरे क्षेत्र मे प्रजातंत्र के मूल्यों को सशक्त करने के लिये किस प्रकार से सांझेदारी होनी चाहिये.
भारत ने भी पहली बार क्वैड का नाम तो ज़रूर लिया लेकिन उसने भी अपने औपचारीक स्टेट्मेंट मे सीधे तौर पर चीन का नाम नही लिया. जापान ने चीन का नाम ज़रूर लिया.
तो इससे पहले भी क्वैड मीटिंग्स मे भारत सीधे तौर पर चीन का नाम लेने से हिचकता रहा है. और ये हिचकिचाहट समझ से परे है. क्योंकि अगर भारत ने इतनी हिम्मत दिखाई है कि क्वैड फ्रेमवर्क के अंतर्गत इंडो पैसिफिक क्षेत्र मे चीन की विस्तारवादी नीति के विरुद्ध मोर्चा खड़ा करे, तो उसमे इतनी हिम्मत भी ज़रूर होनी चाहिये कि स्पष्ट रूप से नाम लेकर जिन मुद्दो पर उसकी आलोचना करनी है, खुलकर करे.
क्वैड के सदस्य देश जिस देश की विस्तारवादी नीतियों के विरुद्ध तथाकथित रूप से खड़े हुये हैं, अगर अपने स्टेट्मेंट्स मे उसका नाम लेने से भी हिचकेंगे तो भला उसकी विस्तारवादी नीतियों को चुनौती कैसे देंगे, उन्हे भला काउंटर कैसे करेंगे ?
क्वाड ग्रुपिंग के देशों के विदेश मंत्रियों के बीच यह तीसरी बैठक थी. इस प्रकार की पहली बैठक सितम्बर 2019 मे थी और दूसरी बैठक अक्टूबर 2020 मे थी.
इस बैठक मे इस बात को लेकर भी सहमति बनी कि मिनिस्टीरियल लेवेल डायलाग के स्तर पर कमसकम साल मे एक बार इस प्रकार के बैठक ज़रूर होनी चाहिये. और विभिन्न वर्किंग ग्रुप्स के लेवेल पर साल भर बातचीत और बैठकें चलती रहनी चाहियें जिससे एक मुक्त और स्वतंत्र इंडो पैसिफिक का विज़न कार्यांवित हो पाये.
तो ये एक सकारात्मक संकेत है कि भले ही चीन का नाम नही लिया जा रहा है लेकिन इस ग्रुपिंग के सशक्तीकरण की ओर चारों देश कदम ज़रूर बढा रहे हैं. और इससे, जैसा कि मैंने शुरुआत मे भी कहा था, क्वैड के औपचारिक संगठन बनने के भी रास्ते खुलते है.
क्योंकि अभी यह इन चार देशों की एक अनौपचारिक ग्रुपिंग है और जब तक यह संगठन एक औपचारिक रूप नही धारण कर लेता, तब तक यह चीन की विस्तारवादी नीति को उतनी ज़्यादा कड़ी चुनौती नहीं दे सकता.
इस समय इंडो पैसिफिक का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जिसकी तरफ दूसरे देशों का भी ध्यान जा रहा है. यूरोपीय संघ का भी ध्यान इस तरफ जा रहा है. और क्वैड के इंडो पैसिफिक विज़न को कुछ कुछ यूरोपीय संघ का भी समर्थन मिलना शुरू हो रहा है.
लेकिन यहां महत्व्पूर्ण बात यह है कि जहां चीन की बात आती है, तो सभी देश बोलते बहुत कुछ हैं लेकिन फिर कुछ करने से पहले ही उनके कदम ठिठक जाते हैं. वजह है व्यापार. चीन ने वैश्विक व्यापार की पूरी चेन को इस प्रकार से नियंत्रित कर रखा है कि वो व्यापार रोककर या व्यापारिक प्रतिबंध लगा कर जब चाहे किसी भी देश पर प्रतिबंध लगा सकता है. क्वैड के भी सभी सदस्य देशो का चीन के साथ खासा व्यापार है.
बल्कि इस मीटिंग के समाप्त होने की देर थी कि चीन ने धमकी तक दे डाली है . चीनी सरकार के मुखपक्ष ग्लोबल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट मे कहा है कि क्वैड द्देश अगर चीन के विरुद्ध कार्यवाई करते हैं तो फिर चीन उन्हे आर्थिक चोट देगा.
तो इसीलिये ये बेहद ज़रूरी है कि क्वैड को एक औपचारिक संगठन का रूप दिया जाये. इसके बाकायदा हेड्क्वार्टर्ज़ हों, इसका औपचारिक एजेंडा हो, इसे संगठन का रूप दिया जाये और साथ ही कोशिश भी की जाये कि विश्व के सभी शक्तिशाली देश इसे मान्यता दें.
अगर क्वैड को एक औपचारिक संगठन के रूप मे स्वीकृति मिलेगी तो फिर चीन के लिये वाकई मे मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं और उसकी विस्तारवादी नीति को एक बड़ा झटका मिल सकता है.