सोनाली मिश्रा। आईएमए के कट्टर ईसाई प्रमुख जहां एक ओर अपने रिलिजन के दुराग्रह के आधार पर बाबा रामदेव के बहाने आयुर्वेद से लड़ रहे हैं और आयुर्वेद को मार रहे हैं, तो वहीं उनके ही अपने रिलिजन के पादरी दम तोड़ रहे हैं। गॉड की जिस हीलिंग का वह प्रयोग इस महामारी में धर्मांतरण के लिए करना चाह रहे हैं, उससे वह अपने ही पादरियों को नहीं बचा पाए हैं। वेटिकनन्यूज़ के अनुसार भारत में कोविड-19 के कारण कुल 160 पादरी मारे गए हैं।
इस समाचार के अनुसार पिछले पांच सप्ताह में कोविड 19 से लगभग 160 कैथोलिक पादरी अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। इसका मतलब है एक दिन में चार मौतें। इसमें लिखा गया है कि यह खतरनाक खबर उन्हें कापुचिन पादरी फादर सुरेश मैथ्यू से प्राप्त हुई है, जो चर्च द्वारा संचालित इंडियन करेंट पत्रिका के सम्पादक हैं।
उन्होंने 10 अप्रेल से 17 मई के बीच मारे गए कुल 160 पादरियों एवं धर्मगुरुओं की मृत्यु हो गयी। और इनमें 3 बिशप और जोड़ दिए जाएं तो यह संख्या और बढ़ जाती है। और यह जो 160 पादरी मरे हैं, उनमें से भी 60 से अधिक लोग धार्मिक क्रम के थे, जिसमें पहली 24 मृत्यु जेसुइट की थें। फादर मैथ्यू का कहना था कि यह सूची अभी अधूरी है क्योंकि देश के 174 धर्म प्रान्तों से कोरोना की दूसरी लहर में कई मौतें तो रिपोर्ट ही नहीं की गयी हैं।
इस रिपोर्ट में एक बहुत ख़ास बात लिखी है, जिसे छिपाने की पूरी कोशिश ईसाई मीडिया ने की है, और साथ ही आईएमए के ईसाई अध्यक्ष ने भी छिपाया है कि स्थिति इतनी बुरी हो गयी हैं कि कब्रगाहों में जगहें नहीं शेष है। और इसमें यह भी बताया गया है कि पादरी और नन्स के लिए बेस्ट मेडिकल फेसिलिटी और ऑक्सीजन के साथ क्वारंटीन सेंटर हैं।
इसीके साथ इसमें यह भी कहा गया है कि अधिकतर लोग अकेलेपन से डरकर मरे हैं। अब इनसे यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि एक ओर तो आईएमए के प्रमुख यह कहते हैं कि उन्हें गॉड ऑलमाइटी ने धार्मिक हीलिंग देने के लिए भेजा है, जिसमें आध्यात्मिक हीलिंग, मानसिक हीलिंग माने उपचार और सोशल हीलिंग माने उपचार शामिल हैं, तो वह यही उपचार अपने पादरियों और नन को क्यों नहीं दिला पाए कि वह लोग मारे गए?
उन्होंने इस साक्षात्कार में कहा है कि उनकी मुख्य चिंता इस बात की है कि कैसे एक ईसाई डॉक्टर होने के नाते वह यह सुनिश्चित करें कि लोगों का मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहे और उन्हें आध्यात्मिक उपचार दिए जाएं, तो वहीं उनके खुद के पादरी केवल इसलिए मारे गए क्योंकि वह मानसिक रूप से अकेले थे। वेटिकन न्यूज़ की रिपोर्ट में है कि
क्वारंटीन सेंटर में पादरियों और नन का इलाज होता है, मगर फिर भी वह खराब मानसिक स्वास्थ्य के चलते मारे गए। क्या आध्यात्मिक उपचार और मानसिक उपचार केवल और केवल हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन के लिए ही है और अपने लोगों को मरने के लिए छोड़ देना है।
और एक तरफ आईएमए के ईसाई प्रमुख हैं जो कह रहे हैं कि चर्च हर तरह के लोगों की सेवा कर रहा है तो वहीं ईसाई धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु भारत में कोविड -19 से पीड़ित लोगों के लिए एकजुटता प्रदर्शित करते हैं तो वह यह कहते हैं कि इस महामारी से पीड़ित सभी को उपचार गॉड प्रदान करेंगे।
फिर उन्होंने कहा कि वह सभी रोगियों और उनके परिवार, उनकी देखभाल करने वालों, और ख़ास तौर पर उन लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं जिन्होंने इस बीमारी में अपने लोगों को खोया है। और इसीके साथ उन्होंने कई डॉक्टर्स, नर्स, एम्बुलेंस ड्राइवर आदि के लिए भी संवेदना व्यक्त की।
मगर तीसरे अनुच्छेद में वह लिखते हैं कि मैं आपके देश के कैथोलिक समुदाय द्वारा सभी की सेवा में दान और कल्याण कार्यों के लिए सम्मान व्यक्त करता हूँ। और ख़ास तौर पर जो समर्पित युवाओं ने जो समर्पण व्यक्त किया है।
अंतिम अनुच्छेद में पोप द्वारा मात्र कैथोलिक ईसाई समुदाय द्वारा ही की गयी सेवाओं के साथ ही प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी है, जबकि यह समय धर्म से परे होकर मानवता पर बात करने का है।
फिर जब यह बात ध्यान आती है कि ईसाई मिशनरी तो भारत में एक आशा की किरण देख रही हैं तो ऐसे में पोप का सन्देश भी अपने ही रिलिजन पर आधारित होगा। खैर इस वेबसाईट पर एक और ख़ास बात देखी गयी, जिसमें भीमा कोरेगांव हिन्सा के आरोपी फादर स्टेन स्वामी का महिमामंडन किया है। और कहा है कि कैद किये गए भारतीय जेसुइट ने अस्पताल जाने के बजाय जेल जाना चुना।
इस वेबसाईट में उनकी वृद्धावस्था का हवाला दिया गया है, परन्तु उनके अपराधों पर कोई बात न करते हुए यह साबित करने का प्रयास किया है कि उन्हें गरीबों की आवाज़ उठाने के लिए ही हिरासत में लिया गया है। परन्तु इस बात पर गौर नहीं किया है कि हो सकता है कि उन पर लगे हुए आरोप अधिक गंभीर हों, जिनके आधार पर अभी तक न्यायालय जमानत नहीं दे रहा है।
आईएमए और बाबा रामदेव की इस लड़ाई में परसों बाबा रामदेव ने पच्चीस प्रश्न पूछे थे,
जिइनके उत्तर तो आईएमए ने नहीं दिए, बल्कि इसके उलट उन्होंने बाबा रामदेव पर वैक्सीन के खिलाफ लोगों को भड़काने का आरोप लगाकर प्रधानमंत्री जी से कदम उठाने की मांग की है:
मगर आईएमए की नजर वहां नहीं जाती जब ईसाई मजहबी सुन्दर सेल्वाराज वैक्सीन के खिलाफ लोगों को यह कहकर भड़काते हैं कि इसमें शैतान है। सुन्दर सेल्वाराज, जो खुद एक ईसाई पादरी है और हिन्दू रूप धारण किए रहता है और इसने जीसस मिनिस्ट्रीज की स्थापना की है, परन्तु खुद को हिन्दू रूप में दिखाता है। उसका लक्ष्य है जीसस की सेवा करना और हिन्दुओं को ईसाई बनाना तथा संवाद के हर उपलब्ध साधनों का प्रयोग करना।
और साथ ही नागालैंड में एक पादरी भी यह कहते हैं कि वैक्सीन लगाना प्रभु की इच्छा नहीं है। इसीके साथ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में तो यह स्पष्ट ही है कि वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट ने ही 40 से अधिक प्रोफेसर्स की जान ले ली।
मगर दुर्भाग्य की बात यह है कि सरकार का साथ देकर, सर्वे भवन्तु सुखिन: का सिद्धांत रखने वाले हिन्दू निशाने पर हैं, और कोरोना को धर्म प्रचार का माध्यम समझने वाले रिलिजन रोज़ निशाना साध रहे हैं।
परन्तु अब संज्ञान में आ रहा है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के ईसाई प्रमुख के इतने कट्टर ईसाई विचार सामने आने के बाद लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम ने गृह मंत्रालय से यह मांग की है कि आईएमए का एफसीआरए का लाइसेंस कैंसल करे जो खुलकर गरीब लोगों को ईसाईयत की ओर खींच रहे हैं, और जैसा उन्होंने खुद ही एक साक्षात्कार में बताया है.