संयुक्त राष्ट्र संघ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में सबसे अधिक मात्रा में भारत की डाइस्पोरा फैली हुई है. यानि जन विसर्जन के अंतर्गत जो लोग दूसरे मुल्कों में बसे हैं, उनमें भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है. संयुक्त राष्ट्र संघ की अंतराष्ट्रीय माइग्रेंट स्टांक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में फैली भारतीय डाइस्पोरा की संख्या 17.5 मिलियन है, यानि दुनिया की संपूर्ण माइग्रेंट जनसंख्या का 6.4 प्रतिशत .
आरतीय डाइस्पोरा की भू राजनैतिक दृष्टिकोण से बढ़्ती हुई अहमियत
भारतीय डाइस्पोरा ने विभिन्न मुल्कों में व्यावसायिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, यहां तक की राजनीतिक क्षेत्रों में भी अपनी जो पुख्ता पहचान बनाई है, यह बात किसी से छुपी नहीं है. और साथ ही जिस देश में वो बसे हैं, वहां की संस्कृति को खुले द्दिल से अपनाते हुए भी अपनी भारतीयता को किस तरह से इस डाइस्पोरा ने जीवित रखा है, इसका भी आपको भली भांति आभास है. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र संघ की यह रिपोर्ट भू राजनैतिक दृष्टिकोण से भारतीय डाइस्पोरा भी बढ़्ती हुई अहमियत को रेखांकित करती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने हर स्तर पर भारतीय डाइस्पोरा से देश के संबंध मज़बूत किये हैं. एक तरफ गल्फ देशों में रह अपने परिवारों के लिये पैसा कमाने रह रहे भारतीयों के अधिकारों के लिये सरकार सजगता से लड़ी है तो दूसरी तरह अमरीका और इंग्लैंड आदि प्रगतिशील देशों में बसी संपन्न डाइस्पोरा को भी सरकार ने भारत में व्यावसायिक निवेश कर या अन्य किसी माध्यम से देश की प्रगति में अपना योगदान देने के लिये प्रेरित किया है. एन डी ए सरकार की सशक्त डाइस्पोरा नीति ने इस बात के लिये भी दरवाज़े खोले हैं कि भारत पश्चिमी देशों में रह रही संपन्न और इंफ्लुएंशल डाइस्पोरा को साथ ले बहुत से अहम अंतारष्ट्रीय मुद्दों पर अपना मत आगे बढाये जैसे की संयुक्त राष्ट्र संघ की सिक्योरिटी काउंसिल का स्थायी सदस्य बनने का लक्ष्य.
हाउडी मोदी कार्यक्रम भारतीय डाइस्पोरा की बढ़्ती अहमियत को रेखांकित करता हुआ.
हाउस्टन में संपन्न हुआ हाउडी मोदी कार्यक्रम भी भारतीय डास्पोरा की बढ़्ती अहमियत का जीत जागता उदाहरण है. इस कार्यक्रम ने जहां अमरीका में रह रहे भारतीयों की मिली जुली सांस्कृतिक ज़मीन की झांकियां प्रस्तुत कीं, वहीं दुनिया के सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले मुल्क के प्रमुख को भारतीय प्रधानमंत्री के साथ शिरकत कर भारतीय डाइस्पोरा को संबोधित करने का एतिहासिक मंच प्रदान किया. यह विश्व में भारतीय डाइस्पोरा की बढ़्ती हुई अहमियत को साफ दर्शाता है और इस बात का द्योतक है कि किसी भी मुल्क की सत्ता अब वहां रह रहे भारतीयों के मत और उनके अधिकारों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकती.
ब्रेन ड्रेन से उलट ब्रेन गेन की सोच
एक समय था जब भारत छोड़् विदेशों में बस रहे इंजीनियरों और डांक्टरों को ब्रेन ड्रेन के सिद्धांत से जोड़्कर देखा जाता था. इससे भारतीय डाइस्पोरा को लेकर आम जन के मन में एक नकरात्मक सोच सी फैल गयी कि ये लोग तो देश निर्माण में कोई योगदान न देकर विदेशों में मज़े लूट रहे हैं. जबकि ज़रा सा शोध करने से भी यह पता चल जायेगा कि सच्चाई इसके बिकुल उलट है. विदेशों में बसे भारतीयों ने अपने शुरुआती दौर में किस तरह के संघर्ष किये होंगे और वो किन परिस्थितियों में वहां जाकर बसे होंगे, इसका शायद अंदाज़ा लगाना भी कठिन है. बहरहाल, मोदी सरकार की डाइस्पोरा नीति के चलते ब्रेन ड्रेन की डिस्कोर्स में काफी बदलाव आया. इस दृष्टिकोण को बढ़ावा मिला कि ये डाइस्पोरा आर्थिक निवेश या टेक्नांलाजी ट्रांसफर के ज़रिये देश के विकास में खासा योगदान दे सकती है. शिक्षा, रोज़कार, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्रों में मुद्रा और तकनीकी समझ दोनों का इस्तेमाल कर यह डाइस्पोरा देश की प्रगति के लिये बहुत कुछ कर सकती है. और इसी तरह अगर सरकार की डाइस्पोरा नीति प्रभावशाली ढंग से कार्यांवित की जाती रही तो निश्चित की बहुत ही जल्द भारत की डाइस्पोरा हर उस अंतराष्ट्रीय मुद्दे पर जो भारत के लिये अहम है, भारत की आवाज़ बनेगी.